CG News: रामगढ़ पहाड़ का निर्माण करीब 200 मिलियन साल पहले हुआ था. इस पहाड़ का निर्माण बेसमेंट रॉक ग्रेनाइट से हुआ है जो वोल्कानिक और हार्ड रॉक है. 500 मिलियन साल पहले इस इलाके में समुद्र का आक्रमण हुआ था और समुद्र का खारा पानी यहां पहुंचा था. जिसके साथ बालू, मिट्टी और पेड़ पौधे भी यहां आए और उसी से कोयला का निर्माण हुआ. यहां पाया जाने वाला कोयला लोअर गोडवाना रॉक का हिस्सा है.
पहाड़ में कैल्केरियस है और कैलकेरिया शेड स्टोन से मिलकर पहाड़ का निर्माण हुआ है. जब समुद्र का पानी यहां काफी दूर से आया. पानी खारा होने के कारण कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा भी बढ़ गई और फिर कैल्शियम कार्बोनेट भी इस पहाड़ में है. यह पहाड़ करीब डेढ़ सौ मीटर ऊंचा है. इस पहाड़ के नीचे और उसके आसपास भारी मात्रा में इसी वजह से कोयला भी है.
200 मिलियन वर्ष से पुराना है रामगढ़ पहाड़
जियोलॉजिस्ट विमान मुखर्जी को जियोलाजी का 32 साल पुराना अनुभव है. उन्होंने NIT से एम टेक किया है और एक प्रोफेसर हैं. उन्होंने बताया कि रामगढ़ का पहाड़ 200 मिलियन वर्ष से भी अधिक पुराना है. इसका निर्माण कैल्शियम कार्बोनेट से हुआ है. इस पहाड़ को सुरक्षित रखने के लिए पहाड़ में नमी होना बहुत जरूरी है. यह नमी पेड़ों के होने से ही संभव है.
इसके साथ ही साथ पहाड़ के ऊपर मिट्टी का कवर होना भी जरूरी है. लेकिन जब कोल माइंस के कारण पेड़ों की कटाई हो रही है, तो इलाके में नमी में भी कमी आ रही है. जिसकी वजह से पहाड़ में आए दरार की चौड़ाई भी बढ़ रही है क्योंकि अब तक पहाड़ में जो दरार बना रहे थे वह स्वाभाविक वजह से बना रहे थे लेकिन पहाड़ को जिंदा रखने के लिए नमी की बेहद आवश्यकता है, पेड़ पौधे के जड़ों के माध्यम से जो नमी प्राप्त होती है.
उसमें माइंस की वजह से असर पड़ रहा है. अब ओपन कोल माइंस खोले जा रहे हैं, पेड़ काटे जा रहे हैं. यह अलग बात है कि पेड़ कटाई के बाद फिर से पौधे लगाने की बात होती है. लेकिन 50- 100 साल पुराने पेड़ जितनी नमी और मजबूती पहाड़ों को देते हैं और उनका साथ निभाते हैं, छोटे-छोटे पौधे वैसा पहाड़ को मजबूती नहीं दे पा रहें हैं.
पहाड़ को बचाने के लिए नमी जरूरी
विमान मुखर्जी ने बताया कि रामगढ़ का पहाड़ कठोर चट्टान से नहीं बना है बल्कि यह पहाड़ कैल्शियम कार्बोनेट के सहयोग से बना हुआ है ऐसे में इस पहाड़ में नमी होना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहां की पेड़ों की कटाई से हमारे ऐतिहासिक धरोहर समाप्त हो जाएंगे. माइंस की वजह से तो नीचे का सिलिका ऊपर आ जाता है और ऊपर की उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हो जाती है इसका भी बड़ा असर पड़ रहा है.
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ब्लास्टिंग और पेड़ो की कटाई से पहाड़ को नुकसान
विमान आगे बताया कि वनवासी और पहाड़ों में रहने वाले लोग पहाड़ का एक-एक दिन देख रहे हैं. कोई बाहर से आने वाला पहाड़ को एक दिन में नहीं समझ सकता है. ऐसे में गांव वालों और स्थानीय लोगों बातों को गंभीरता से समझना और भी जरूरी है, भले ही वे लोग एक्सपर्ट नहीं है और बहुत अधिक पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन पहाड़ को ब्लास्टिंग और पेड़ो की कटाई से नुकसान हो रहा है.
माइंस खुलने से सिर्फ कोयला ही नहीं निकल रहा है, बल्कि पानी भी जमीन के नीचे से निकल रहा है जो पानी पेड़ की जड़ों के माध्यम से पहाड़ को मजबूत बनाने का काम करते हैं. ऐसे में अब पेड़ की जड़ों के माध्यम से पहाड़ में नमी नहीं होगी तो पहाड़ में बने दरार और बढ़ेंगे. इससे पहाड़ धीरे-धीरे टूट कर गिरना शुरू हो जाएगा, जिससे बहुत बड़ा धरोहर नष्ट हो सकता है.
