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CM हाउस में हरेली उत्सव: छत्तीसगढ़ी परंपराओं की झलक, पारंपरिक कृषि यंत्रों के साथ बिखरी सांस्कृतिक छटा

Hareli Tihar: छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की खुशबू लिए हरेली तिहार का पारंपरिक उत्सव आज मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निवास में विधिवत रूप से आरंभ हुआ. छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ प्रत्येक अवसर और कार्य के लिए विशेष प्रकार के पारंपरिक उपकरणों एवं वस्तुओं का उपयोग होता आया है.

हरेली तिहार

Hareli Tihar: छत्तीसगढ़ में आज हरेली का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसी कड़ी में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निवास पर हरेली उत्सव का आयोजन हो रहा है. जहां मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में पारंपरिक कृषि यंत्रों एवं परिधानों की झलक देखने को मिली, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर हैं.

काठा

सबसे बाईं ओर दो गोलनुमा लकड़ी की संरचनाएँ रखी गई थीं, जिन्हें ‘काठा’ कहा जाता है. पुराने समय में जब गाँवों में धान तौलने के लिए काँटा-बाँट प्रचलन में नहीं था, तब काठा से ही धान मापा जाता था. सामान्यतः एक काठा में लगभग चार किलो धान आता है. काठा से ही धान नाप कर मजदूरी के रूप में भुगतान किया जाता था.

खुमरी

सिर को धूप और वर्षा से बचाने हेतु बांस की पतली खपच्चियों से बनी, गुलाबी रंग में रंगी और कौड़ियों से सजी एक घेरेदार संरचना ‘खुमरी’ कहलाती है. यह प्रायः गाय चराने वाले चरवाहों द्वारा सिर पर धारण की जाती है. पूर्वकाल में चरवाहे अपने साथ ‘कमरा’ (रेनकोट) और खुमरी लेकर पशु चराने निकलते थे. ‘कमरा’ जूट के रेशे से बना एक मोटा ब्लैंकेट जैसा वस्त्र होता था, जो वर्षा से बचाव के लिए प्रयुक्त होता था.

कांसी की डोरी

यह डोरी ‘कांसी’ नामक पौधे के तने से बनाई जाती है. पहले इसे चारपाई या खटिया बुनने के लिए ‘निवार’ के रूप में प्रयोग किया जाता था. डोरी बनाने की प्रक्रिया को ‘डोरी आंटना’ कहा जाता है. वर्षा ऋतु के प्रारंभ में खेतों की मेड़ों पर कांसी पौधे उग आते हैं, जिनके तनों को काटकर डोरी बनाई जाती है. यह डोरी वर्षों तक चलने वाली मजबूत बुनाई के लिए उपयोगी होती है.

झांपी

ढक्कन युक्त, लकड़ी की गोलनुमा बड़ी संरचना ‘झांपी’ कहलाती है. यह प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ में बैग या पेटी के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होती थी. विशेष रूप से विवाह समारोहों में बारात के दौरान दूल्हे के वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, पकवान आदि रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता था. यह बांस की लकड़ी से निर्मित एक मजबूत संरचना होती है, जो कई वर्षों तक सुरक्षित बनी रहती है.

कलारी

बांस के डंडे के छोर पर लोहे का नुकीला हुक लगाकर ‘कलारी’ तैयार की जाती है. इसका उपयोग धान मिंजाई के समय धान को उलटने-पलटने के लिए किया जाता है.

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