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छत्तीसगढ़ में इस समाज के लोग दिवाली के 10 दिन बाद मनाते हैं त्योहार, जानिए क्‍या है परंपरा

Diwali After 10 Days Dev Uthani Ekadashi Connection Unique Festival Traditionइ

जनजातीय समाज दिवाली

Unique Diwali Tradition: छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में बड़ी संख्या में जनजातीय समाज के लोग निवास करते हैं. जनजातीय समाज के लोग अपनी अनोखी परंपराओं के लिए खूब मशहूर हैं. उन्हीं में से एक परंपरा दिवाली से जुड़ी हुई है. इस परंपरा के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. बता दें कि, सरगुजा संभाग में रहने वाले जनजातीय लोग दीपावली का त्योहार दिवाली के दिन नहीं बल्कि उसके दस दिन बाद कार्तिक अमावस्या के दिन मनाते हैं.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं. इसी वजह से इस समाज के लोग दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा अकेले नहीं करते बल्कि देव उठनी एकादशी के दिन माता लक्ष्मी और नारायण दोनों की पूजा साथ में करने की परंपरा है.

दस दिन बाद मनाई जाती है दिवाली

जनजातीय समाज के साथ-साथ सरगुजा में रहने वाले अहीर, साहू एवं अन्य जातियों के लोग भी इसी मान्यता का पालन करते हैं. सभी लोग दिवाली के ग्यारह दिन बाद देवउठनी एकादशी को दिवाली मनाते हैं. इस समाज के लोग गाय को लक्ष्मी मानते हैं और लक्ष्मी के रूप में गाय का पूजन करते हैं. इसी दिन जनजातीय समाज में गुरु-शिष्य परंपरा का भी पालन किया जाता है. झाड़-फूंक करने वाले बैगा गुनिया इसी दिन अपने शिष्यों को मंत्र देते हैं. इसी दिन शिष्य गुरु का पूजन कर उन्हें भोजन कराकर कपड़े भी भेंट करते हैं.

लोक गीत गाकर मनाते हैं त्‍योहार

दस दिन बाद मनाई जाने वाली दिवाली के लिए समाज के लोग कई तरह के आयोजन करते हैं. इस दिन लोक कला सोहराई का धूमधाम से आयोजन किया जाता है. इतना ही नहीं इस मौके पर लोक नृत्य भी किए जाते हैं. दिवाली पर पूरा सरगुजा संभाग लोक गीतों से गूंज उठता है.

एकादशी के दिन मनाया जाता है सोहराई पर्व

सरगुजा की लोक कलाओं पर रिसर्च करने वाले साहित्यकार अजय कुमार चतुर्वेदी बताते हैं कि दिवाली का त्योहार भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. आध्यात्मिक रूप से यह अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है. सरगुजा के जनजातीय ग्रामीण अंचल में दीपावली के 10 दिन बाद देवउठनी एकादशी तिथि को सोहराई पर्व के नाम से दिवाली मनाई जाती हैं इसे यहां के जनजातीय लोग देवउठनी सोहराई कहते हैं.

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साहित्यकार रंजीत सारथी सरगुजा में रहने वाले जनजातीय समाज के लोगों के जीवन पर रिसर्च करते हैं और उनको करीब से जानते समझते हैं. समाज से जुड़े लोगों का मानना है कि इसी दिन देवता उठते हैं, तो ऐसी मान्यता है की जब देवता उठेंगे तभी पूजा शुरू होगी. माता लक्ष्मी के रूप में गाय की पूजा करते है. इसी दिन धान रखने वाले कोठार की भी पूजा की जाती है.

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