Chhattisgarh News: एक काल्पनिक तारीख दर्शाते हुए माओवादियों के केंद्रीय कमेटी ने 32 पन्नों में पोलित ब्यूरो प्रमुख आनंद की पूरे जीवन इतिहास की प्रशंसा करते हुए, आनंद उर्फ़ कटकम सुदर्शन की मौत की जानकारी दी है. पहले पन्ने के ब्यौरे में बताया गया है कि लंबे समय से आनंद को सांस, शुगर और ब्लड प्रेशर की बीमारियां थी, और अंत में हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई है. जिस काल्पनिक तारीख का ज़िक्र माओवादियों ने उनकी मौत को लेकर किया है. वह तारीख 31 मई 2023 बताई गई है जबकि आनंद को समर्पित यह बुकलेट इसी साल के मई महीने में जारी की गई है. इसके अलावा माओवादियों ने एक प्रेस नोट जारी किया है. जिसमें उन्होंने “विश्व कगार विरोधी दिवस” का जिक्र करते हुए 1 जुलाई 2024 के दिन इसे मनाने की बात लिखी है.
नक्सलियों ने जारी किया प्रेस नोट
नक्सलियों की तरफ से जारी किए जाने वाले प्रेस नोट पर काफी लंबे अरसे से पुलिस की तरफ से कोई बयान नहीं दिया गया है, पुलिस के अधिकारी मानते हैं नक्सलियों की तरफ से जारी प्रेस नोट इतने भी महत्वपूर्ण नहीं होते हैं, कि पुलिस का आधिकारिक बयान जारी किया जा सके. पुलिस विभाग में पदस्थ सूत्र बताते हैं कि नक्सलियों की तरफ से जारी प्रेस नोट दरअसल एक मनोवैज्ञानिक हथियार होते हैं और सुरक्षाबलों के अधिकारी जानते हैं कि माओवाद अब काफी कमजोर पड़ चुका है.
प्रेस नोट में “अंतरराष्ट्रीय भाईचारा कमेटी” का भी जिक्र
इस बार जारी प्रेस नोट में माओवादियों ने “अंतरराष्ट्रीय भाईचारा कमेटी” नाम का ज़िक्र किया है, इस कमेटी का ज़िक्र माओवादियों ने पहली बार किसी प्रेस नोट में किया है.
इस प्रेस नोट में इटली में संपन्न जी 7 समूह के सम्मेलन का भी ज़िक्र करते हुए लिखा गया है कि इस दौरान ऑपरेशन कगार विरोधी रैली का आयोजन भी किया गया था. इसके ठीक पहले माओवादियों के केंद्रीय कमेटी लिखती है कि अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कुछ देश भारत सरकार से ये मांग भी कर रहे हैं कि वह ऑपरेशन कगार पर रोक लगाए. केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने मुठभेड़ों को सीधे तौर पर नरसंहार कहते हुए अलग-अलग घटनाओं में मारे जाने वाले नक्सली सदस्यों को 125 से अधिक क्रांतिकारी जनता कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से शांतिवार्ता की बात छल कपट है. कगार सैनिक हमलों के खिलाफ या विरोध करने वालों को केंद्रीय कमेटी की तरफ से लाल सलाम कहा गया है. बहरहाल खबर लिखे जाने तक बस्तर के माओवाद प्रभावित क्षेत्र में शांति बहाली की ज़रूरत माओवादी प्रेस नोट और बस्तर में व्याप्त अशांति से कहीं ज़्यादा तौर पर महसूस की जा रही है.