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Balod: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में जमीन फाड़कर बाहर निकले भगवान गणेश! 100 साल पुराना है इतिहास

balod ganesh mandir chhattisgarh

भगवान गणेश

Balod Ganesh Mandir: भारत मे न जाने कई ऐसे रहस्यमयी मंदिर हैं जिनका इतिहास कई सदियों पुराना है. कई ऐसे मंदिर हैं जिनका रहस्य अब तक किसी को नहीं पता और कुछ मंदिरों के पीछे की कहानी रोमांच और रहस्यों से भरी हुई है. उन्हीं रहस्यों और इतिहास की कहानियां समेटे छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान गणेश जमीन फाड़कर बाहर निकले हैं और इतना ही नहीं गणेश जी की मूर्ति का आकार लगातार बढ़ रहा है. जिसकी वजह से मंदिर का गुम्मद काफी ऊंचा बनाया गया है.

होती है मनोकामना पूरी

दरअसल छत्तीसगढ़ के बालोद जिला में भगवान गणेश का एक ऐसा मंदिर हैं, जहां मान्यता है कि यहां आने से नि:संतान लोगों की मनोकामना पूरी होती है. इतना ही नही अगर आप किसी कष्ट से गुजर रहे हैं तो इस मंदिर में आकर भगवान गणेश की सच्चे मन से पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. यह गणेश मंदिर बालोद के मरार पर स्थित है. इस मंदिर की मान्यताएं पूरे में प्रचलित हैं. दूर-दूर लोग भगवान गणेश की पूजा करने यहां आते हैं.

जमीन फाड़कर खुद प्रकट हुए भगवान गणेश

ऐसी मान्यताएं है कि इस मंदिर का इतिहास 100 साल से भी पुराना है. ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश इस स्थान पर खुद जमीन फाड़कर प्रकट हुए हैं. तबसे भगवान गणेश की मूर्ति लगातार बढ़ती जा रही है. शायद यही वजह है कि भगवान गणेश की इस मूर्ति को लोग मनोकामना मूर्ति नाम से भी जानते हैं. भगवान गणेश की इस प्राचीन मूर्ति को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. भगवान गणेश की इस मंदिर को लोग जमीन फोड़ गणेश मंदिर के नाम से जानने लगे हैं. क्योंकि भगवान गणेश स्वयं जमीन फोड़कर बाहर निकले और धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं. इसलिए यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है. मूर्ति का आकार बढ़ने की वजह से मंदिर का छत भी पहले से ऊंचा बनाया गया है. कभी-कभी तो जमीन में दरारें पड़ती रहती हैं, जब भगवान गणेश की मूर्ति बढ़ती है.

100 साल पुराना इतिहास

पार्षद व मंदिर के सदस्य सुनील जैन ने बताया कि ऐसी मान्यतायें है कि मरारापारा (गणेश वार्ड) में लगभग 100 साल पहले जमीन के भीतर से भगवान गणेश प्रगट हुए थे. पहले बाफना परिवार के किसी सदस्य के सपने में बप्पा आए थे. गांव के ही रहने वाले सुल्तानमल बाफना और भोमराज श्रीमाल की नजर सबसे पहले इस मूर्ति पर पड़ी. जिसके बाद दोनों व्यक्तियों ने स्वयं-भू गणपति के चारों ओर टीन शेड लगाकर एक छोटा-सा मंदिर बनाया था. इसके बाद लोगों की आस्था बढ़ती गई और मंदिर का विस्तार होता गया. इन दोनों के निधन के बाद से उनका परिवार व मोरिया मंडल परिवार के सदस्य मंदिर की देखरेख करते आ रहे है.

लगातार बढ़ रहा है मूर्ति का आकार

लोग बताते हैं कि स्वयं-भू भगवान गणेश के घुटने तक का कुछ हिस्सा अभी भी जमीन के भीतर है. पहले भगवान गणेश का आकार काफी छोटा था. लेकिन धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. आज बप्पा विशाल स्वरूप में हैं. गणपति का आकार लगातार बढ़ता देख भक्तों ने वहां पर मंदिर बनाया है. मंदिर में दूरदराज के लोग अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस स्वयंभू गणेश की पूजा कर मनोकामना मांगते हैं, उनकी मनोकामना पूरी भी होती है.

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