Chhattisgarh News: बिलासपुर जिले के जांजगीर चांपा को छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से जाना जाता हैं. धार्मिक नगरी भगवान लक्ष्मण को छय रोग होने पर इस शिवलिंग की स्थापना की गई थी, इसलिए इसे लक्ष्मणेश्वर महादेव कहते हैं. इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र होने के कारण इसे लक्षलिंग के नाम से भी जाना जाता है. के दर्शन के लिए सावन के दूसरे सोमवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है. हर-हर महादेव के नारें से मंदिर गूंज रहा हैं. सावन महीने के इस अवसर पर हर कोई भगवान शिव की अराधना करने में लगा हुआ है. भगवान लक्ष्मणेश्वर को आकर्षक तरीके से सजाया गया है. जिससे सभी भक्त शिव भक्ति के रंग में रंग गए हैं.
यहां शिवलिंग में है, एक लाख छिद्र
जिले के खरौद नगर में स्थित लक्ष्मणेश्वर मंदिर एक ऐतिहासिक और अद्भुत मंदिर है. इस मंदिर के शिवलिंग में एक लाख छिद्र पाया गया हैं , जिसका पातालगामी होने का विशेष महत्व माना जाता हैं . जब भी जल इस शिवलिंग में डाला जाता है, वह सब छिद्रों में समा जाता है. इसके साथ ही, यहां एक छिद्र अक्षय कुण्ड भी है जिसमें जल हमेशा भरा रहता है और इसी कारण इसे लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है. लक्ष्मणेश्वर मंदिर का लक्षलिंग जमीन से करीब 21 फीट ऊपर है, और इसे स्वयंभू भी कहा जाता है, जो कि इस स्थान को और भी विशेष बनाता है. यहां संतान प्राप्ति की बड़ी मान्यता है, जिसके लिए भक्त देश के कोने-कोने के साथ-साथ विदेश से भी पहुंचते हैं. लक्ष्मणेश्वर महादेव में एक लाख छिद्र होने के कारण लाख चावल चढ़ाने का विशेष महत्व है. लोग मनोकामना पूरी करने के लिए चावल के एक लाख दाने, कपड़े की थैली में भरकर चढ़ाते हैं. इस चावल को लाख चाउर या लक्ष चावल भी कहा जाता है.
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ऐसे पड़ा लक्ष्मणेश्वर महादेव नाम
सबसे विशेष बात यह है कि भगवान लक्ष्मण को छय रोग होने पर इस शिव लिंग की स्थापना की गई थी, इसलिए इसे लक्ष्मणेश्वर महादेव कहते हैं. इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र होने के कारण इसे लक्षलिंग के नाम से भी जाना जाता है. सावन के महीने में शिवजी की पूजा और अभिषेक करना बेहद शुभ माना जाता है और इस महीने में अभिषेक करना अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक फलदायी माना जाता है, यही वजह है कि इस महीने में बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन गंगा से जल लाकर शिव जी का अभिषेक करते हैं. माना जाता है की भगवान राम ने यहां पर खर और दूषण का वध किया था और इसलिए इस जगह का नाम खरौद पड़ा. खरौद नगर में प्राचीन कालीन अनेक मंदिरों की उपस्थिति के कारण इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है.