Vistaar NEWS

सड़क में गड्ढे या गड्ढों में सड़क? छत्तीसगढ़ की 14 KM लंबी इस रोड पर 200 से ज्यादा गड्ढे, 9 साल से नहीं हुई मरम्मत

bilaspur_news_road

सड़क में गड्ढे या गड्ढों में सड़क?

Bilaspur: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में 14 KM लंबी एक सड़क पर गुजरने के बाद आपका सफर इतना कष्टदायक हो जाएगा कि आपको शायद एक बार पहले किसी नजदीकी क्लिनिक जाना पड़ जाए. जिले में झमाझम बारिश के बाद मोपका सेंदरी बाई पास सड़क अब जानलेवा हो चुकी है. इस सड़क पर हर दूसरे कदम पर ऐसे गहरे गड्ढे हैं, जो जानलेवा बन चुके हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि बारिश के दौरान यह दिखते नहीं है और आए दिन लोग दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं. वहीं, जब से यह सड़क बनी है तब से इसकी मरम्मत भी नहीं करवाई गई है. लिहाजा लोगों को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

आधे घंटे के सफर में लग रहे दो घंटे

साल 2016 में 35 करोड़ रुपए की लागत से मोपका सेंदरी बाई पास का निर्माण हुआ था. 9 साल में इस 14 KM लंबे बाई पास के हाल बेहद बदतर हो गए हैं. ट्रेलर और छोटी बड़ी गाड़ियों के चक्के यहां के गड्ढों में पड़कर फिसल रहे हैं. स्टेरिंग अपने आप ही दाएं-बाएं हो रहा है. इस सड़क पर सफर ऐसा है कि आधे घंटे के सफर में दो-दो घंटे लग रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि रतनपुर से सीपत और बिलासपुर को जोड़ने के लिए इस बाई पास सड़क का निर्माण करवाया गया, लेकिन अब यह सड़क गड्ढों के कारण जानलेवा हो चुकी है. इस सड़क पर चलने वाले लोगों को स्लिप डिस्क और कमर की परेशानी भी हो रही है. इसके बावजूद प्रशासन इसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहा है.

14 KM लंबी सड़क पर 200 से ज्यादा गड्ढे

14 किलोमीटर लंबी मोपका सेंदरी बाई पास सड़क में 200 से ज्यादा गहरे गड्ढे हैं, जिनमें 100 से ज्यादा खतरनाक है. फिर भी वाहन चालकों की मजबूरी है इस सड़क से आना-जाना और अपनी मंजिल तक पहुंचना. भारी बारिश के कारण गाड़ियों के पहिए इन सड़कों पर समा रहे हैं और उन्हें बेहद तकलीफ हो रही है.

कई बार उठा चुके मांग

क्षेत्र में रहने वाले लोग कई बार इस सड़क निर्माण की मांग उठा चुके हैं लेकिन अधिकारी बजट नहीं होने की बात कह कर मामले से पल्ला झाड़ रहे हैं. यही वजह है कि सड़क पर चलना वाहन चालकों के लिए दूभर हो गया है. सड़क को बने 9 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक एक भी बार 9 सालों में सड़क की मरम्मत नहीं हुई है.

ये भी पढ़ें- इस जज्बे को सलाम: 15 साल से उफनती नदी पार कर आदिवासी बच्चों को पढ़ाने जा रहे अशोक चौहान, यहां कोई नहीं करना चाहता नौकरी

Exit mobile version