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बस्तर की मिट्टी से निकलेगा ओलंपिक का ‘सितारा’

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बस्तर की मिट्टी से निकलेगा ओलंपिक का सितारा

Bastar(रौनक शिवहरे, दंतेवाडा): दंतेवाड़ा नई पहचान की ओर बढ़ रहा है. अक्सर जब ‘बस्तर’ कहा जाता है, तो दिमाग में सबसे पहले हिंसा और नक्सलवाद की तस्वीर उभरती है, लेकिन इसी धरती से अब एक नई कहानी लिखी जा रही है. यह कहानी बंदूक और बारूद की नहीं, बल्कि खेल के मैदान और सपनों की है. दंतेवाड़ा अब ‘खेल सिटी’ बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है- एक ऐसी पहल जो आने वाली पीढ़ियों को नया भविष्य दे सकती है.

मैदान से उभरते चेहरे

बरसात के बाद की सुबह. दंतेवाड़ा के पास एक गांव के धान के खेत के किनारे छोटे-छोटे बच्चे दौड़ते नजर आते हैं. पैर में जूते नहीं, लेकिन आंखों में जुनून है. मिट्टी पर कबड्डी खेलते हुए, लकड़ी के डंडे से तीरंदाजी का अभ्यास करते हुए ये बच्चे बताते हैं कि हुनर के लिए संसाधन से ज्यादा जरूरी है.

रानू भोगम कहती हैं- ‘मैं दंतेवाड़ा जिला की रहने वाली हूं और मैं एथलेटिक्स खेलती हूं. एथलेटिक्स में दो बार नेशनल जा चुकी हूं. अभी नागपुर में एक ओपन नेशनल एथलेटिक्स खेल खेलने गई थी. यहां पर पहले खेल की सुविधा नहीं थी. अभी बहुत कुछ सुविधा हुई है. खाने की भी सुविधा बहुत अच्छी है. गर्मी में समर कैंप लगता है. यहां पर दंतेवाड़ा जिला के बच्चे को आगे बढ़ाने की अच्छी पहल चल रही है.’

इसी तरह 17 साल का रोशन, जो तीरंदाजी में ओपन नेशनल में हिस्सा ले चुका है. वह हंसते हुए कहता है- ‘पहले हम लकड़ी की धनुष बनाते थे. अब यहां असली उपकरण मिल रहे हैं। सपना है कि एक दिन ओलंपिक में तिरंगा लहराऊं.’

बस्तर के बच्चे: कुदरती खिलाड़ी

यह कोई कल्पना नहीं. बस्तर के बच्चे शारीरिक रूप से दमदार हैं, मानसिक रूप से सख्त और जीवन की कठिनाइयों से तपे हुए हैं. जंगल, पहाड़ और नदी-नालों के बीच पला-बढ़ा बचपन उन्हें स्वाभाविक रूप से मजबूत बनाता है. अनुशासन उनके जीवन का हिस्सा है- सुबह-सुबह पानी लाना, जंगल से लकड़ी ढोना, खेत में मदद करना. यही वजह है कि बिना किसी पेशेवर प्रशिक्षण के भी इनमें खेल की प्रतिभा झलकती है. अब इन्हें बेहतर संसाधन, प्रोफेशनल ट्रेनिंग और सही मार्गदर्शन मिलेगा, तो ये खिलाड़ी जिला एवं राज्य तक सीमित नहीं रहेंगे- वे ओलंपिक में तिरंगा लहराने का सपना पूरा कर सकते हैं.

ओलंपिक स्तर की सुविधा

दंतेवाड़ा में बन रही ‘स्पोर्ट सिटी’ इस इलाके के लिए ऐतिहासिक पहल है. यहां एथलेटिक्स, हॉकी, तीरंदाजी, कुश्ती, थाई बॉक्सिंग, कराते, वॉलीबॉल, फुटबॉल, कबड्डी, बेसबॉल और क्रिकेट जैसे खेलों के लिए अत्याधुनिक प्रशिक्षण केंद्र तैयार किए जा रहे हैं. खिलाड़ियों को NIS प्रशिक्षित कोच, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी और राष्ट्रीय स्तर के अनुभवी ट्रेनर मार्गदर्शन देंगे.

कोच प्रवीण कुमार बताते हैं- ‘मैंने शहरों में कई खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी है, लेकिन बस्तर के बच्चों में वह रॉ एनर्जी है, जो कहीं और नहीं मिलती. इन्हें सिर्फ सही दिशा देने की जरूरत है.’

शिक्षा के साथ खेल- डबल फोकस

यह मॉडल सिर्फ खेल तक सीमित नहीं है. यहां बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ खेल प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. मकसद यह है कि खेल में सफल न भी हों, तो भी ये बच्चे शिक्षा के दम पर आगे बढ़ सकें.

अब तक की उपलब्धियां

योजना अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन उपलब्धियां उत्साहजनक हैं. अब तक जिले में 100 बालक और 100 बालिका खिलाड़ियों का चयन हो चुका है, जो स्पोर्ट सिटी में रहकर तैयारी कर रहे है जिसमें 25 खिलाड़ी SGFI नेशनल प्रतियोगिता में शामिल हो चुके हैं. 17 खिलाड़ी ओपन नेशनल स्तर पर खेल चुके हैं. यह आंकड़े बताते हैं कि यह मॉडल केवल काग़ज़ी नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत है.

संघर्ष से उम्मीद तक–बस्तर की नई पहचान

बस्तर लंबे समय तक संघर्ष और भय का प्रतीक रहा है, लेकिन अब खेल सिटी जैसी पहल उस छवि को बदल रही है. जहां कभी बंदूकें डर बिखेरती थीं. वहीं, आज हॉकी स्टिक, क्रिकेट बैट और कबड्डी की मिट्टी नए सपनों और आने वाली पीढ़ी की उम्मीदों का प्रतीक बन रही है. बस्तर अब केवल संघर्ष की धरती नहीं, बल्कि साहस और खेल की उपलब्धियों की पहचान बना रहा है.

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स्थानीय शिक्षक कहती हैं- ‘पहले गांव में बच्चे कहते थे हम पुलिस नहीं बनेंगे क्योंकि डर है. अब वे कहते हैं हम खिलाड़ी बनेंगे. यह सोच में बदलाव सबसे बड़ी जीत है.’

बस्तर की मिट्टी से ओलंपिक सितारे: कठिनाइयों में पनपती उम्मीद और हुनर

दंतेवाड़ा में भी उम्मीद और हुनर की झलक दिखने लगी है. अगर यह पहल सफल हुई, तो बस्तर के खिलाड़ी न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अपनी छाप छोड़ेंगे. वह दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया देखेगी- बस्तर की मिट्टी से भी ओलंपिक सितारे निकल सकते हैं.

गीदम में बनेगी स्पोर्ट्स सिटी

दंतेवाड़ा कलेक्टर कुणाल दूतावात ने बताया- टगीदम में एजुकेशन सिटी के साथ-साथ स्पोर्ट्स सिटी का निर्माण भी चल रहा है. खेलो इंडिया प्रोग्राम के तहत क्रिकेट स्टेडियम, ओलंपिक साइज स्विमिंग पूल, हॉकी स्टेडियम और आर्चरी रेंज का निर्माण किया जा रहा है. इनमें से क्रिकेट स्टेडियम, स्विमिंग पूल और आर्चरी रेंज अक्टूबर तक तैयार हो जाएंगे. हम चाहते हैं कि बच्चे केवल खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिक भी बनें. खेल और शिक्षा दोनों का संतुलन ही इनके जीवन को नई दिशा देगा.’

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