रौनक शिवहरे (बस्तर)
Naxal Encounter: छत्तीसगढ़ के घने और कठिन भूगोल वाले अबूझमाड़ क्षेत्र में सुरक्षाबलों ने एक बड़े अभियान को अंजाम देते हुए माओवादी संगठन के शीर्ष नेता बसवा राजू उर्फ केशव को मुठभेड़ में मार गिराया. बसवा राजू भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सदस्य था और उस पर भारत सरकार ने 1.5 करोड़ रुपये का इनाम रखा गया था.
गार्डों के सरेंडर से मिली जानकारी
सूत्रों के अनुसार, बसवा राजू की लोकेशन का पता उसके दो स्पेशल गार्डों के सरेंडर के बाद चला. इसके बाद राज्य पुलिस, सीआरपीएफ और अन्य केंद्रीय बलों ने मिलकर संयुक्त ऑपरेशन की रणनीति बनाई. तीन जिलों – नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा की संयुक्त टीमों ने इलाके को चारों ओर से घेर लिया.
जहां दिन में भी नहीं पहुंचती रोशनी
मुठभेड़ का स्थान इतना घना और दुर्गम था कि दिन के उजाले में भी जमीन तक सूर्य की किरणें नहीं पहुंचतीं. बांस के सघन झुरमुटों से भरा यह इलाका वर्षों से माओवादियों की सुरक्षित शरणस्थली रहा है. सुरक्षाबलों ने पहली बार इस क्षेत्र में ऑपरेशन चलाया.
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3 दिनों तक चला ऑपरेशन
सोमवार को मिली ताज़ा स्थानीय सूचना के आधार पर डीआरजी (जिला रिजर्व गार्ड) की टीमों को रवाना किया गया. उसी दिन चार बार माओवादियों से मुठभेड़ हुई, लेकिन बसवा राजू भागने में सफल रहा. मंगलवार को तलाशी अभियान जारी रहा पर कोई ठोस सफलता नहीं मिली.
मंगलवार की शाम को डीआरजी की चार विशिष्ट इकाइयों ने घने जंगल में चुपचाप मोर्चा संभाला. उन्हें अंदेशा नहीं था कि महज़ एक किलोमीटर दूर ही बसवा राजू 25 सशस्त्र माओवादियों के साथ डेरा डाले हुए था.
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अंतिम मुठभेड़ और निर्णायक कार्रवाई
बुधवार सुबह करीब 7 बजे, डीआरजी जवान पर माओवादी संतरी की नजर पड़ते ही भीषण मुठभेड़ शुरू हो गई. माओवादी दक्षिण की ओर भागे लेकिन ईगल टीम से टकरा गए. फिर वे उत्तर की ओर पलटे और वहीं एक पठार पर फिर से जमावड़ा किया. उन्होंने एक व्यक्ति के चारों ओर सुरक्षात्मक घेरा बना लिया, जिसकी गतिविधियों से संदेह हुआ कि वह कोई शीर्ष कमांडर हो सकता है.
30 मिनट तक चली इस मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने लगभग 300 राउंड फायरिंग की. माओवादियों ने नारेबाज़ी की, लेकिन अंततः चारों ओर से घिरे होने के कारण वे मारे गए.
बसवा राजू की पुष्टि
मुठभेड़ के बाद, एक पूर्व माओवादी, जो अब डीआरजी जवान है और कभी माओवादी ‘कंपनी नंबर 7’ में काम कर चुका था, ने बसवा राजू की पहचान की. इसके साथ ही इस अभियान की बड़ी सफलता की पुष्टि हुई.
ग्रामीणों में दहशत, खाली हुआ गांव
गोलियों की आवाज़ और भारी फोर्स की मौजूदगी से किलेकोट पहाड़ियों के नीचे बसे गुंडेकोट गांव के निवासी भयभीत होकर पलायन कर गए. अधिकतर ग्रामीण पास के बोटेर गांव में शरण लेने के लिए मजबूर हुए.
