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Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में 10 साल बाद भी नहीं तैयार 1200 करोड़ रुपए की अरपा भैंसाझार परियोजना, विभागों के भ्रष्टाचार का बना जरिया

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अरपा भैंसाझार नहर

Chhattisgarh News: बिलासपुर में एक ऐसी नहर है जो पिछले 10 साल बाद नहीं बन पाई है. यही वजह है कि कोई 1200 करोड़ रुपए की लागत वाली इस अरपा भैंसाझार परियोजना को जल संसाधन के अधिकारी, राजस्व, खनिज विभाग ने भ्रष्टाचार का जरिया बना लिया है. कोई 50 से अधिक गांव के खेतों में पानी पहुंचाने की योजना में लगातार फर्जीवाड़े फूट रहे हैं. कभी उन कथित किसानों को मुआवजा देने के नाम पर जो फैक्ट्रियां और पेट्रोल पंप चला रहे हैं, तो कभी उन रसूखदारों को जिनकी जमीनों को एकड़ में नहीं लेकर स्क्वायर फीट के हिसाब से मुआवजा देने की योजना तैयार हुई. कुल मिलाकर सिर्फ इसी काम में 10 करोड़ रुपए का घोटाला फूट चुका है लेकिन अभी तक सिर्फ एक पटवारी के अलावा बड़े अधिकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है. उल्टे इस मामले में शामिल अधिकारियों को पदोन्नति किया जा रहा है और ऐसे में इस बात को लेकर सवाल उठाना की क्या सरकारी तंत्र भी इस गड़बड़ी में मिला हुआ है लाजमी है.

भू-अर्जन के नाम पर 10 करोड़ का घोटाला

नहर के नाम पर चल रही इस परियोजना में सबसे पहले राजस्व विभाग ने बड़ा कारनामा किया है. राजस्व विभाग की टीम ने मिलकर कहीं ऐसे लोगों को लाभ पहुंचाया है जिनकी या तो जमीन नहीं थी या थी तो उन्हें अधिक दामों पर अधिग्रहित किया गया और कोई 10 करोड़ रुपए की गड़बड़ी सामने आई. इस गड़बड़ी में आठ अधिकारियों के नाम भी शामिल हैं, जिनमें कुछ अधिकारी रिटायर्ड हो चुके हैं तो कुछ निलंबित चल रहे हैं.

ये अधिकारी मिले दोषी

सरकार की जांच रिपोर्ट के मुताबिक 10 करोड रुपए की गड़बड़ी में जिन अधिकारियों के नाम शामिल है उनमें आरएस नायडू एवं अशोक कुमार तिवारी, तत्कालीन कार्यपालन अभियंता जल संसाधन संभाग कोटा, आरके राजपूत, उप अभियंता, जल संसाधन विभाग, आरपी द्विवेदी, तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी, जल संसाधन अनुभाग तखतपुर, मोहरसाय सिदार,तत्कालीन अतिरिक्त तहसीलदार सकरी, कीर्ति सिंंह राठौर एवं आंनदरूप् तिवारी, तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी एवं भू अर्जन अधिकारी कोटा राहुल सिंह राजस्व निरीक्षक दिलशाह हैं.

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अभी क्या है हालात

इस योजना में नहर का काम अभी भी अधूरा है. पानी का फ्लो सही तरीके से नहीं चल रहा है. किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है. कई जगह आधी अधूरी नहर का निर्माण किया गया है जिसके कारण पलारी यानी वह व्यवस्था जिससे किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाना है अधूरा है. इसके अलावा नहर में जगह-जगह गाद जमी हुई है. घास फूस सूख चुके हैं ऐसे में पानी आने पर कैसे फ्लो सही होगा इस बात को लेकर सवाल है.

600 करोड़ से शुरू हुई योजना पहुंच गई 1200 करोड़ तक

अरपा भैंसाझार परियोजना जब शुरू हुई तब यह योजना 600 करोड़ रुपए की थी लेकिन 10 साल में यह 1200 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है और कुल मिलाकर ठेकेदार को लाभ दिलाने का खेल आज भी जारी है. बड़ी बात यह है कि अधिकारी अभी भी यह कब तक कंप्लीट होगा उसे लेकर स्पष्ट स्थिति देने और बातचीत करने को तैयार नहीं है. हर बात को शासन स्तर की बात कहकर मामले से पल्ला झाड़ रहे हैं. आने वाले दिनों में 1200 करोड रुपए की यह योजना में और पैसे लगेंगे इस बात की पूरी गुंजाइश पैदा की जा रही है.

किस विभाग की क्या भूमिका

जिस तरह योजना की शुरुआत में राजस्व विभाग ने भूमि अधिग्रहण में 10 करोड़ का घोटाला किया इस तरह जल संसाधन विभाग ने लगातार प्रोजेक्ट में पैसा बढ़ाकर ठेकेदार को लाभ पहुंचाया इसके अलावा खनिज विभाग ने निर्माण के दौरान कई गांव में गहरे गड्ढे करवा दिए हैं जिसमें से मुरूम और मिट्टी निकाली गई है जिसके रियल्टी रकम का चूकता नहीं हो पाया है. यही वजह है कि तीन विभाग के अधिकारी मिलकर इस भ्रष्टाचार को अंजाम तक पहुंचा रहे हैं.

जल संसाधन विभाग चीफ इंजीनियर ने दी जानकारी

जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर जेआर भगत ने बताया कि अरपा भैंसाझार परियोजना में नहर निर्माण का काम चल रहा है यह पूरा कब होगा शासन स्तर से पता लगेगा. जिन अधिकारियों ने गड़बड़ी की है उनके खिलाफ भी कार्यवाही शासन स्तर से होनी है. हमारे उच्च अधिकारी ही इस मामले में अधिकृत तौर पर कोई जानकारी दे सकते हैं.

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