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Balod News: कहानी छत्तीसगढ़ के उस ‘मंदिर’ की, जहां लोग डायन की करते हैं पूजा

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डायन माता का मंदिर

Balod News: छत्तीसगढ़ को यहां की संस्कृति और मान्यताओं के कराण पूरे देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान से लोग जानते हैं. वहीं छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के रीति-रिवाज और आदिवासी बाहुल्य वनांचलों की परंपरा और मान्यता भी किसी से छिपी नहीं है. ऐसी मान्यता है कि बालोद जिले (Balod District) के झिंका गांव के लोग एक डायन को अपने आस्था के तौर पर पूजते हैं.

दूर-दूर से लोग ‘डायन’ की पूजा करने पहुंचते हैं

वैसे तो लोग डायन को बुरी शक्ति मानते हैं. लेकिन झिंका गांव के लोगों की आस्था डायन माता में है, जिसका एक मन्दिर सिकोसा से अर्जुन्दा जाने वाले रास्ते पर है, इस मंदिर को परेतिन माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि सैकड़ो साल पहले से उनके पूर्वज परेतिन माता को मानते और पूजते आ रहे हैं. उसी परम्परा को ग्रामीणों ने बरकरार रखा है.

मंदिर से गुजरने वाले लोगों को करना होता है दान

दशकों से इस मंदिर की मान्यता है कि इस रास्ते से कोई भी वाहन या लोग गुजरते हैं, तो दान के रूप में मन्दिर के पास कुछ छोड़ना होता है. लोगों का मानना है कि कोई व्यक्ति अगर ऐसा नहीं करता है तो उसके साथ कुछ न कुछ अप्रिय घटना घटित हो सकती है. इस रास्ते से गुजरने वाले दोपहिया-चारपहिया वाहन चालक अगर परेतिन माता को प्रणाम नहीं करते तो उसकी गाड़ी बंद हो जाती है. फिर वापस परेतिन माता के पास नारियल चढ़ाने पर गाड़ी अपने आप चालू हो जाती है.

ग्रामीणों ने क्या कहा

झिंका गांव के रहने वाले तिलक बताते हैं कि उसकी उम्र अभी 40 साल है. वह बचपन से इस रास्ते से दूध बेचने जाते हैं. उनके पिता ने परेतिन माता के मंदिर में दूध छोड़ने के लिए उन्हें बताया है. इसके कारण वह हर रोज थोड़ा दूध परेतिन माता के पास छोड़ते हैं. एक दिन भूलकर उन्होंने परेतिन माता के पास दूध नहीं छोड़ा तो आधे रास्ते मे उसका दूध खराब हो गया था.

भक्तों की मनोकामना होती है पूरी

वैसे तो किसी भी मंदिर में सच्चे मन से भक्त अपनी मुराद लेकर पहुंचते हैं तो उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है. कुछ इसी तरह झिंका गांव के परेतिन माता की भी मान्यता है. यहां सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं और वह पूरी हो जाती है.

नवरात्रि के समय होती है इस मंदिर में विशेष पूजा

चैत्र नवरात्रि में परेतिन माता के दरबार में विशेष आयोजन किए जाते हैं जहां पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है और नवरात्रि के 9 दिन बड़ी संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है. भले ही मान्यता अनूठी हो लेकिन सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा और मान्यता आज भी इस गांव में कायम है.

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