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CG: कनाडा, लंदन, ऑस्ट्रिया, और अमेरिका में जशपुर की चाय की डिमांड, 2 लाख रुपए तक है कीमत

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जशपुर में चाय की बगिया

Jashpur Ki Chai: देश के असम राज्य को ‘चाय का बगान’ कहा जाता है. इसके अलावा कुछ समय पहले तक केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के साथ दार्जलिंग ही चाय की खेती के लिए जाने जाते थे. लेकिन अब छत्तीसगढ़ का जशपुर जिला भी ‘चाय की बगिया’ के नाम से चर्चित होते जा रहा है. जशपुर का सोगड़ा आश्रम के साथ जिला प्रशासन ने दो जगह की कई एकड़ जमीन में चाय की खेती शुरू की है. इस चाय की डिमांड न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी है. वहीं, यहां की चाय 2 लाख रुपए किलो तक बिकती है.

15 साल पहले खेती शुरू

जशपुर जिला मुख्यालय से करीब 10 किलो मीटर की दूरी में सुदूर पहाड़ी और हरे भरे जंगल के बीच स्थापित सोगड़ा आश्रम में चाय की खेती की शुरुआत 15 साल पहले 2010 में की गई थी. इसकी शुरुआत आश्रम प्रमुख गुरुपद संभव बाबा और उस समय के गृह मंत्री राम विचार नेताम ने चाय के पौधे लगाकर की थी. छत्तीसगढ़ के पहले चाय बगान में मौजूदा समय में सोगड़ा गांव के ही 25 महिला-पुरुष काम करते हैं, जिससे उनको गांव में ही बेहतर रोजगार मिल रहा है. आश्रम में चाय बगान और अन्य खेती के कारण गांव के लोगों का सामाजिक उत्थान भी हो रहा है.

तीन प्रकार की चाय पत्ती

जशपुर जिला अपने प्राकृतिक सौंदर्य, खूबसूरत हरे-भरे जंगल और शानदार मौसम के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में चर्चित है. यहां के मौसम की वजह से जिले के कई इलाके में चाय की सफल खेती की जा रही है. इसमें सबसे सफल खेती सोगड़ा आश्रम में की जा रही है. धार्मिक महत्व का सोगड़ा आश्रम पिछले कुछ वर्षों में सफल खेती को लेकर अनुसंधान केंद्र भी बन गया है. इस आश्रम के 8 एकड़ में फैले चाय बगान में 3 किस्म की चाय पत्ती का उत्पादन किया जा रहा है, जिसमें ‘ब्लैक टी’ ‘ग्रीन टी’ और ‘वाइट टी’ शामिल हैं.

2 लाख रुपए किलो बिकती है चाय

सोगड़ा आश्रम में चाय की खेती और फिर उसकी प्रोसेसिंग के बाद चाय आश्रम के काउंटर के साथ आश्रम की और भी शाखाओं में बिक्री के लिए रखी जाती है. आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले के चाय की खुशबू समुद्र पार तक पहुंच गई है. आलम ये है कि जशपुर के सोगड़ा आश्रम की चाय की डिमांड कनाडा, लंदन, आस्ट्रिया, और अमेरिका तक है क्योंकि आश्रम की अनुयाई देश-विदेश में फैले हैं. सबसे बड़ी बात है कि यहां होने वाली ‘वाइट टी’ की कीमत लाखों में हैं. आश्रम के लोगों से बात करने पर पता चला कि ये चाय पत्ती 2 लाख रुपए किलो है क्योंकि इस किस्म की चाय देश के बहुत ही कम जगह में होती तैयार की जाती है.

खेती के लिए जरूरी

सोगड़ा आश्रम में चाय की खेती के लिए सबसे पहले सेड ट्री लगाया जाता है, जिससे सूर्य की रोशनी सीधे इस केटी में ना पहुंच सके. शेड लगाने के बाद आसाम दार्जलिंग से लिए चाय के पौधे लगाए जाते हैं. गौर करने वाली बात है कि चाय की खेती के लिए अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस है. अगर तापमान उससे ज्यादा हुआ तो चाय की खेती को नुकसान हो सकता है. अगर आप चाय की खेती के बारे में नहीं जानते हैं तो पढ़कर आश्चर्य होगा कि चाय के पौधे की उम्र 70 साल होती है. मतलब दो जनरेशन तक चाय के पौधे चाय की पत्ती देते रहते हैं.

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प्रोसेसिंग का तरीका

जशपुर में बड़े पैमाने में चाय की खेती के कारण ये तय हो गया है कि ये इलाका चाय की खेती के लिए बेहद अनुकूल है. पौधे से पत्ती तोड़ने के बाद उसको प्रोसेसिंग यूनिट में ले जाया जाता है. यहां पर सबसे पहले चाय पत्ती को स्ट्रीम किया जाता है. फिर उसकी रोलिंग होती है. इसके बाद रोलिंग बाल से इसे फैलाया जाता है.

प्रशासन ने भी सीख ली

जशपुर के सोगड़ा आश्रम में 15 साल पुरानी चाय की खेती से जिला प्रशासन के लिए भी आदर्श खेती बनकर सामने आई. और कुछ साल पहले जिला प्रशासन ने भी जिले के सारूडीह इलाके में इस खेती की शुरुआत की. साथ ही जिला प्रशासन ने उसके प्रोडक्शन के लिए एक प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाया. कुल मिलाकर आश्रम से सीख लेकर प्रशासन ने चाय की जिस खेती की शुरुआत की. वो आज सफलता की और अग्रसर है.

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