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‘लगभग जय हिंद’ से शुरू हुआ विनोद कुमार शुक्‍ल का सफर, फिर ऐसे बने ज्ञानपीठ सम्मान पाने वाले देश के 12वें साहित्यकार

Vinod Kumar Shukla passes away

साहित्‍यकार विनोद कुमार शुक्‍ल

Vinod Kumar Shukla: आज हिंदी साहित्य के महान साहित्‍यकार कविता, कहानी और उपन्यास के माध्यम से भाषा को नई संवेदना और सहज सौंदर्य देने वाले विनोद कुमार शुक्‍ल का 88 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन की खबर के बाद से ही साहित्य प्र‍ेमियों में गहरा शोक छाया हुआ है. विनोद कुमार शुक्‍ल को साल 2024 में दीर्घकालीन और विशिष्ट साहित्यिक योगदान के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्‍कार दिया गया था. छत्तीसगढ़ से जुड़े विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान प्राप्त हुआ है.

ऐसे बने शुक्‍ल सहित्य जगत के महान साहित्यकार

विनोद कुमार शुक्ल की पहचान उस रचनात्मक भाषा से है, जिसमें अचरज, मानवीय संवेदना और सामाजिक सरोकार बिना किसी बोझ के साथ चलते हैं. उनके अब तक दस कविता-संग्रह, छह कहानी-संग्रह और छह उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. बाल और किशोर साहित्य में भी उन्होंने महत्वपूर्ण लेखन किया है. उनकी रचनाओं का संसार की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हुआ है. रंगमंच और सिनेमा में भी उनका रचनात्मक हस्तक्षेप सराहा गया है. ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ जैसे उपन्यासों ने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई है. ‘केवल जड़ें हैं’ उनका नवीनतम कविता-संग्रह है.

1971 में आई थी पहली कविता ‘लगभग जय हिंद’

लेखक, कवि और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल की पहली कविता वर्ष 1971 में ‘लगभग जय हिंद’ शीर्षक से प्रकाशित हुई थी. उनकी कविताएं आम जीवन, रिश्तों, करुणा और उम्मीद को बेहद सहज भाषा में अभिव्यक्त करती हैं. ‘जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे’ और ‘हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था’ जैसी कविताएं पाठकों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय हैं.

विनोद कुमार शुक्‍ल को मिला प्रति‍ष्ठित सम्मान

विनोद कुमार शुक्ल को गजानन माधव मुक्तिबोध फ़ेलोशिप, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, शिखर सम्मान, हिंदी गौरव सम्मान, रज़ा पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान और रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं. वर्ष 2023 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय साहित्य में योगदान के लिए प्रतिष्ठित पेन नाबोकोव पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. ज्ञानपीठ पुरस्कार की यह घोषणा हिंदी साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है.

विनोद शुक्‍ल की सबसे प्रचालित कविता

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
मैं उनसे मिलने

उनके पास चला जाऊँगा…
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर

नदी जैसे लोगों से मिलने
नदी किनारे जाऊँगा

कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब

असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आएँगे मेरे घर

खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा..

जो लगातार काम में लगे हैं
मैं फ़ुरसत से नहीं

उनसे एक ज़रूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा…

इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा…

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