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CG News: बीजापुर में नक्सलियों की कायरना करतूत, जनअदालत लगाकर ग्रामीण को उतारा मौत के घाट

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नक्सली

CG News: बीजापुर जिले में नक्सलियों ने जनअदालत लगाकर ग्रामीण को मौत के घाट उतारा है. पुलिस मुखबिरी का आरोप लगाकर भैरमगढ़ एरिया कमेटी के नक्सलियों ने वारदात को अंजाम दिया गया है. यह मामला जांगला थाना क्षेत्र का है.

अब तक 50 से ज्यादा ग्रामीणों की हुई हत्या

कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक मुखबिरी का आरोप लगाकर नक्सलियों ने जनवरी 2024 से लेकर अब तक अलग अलग नक्सल प्रभावित जिलों के 50 से अधिक ग्रामीणों की हत्याएं की हैं । इस तरह के आरोप लगाकर नक्सलियों के हाथों किए जाने वाली अधिकतर हत्याओं की तरफ देखें तो ये बात सामने आती है कि नक्सली जनअदालत लगाते हैं जहां जनता तय करती है कि जिसे नक्सली मुखबिर कह रहे हैं, जनता तय करती है कि उस व्यक्ति की हत्या कर दी जाए । जनअदालत का सीधा और स्पष्ट अर्थ यही निकलकर आता भी है कि जनता की अदालत है और जनता ही तय

क्या होती है नक्सलियों की जन अदालत?

दूसरी तरफ़ सुरक्षा बलों के आधिकारिक बयानों और ऐसे सूत्र हैं जो बताते हैं कि नक्सली जिसे जन अदालत का नाम देते हैं, हक़ीक़त में वैसा कुछ होता ही नहीं है, बल्कि होता ये है कि अति नक्सल प्रभावित गांवों के ग्रामीणों को नक्सलियों के द्वारा एकत्रित किया जाता है, नक्सली हथियार लिए मौजूद रहते हैं, उनके कुछ साथी लाठी डंडे, कुल्हाड़ी, फरसे और छुरे रखे होते हैं जहां नक्सली अपनी दहशत बरकरार रखने के लिए किसी व्यक्ति पर मुखबिर होने का आरोप लगाते हैं और उसे बुरी तरह पीटपीटकर मार दिया जाता है या फिर कुल्हाड़ी, फरसे या छुरे से गर्दन काटकर या घोंपकर हत्या कर दी जाती है.

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बताया तो ये भी जाता है कि नक्सली ग्रामीणों के बीच यह कहते हैं कि वे जनता की मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं, सरकार ग्रामीणों के संसाधनों को, वन संपदा को लूटना हड़पना चाहती है, पुलिस कानून के नाम पर आम लोगों को नुकसान पहुंचाती है ! इस तरह के हालातों से बचाने के लिए नक्सली ख़ुद को जनता के योद्धा बताते हैं. इसी मसले पर सुरक्षा बलों का आधिकारिक रुख बहुत स्पष्ट देखा गया है कि नक्सली इस तरह के पैंतरों का इस्तेमाल करके मासूम ग्रामीणों को भटकाने, डराने और आंतरिक सुरक्षा में खतरे पैदा करने के लिए करते हैं.
यहां पर माओ का वह विचार याद आ जाता है जहां माओ सत्ता को बंदूक के दम पर हथियाने की राय रखते दिखाई देते हैं ; “सत्ता बंदूक की नली से निकलती है !”
तो माओ से एक प्रश्न यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्या सत्ता तक पहुंचने का रास्ता ग्रामीणों के बीच दहशत पैदा करने वाली नृशंस हत्याओं से होकर गुज़र रहा है ? यदि माओवादी विचारधारा में वर्ग संघर्ष की बात कही जा रही होती है तो वह कौन सा वर्ग है जिसे सबसे अधिक नुकसान माओ के मार्ग पर उठाना पड़ रहा है ?

अभी बीजापुर जिले के जांगला थाना क्षेत्र के जंगल में बसे गांव पोटेनार में जिस युवक की हत्या नक्सलियों ने की है, क्या यह ज़रूरी है कि उस युवक का नाम लिख दिया जाना चाहिए और यह प्रश्न तब उठता है जब ऐसी हत्याओं के आंकड़ों पर ध्यान चला जाता है । एक रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2024 से लेकर अब तक नक्सलियों ने 50 से अधिक लोगों की हत्याएं सिर्फ मुखबिरी के आरोप लगाकर ही किए हैं और माओवादी गतिविधियों के भारतीय इतिहास पर नज़र डाली जाए तो यह आंकड़ा कहां पहुंचता होगा, कितने मृतकों के नाम ऐसे होंगे जिन्हें वाकई पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज किया गया होगा ?

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