CG News: दीपावली के बाद पहले शुक्रवार को मनाए जाने वाले गंगरेल मड़ई में अनोखी आस्था देखने को मिलती है. यहां पर मां अंगार मोती परिसर में छत्तीसगढ़ी नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी पहुंचीं महिलाएं संतान सुख की प्राप्ति के लिए जमीन पर नारियल लेकर दण्डवत लेटी हुई नजर आती हैं. एक नहीं बल्कि सैकड़ों महिलाएं क्रमबद्ध लेटे हुई रहती हैं. वहां के मुख्य पुजारी बैगा उन पर चलते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं. इस दौरान 52 गांव के देवी-देवता भी पहुंचते हैं.
क्या है मान्यता
दरअसल, गंगरेल में विराजी मां अंगार मोती की आस्था दिन-ब-दिन प्रख्यात होती जा रही है. माता की आस्था ऐसी है कि जो भी भक्त मनोकामना लेकर यहां पहुंचते हैं उनकी मुराद जरूर पूरी होती है. कहा जाता है कि माता निःसंतान दंपति को संतान सुख की प्राप्ति देती हैं. यहां के पुजारी तुकाराम मरकाम ने बताया कि गंगरेल में पहले शुक्रवार यानी दीपावली के बाद पड़ने वाले पहले शुक्रवार को मड़ई मेले का आयोजन होता है. जहां पर 52 गांव के देवी-देवता पहुंचते हैं. यहां पर डांग लेकर बैगा आते हैं. आंगा देव का भी आगमन होता है. मड़ई में देवी-देवताओं द्वारा परिसर के ढाई चक्कर लगाए जाते हैं.
अलग-अलग राज्यों से मोकामना लेकर आती है महिलाएं
आदिवासी वाद्य यंत्रों पर थिरकते हुए बैगा मां अंगार मोती परिसर पहुंचते हैं. यहां पर मां अंगार मोती मंदिर से लेकर मंदिर के प्रवेश द्वार तक महिलाओं की लंबी कतार लगी रहती हैं. महिलाएं अपने हाथों पर फूल और नारियल रखी रहती हैं. जब यहां के मुख्य बैगा मंदिर पर प्रवेश करते हैं उस दरमियान महिलाएं दंडवत लेट जाती हैं, बैगा उन पर चलते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं. ज्यादातर महिलाएं संतान सुख की प्राप्ति के लिए मनोकामना लेकर पहुंचती हैं. धमतरी नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के अन्य जिले व अन्य राज्य से भी महिलाएं पहुंचती हैं. बैगाओं ने त्रिशूल, कासल और सांकल को पकड़कर अपनी संस्कृति को प्रदर्शित किया.
जमीन पर लेटकर पूरी करती हैं मनोकामना
परंपरा के अनुसार, बैगाओं का दावा है कि ये सभी महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना लेकर मंदिर के मार्ग पर पेट के बल जमीन में लेटी रहीं. प्रत्येक महिला खुले बाल रखकर, हाथों में फूल, नींबू और नारियल पकड़े हुए थीं. मंदिर के पुजारी तुकाराम नेताम ने बताया कि महिलाओं द्वारा जमीन पर लेटने की परंपरा सदियों पुरानी है. यह प्रथा खासतौर पर उन महिलाओं के लिए होती है, जिन्हें लंबे समय से संतान नहीं हो रही है. वे मड़ई के दिन मां अंगार मोती के दरबार में जमीन पर लेटकर मन्नत मांगती हैं. आस्था ऐसी है कि जो भी उनके समक्ष कामना करता है, मनोकामना पूरी होती है.
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साल 1978 से मनाई जा रही प्रथा
अंगार मोती मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष जीवराखन मरई ने बताया कि पहले यह मड़ई चंवर में हुआ करती थी, लेकिन बांध बनने के बाद चंवर डूब गया. वर्ष 1978 से यह मड़ई गंगरेल में लग रही है. इस बार 800 से ज्यादा महिलाओं ने पंजीयन करवाया था. इसके बाद भी कई महिलाएं बगैर पंजीयन के भी शामिल हुई हैं.
