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Kawardha: पहले केक काटा…श्मशान में गुब्बारों से सजाई अर्थी, फिर जन्मदिन मनाकर पिता ने किया बेटी का अंतिम संस्कार

CG News

वेदांत शर्मा (कवर्धा)

CG News: कवर्धा जिले से दिल को झंकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई. जहां एक पिता ने अपनी मृत बेटी का जन्मदिन मनाया. अंतिम संस्कार से पहले, उन्होंने केक काटा और गुब्बारों से सजावट की. मृतिका अदिति भट्टाचार्य का उसी दिन जन्मदिन था. अदिति की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हुई थी, जिसमें कुल 5 लोगों की जान गई थी. मृतक कोलकाता के रहने वाले थे. दो मृतकों का अंतिम संस्कार कवर्धा के मुक्तिधाम में किया गया.

सड़क हादसे में पत्नी और बेटी की मौत

कवर्धा में चिल्फी घाटी के पास एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना में उनकी पत्नी और एक बेटी समेत 5 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. इस परिवार में पिता मेडिकल एजेंसी में कार्यरत हैं, मां एक शिक्षिका थीं और दो बेटियां – एक 18 वर्ष की और दूसरी मात्र 12 साल की. इस परिवार में अब एक पिता और एक बेटी बस रह गए .यह खबर जितनी भयानक थी, उससे कहीं अधिक हृदयविदारक वह क्षण था जब पिता अकेले, टूटे हुए मन से अपनी पत्नी और बेटी की अंतिम यात्रा को पूरा करने कवर्धा पहुंचे, चूंकि परिवार दूर था और अधिक लोग समय पर नहीं पहुंच सके, तो कवर्धा के स्थानीय लोग ही इस दुःख में उनका सहारा बने. उन्होंने एक परिवार की तरह आगे आकर न केवल अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था में मदद की, बल्कि संवेदना और अपनत्व का वो उदाहरण पेश किया जो आज के समय में दुर्लभ है, लेकिन जो हुआ, उसने हर संवेदनशील हृदय को भीतर तक झंकझोर दिया.

पिता ने श्मशान में गुब्बारों से सजाई अर्थी, फिर किया अंतिम संस्कार

जब बेटी की चिता सजाई जा रही थी, तभी पिता ने भारी मन से बताया कि आज उनकी छोटी बेटी का 12वां जन्मदिन था. यह सुनकर वहां खड़े हर व्यक्ति की आंखें भर आईं. और फिर हुआ एक ऐसा दृश्य, जिसने मानवीय संवेदना की परिभाषा बदल दी. पिता की इच्छा थी कि वह अपनी बेटी का जन्मदिन एक आखिरी बार मना सकें, तो उसी मुक्तिधाम में, जहां श्मशान की राख उड़ रही थी, वहीं आसमान में गुब्बारे छोड़े गए, चिता को फूलों और रंग-बिरंगे बलूनों से सजाया गया, और एक पिता ने रोती आंखों से केक काटकर अपनी बेटी का अंतिम जन्मदिन मनाया. यह दृश्य वहां मौजूद हर कवर्धा वासी के दिल को छू गया. वह वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल है. लाखों लोग इस पिता के दर्द और कवर्धा वासियों की संवेदना को देखकर भावुक हो रहे हैं। हर कमेंट, हर प्रतिक्रिया में सिर्फ एक ही बात गूंज रही है. ‘मानवता ज़िंदा है’.

लोगों ने दिया साथ

कवर्धा के जिन लोगों ने इस क्षण में न केवल एक अजनबी का हाथ थामा, बल्कि उसका परिवार बनकर खड़े हुए, उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि धर्म, जाति, भाषा या स्थान – कुछ भी इंसानियत से बड़ा नहीं होता. यह सिर्फ एक अंतिम संस्कार नहीं था – यह मानवता की पुनर्परिभाषा थी. इस दौर में, जहां रिश्ते भी स्वार्थ से बंधे होते हैं, एक अनजाने पिता की पीड़ा में सहभागी बनना, उसकी बच्ची का जन्मदिन मनाना और उसकी आंखों से बहते आंसुओं में अपने आंसू जोड़ देना – यह कोई साधारण बात नहीं.

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