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बारिश में बहा करोड़ों का ‘हरा सोना’, विभाग की लापरवाही से ग्रामीणों की मेहनत पर फिरा पानी

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बारिश में बह गया तेंदूपत्ता

CG News: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में हरा सोना याने तेंदूपत्ता संग्रहण को लेकर प्रशासनिक लापरवाही सामने आई है. भोपालपटनम ब्लॉक के इंद्रावती और चिंतावागु नदी किनारे खुले में सुखाए जा रहे तेंदूपत्तों की हजारों गड्डियां बारिश के पानी में बह गईं। यह घटना सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि योजनागत असफलता, विभागीय निष्क्रियता और जमीनी तैयारी की विफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है. सैकड़ों ग्रामीणों की महीनों की मेहनत एक झटके में तबाह हो गई, और प्रशासनिक गलती ने एक बार फिर वनों पर आश्रित जीवन को गहरे संकट में डाल दिया.

बारिश में बहा करोड़ों का ‘हरा सोना

मौसम विभाग द्वारा पहले ही क्षेत्र में भारी बारिश की चेतावनी दी जा चुकी थी. इसके बावजूद तेंदूपत्तों को सुरक्षित स्थान पर नहीं ले जाया गया. खुले में नदी किनारे रेत पर गड्डियां सुखाई जा रही थीं, जिन्हें बारिश ने पूरी तरह बहा दिया. यह सवाल उठाता है कि क्या विभाग ने चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया या फिर इस कार्य के प्रति उसकी उदासीनता थी?

सिस्टम की लापरवाही, सोता रहा विभाग

इस वर्ष तेंदूपत्ता संग्रहण की जिम्मेदारी ठेकेदारों से हटाकर वन विभाग को दी गई थी. कहा गया था कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और ग्रामीणों को सीधा लाभ मिलेगा, लेकिन विभाग न तो ग्रामीणों से तालमेल बैठा सका, न ही मौसम की मार से पत्तों को बचाने की कोई व्यवस्था कर पाया. सूत्रों के अनुसार विभाग के अधिकारी गड्डियों की गणना, भुगतान और संग्रहण की प्रक्रिया को लेकर पहले ही असमंजस में थे। कई स्थानों पर ग्रामीणों को भुगतान में देरी हुई, जिससे नाराजगी भी देखी गई. अब जब पत्ते बह गए, तो नुकसान का ठीकरा ‘बेमौसम बारिश’ पर फोड़ दिया गया.

बीमा का भरोसा, लेकिन सवाल बरकरार

वन विभाग भोपालपटनम के एसडीओ नितीश कुमार रावटे ने दावा किया है कि सभी फड़ों का बीमा कराया गया था और नुकसान की भरपाई बीमा कंपनी करेगी, लेकिन यह प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और तेज होगी, इस पर ग्रामीणों को संशय है. पहले भी कई बार देखा गया है कि बीमा कंपनियों से मुआवज़ा प्राप्त करने में महीनों लग जाते हैं.

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तेलंगाना-महाराष्ट्र को फायदा, छत्तीसगढ़ को घाटा

विभाग की असफलता का असर तेंदूपत्तों की अवैध बिक्री पर भी पड़ा है. जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ से बड़ी मात्रा में तेंदूपत्ता तेलंगाना और महाराष्ट्र के बाजारों में बिना किसी रोकटोक के जा रहा था। विभाग न तो इसकी निगरानी कर पाया, न ही वैध संग्रहण पर नियंत्रण रख सका.

ग्रामीणों की मेहनत पर पानी फिरा

पोषड़पल्ली, करकावाया, बामनपुर, गोरगुंडा, अर्जुनल्ली जैसे इलाकों में सैकड़ों ग्रामीणों ने तपती गर्मी में पत्तों को तोड़ा, बांधा और सुखाया. इनकी मेहनत एक झटके में बह गई. न तो उन्हें मेहनताना मिला, न ही पत्तों की कीमत. कई ग्रामीणों ने विभाग पर आरोप लगाया कि समय रहते उन्हें चेतावनी नहीं दी गई और पत्तों को स्थानांतरित करने की कोई व्यवस्था नहीं थी.

कागजों पर योजनाएं, ज़मीन पर लापरवाही

छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता सिर्फ एक वानिकी उत्पाद नहीं, बल्कि लाखों ग्रामीण परिवारों की आजीविका का आधार है। इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया कि योजनाओं को सिर्फ कागज़ी नहीं होना चाहिए, उसे ज़मीन पर भी उतारना जरूरी है। वन विभाग की लापरवाही ने ग्रामीणों को निराशा दी है. जरूरत इस बात की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके.

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