CG News: छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले का एक छोटा सा कस्बा अपनी समृद्धि, अनोखी कहानियों और राजाओं की विरासत के लिए जाना जाता है. इन दिनों येह कस्बा एक साधु और 7 भालुओं की दोस्ती को लेकर चर्चा में है. साधु सीताराम यहां राजा माड़ा की गुफा में भालू के साथ रहते हैं. उन्होंने सभी का नाम भी रखा है, जो एक पुकार में उनके पास आ जाते हैं. ये भालू ही अब उनका परिवार बन गए हैं, खाना खाने और दुलार के लिए उनके पास आते हैं.
भालू और साधु की अनोखी कहानी
भरतपुर की गुफाओं में स्थित राजा माड़ा की धरोहर का एक दिलचस्प किस्सा साधु सीताराम और भालुओं से जुड़ा हुआ है. साल 20213 में साधु सीताराम मध्य प्रदेश के शहडोल जिले से आए और रहने लगे. उनका मानना है कि उन्होंने यहां भालू को अपना दोस्त और भगवान माना. साधु सीताराम ने बताया कि उन्होंने भालू का नाम ‘राम’ रखा और धीरे-धीरे भालू का परिवार बढ़ता गया. यह भालू साधु के पास दोपहर के समय अपने परिवार के साथ आता है. इस दौरान सीताराम भालू के परिवार को सत्तू और बिस्किट खिलाते हैं.
भालुओं के रखें नाम
भरतपुर में राजा माड़ा की ऐतिहासिक धरोहर और साधु सीताराम की भालुओं से मित्रता न केवल एक रहस्यमयी कथा है, बल्कि एक अद्वितीय धार्मिक आस्था का प्रतीक बन चुकी है. साधु सीताराम ने भालू के परिवार के सदस्यों का हिंदू रीति-रिवाज से नामकरण किया है. उन्होंने लल्ली, मुन्नू, चुन्नू, गल्लू, सोनू, मोनू, और सत्तानंद नाम दिए हैं.
ऐतिहासिक धरोहर
राजा माड़ा की धरोहर में स्थित गुफा एक 200 मीटर लंबी संरचना है, जिसमें चार कमरे हैं. यह गुफा कभी राजा का विश्राम स्थल हुआ करती थी, लेकिन अब इसकी स्थिति दयनीय हो चुकी है और इसमें जहरीले सांप और अन्य जहरीले जानवर भी रहने लगे हैं. इसके बाद भी साधु सीताराम का भालुओं के साथ प्रेम और उनकी सेवा का जज्बा कम नहीं हुआ. लोग इसे देवी चमत्कार मानते हुए दूर-दूर से भालुओं के दर्शन करने यहां पहुंचते हैं.
बड़ी संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु
राजा माड़ा का शासनकाल न्याय और सुरक्षा के दृष्टिकोण से उल्लेखनीय रहा. वे प्रजा के हर वर्ग का ध्यान रखते थे और अपने दरबार में किसी को भी न्याय मांगने का अवसर देते थे. डाकुओं और लुटेरों के आतंक के बावजूद राजा माड़ा ने अपने राज्य की रक्षा हेतु हर संभव उपाय किए और अपने सैनिकों को मजबूत बनाया. उनका यह साहस और न्यायप्रियता ही उन्हें प्रजा का प्रिय बनाती थी, लोग उन्हें परिवार का हिस्सा मानते थे. ये भालू कुटिया में आने वाले भक्तों को कोई हानि भी नहीं पहुंचाते. साथ ही भक्तों के लिए एक आस्था का केंद्र बन गए हैं. साधु के अनुसार, यहां 33 कोटि देवी-देवता भी विराजमान हैं और भक्तों को साधारण वेशभूषा में आने की सलाह दी जाती है.
एक आस्था का केंद्र
स्थानीय निवासी संतोष कुमार यादव और गेंदालाल का कहना है कि भालू और साधु की मित्रता ने लोगों के बीच एक नई आस्था को जन्म दिया है. दिल्ली और मुंबई से भी लोग इस अद्भुत मित्रता को देखने आते हैं. भालू का परिवार दिन के समय जंगल में रहता है, लेकिन दोपहर 2 बजे के बाद वे साधु की कुटिया में भोजन के लिए लौटते हैं.