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Chhattisgarh: सिंचाई पर निर्भर है सुकमा जिले का विकास, सरकार सिंचाई परियोजना पर कर रही काम

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Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ प्रदेश के सुदूर दक्षिणी छोर में बसा जिला सुकमा, जहां की ज्यादातर जनसंख्या आदिवासियों की है. जो राज्य की पहचान है. हमने देखा है, पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में शासन ने सिंचाई को प्राथमिकता से काम किया है और कृष्णा नदी में कई डैम बनाए गए जिसके कारण आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य के कई जिलों को सिंचाई और बिजली की समुचित व्यवस्था हो रही है. इसी प्रकार गोदावरी नदी में तेलंगाना ने कई सिंचाई परियोजनाओ का निर्माण किया हैं. धालेश्वर जैसे विश्व के सबसे बड़े लिफ्ट एरिगेशन की परियोजना गत 5 वर्षों में बनकर पूर्ण हुआ. जिसका फ़ायदा तीन बड़े केनालो के माध्यम से राज्य के दो जिलों में सिंचाई हो रहा है और यहां वर्ष भर में 04 फसल किसान उपजाते हैं.

दूसरे राज्यों में युद्ध स्तर पर किया जा रहा डेमो का निर्माण

इसके अलावा वाय.एस राजशेखर रेड्डी की सरकार जल मग्न नामक योजना चला कर पूरे संयुक्त आंध्र प्रदेश में छोटे बड़े नालों को रोककर छोटे डेमो का निर्माण युद्ध स्तर में किया. इन डेमो से कई लाखों एकड़ बंजर भूमि को कृषि योग बनाया गया. जिससे उस क्षेत्र के किसानों का जीवनदशा तो बदल ही साथ ही साथ आर्थिक स्थिति में काफी सुधार देखने को मिल और वहां के भूमिगत जल स्तर में भी वृद्धि आयी. वर्तमान में आंध्र प्रदेश राज्य के गोदावरी नदी में पोलावरम नमक एशिया का सबसे बड़ा पानी डिस्चार्ज क्षमता वाला डैम का निर्माण किया जा रहा है, जबकि उसे डैम का 80% पानी छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सबरी नदी से जाता है. इस डैम के निर्माण से आंध्र प्रदेश के सभी 10 जिलों को सिंचाई और 960 मेगावाट बिजली मिलेगा जो की 2028 तक पूर्ण होने वाला है.

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छत्तीसगढ़ में संतोषजनक रहा सिंचाई के लिए किया गया कार्य

अगर हम अपने पड़ोसी राज्यों की विकास की बातें करते हैं तो हम पाते हैं कि यहां सिंचाई और कृषि के लिए शासन ने प्राथमिकता से कार्य किया है. हम यह सब इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमारे राज्य में सिंचाई के लिए किए गए दो दशकों से अधिक का कार्य संतोषजनक नहीं रहा. और हम अपने पड़ोसी राज्यों से तुलना करने पर उक्त क्षेत्र में काफ़ी पिछड़े हैं. अगर हम अपने छत्तीसगढ़ में सिंचाई की परियोजना के बारे में बात करें, तो पिछले 20 वर्षों में बस्तर संभाग में कोसारहेड़ा परियोजना को छोड़कर हमारे पास बताने को कुछ विशेष नहीं है. जिससे सिंचाई क्षेत्र में कोई विशेष वृद्धि नहीं दिखती. इस विषय में सरकार को सोचना होगा और अन्य पड़ोसी राज्यों से सीख लेनी होगी जिससे कि किसानों के फसल में वृद्धि और उनके विकास करने का राह क्या होगा? हमारे पास भरपुर खनिज संपदा है. यह गर्व की बात है. परंतु हम सिर्फ़ खनिज उत्खनन कर राज्य को समग्र एवं समावेशी विकास की बात नहीं कर सकते.

सिंचाई पर निर्भर है सुकमा जिले का विकास

हमारे सुकमा जिले में सिंचाई की सुविधा कृषि क्षेत्र की तुलना में बहुत कम है, सिंचाई विभाग दम तोड़ रहा है 1975 के आसपास बने सिंचाई विभाग के तालाब में पानी आज भी बहुत अच्छा है लेकिन जरूरत है तो मरम्मत, सुलूस गेट सुधार कर केनाल बंदोबस्त करना. इससे मुख्य तालाब हैं, बोड्डीगुड़ा जलाशय, कनईगुडा जलाशय, चिंतागुफा जलाशय, अचगट जलाशय हैं. साथ ही डायवर्सन परियोजनाओं में पेंटा नाल, एर्राबोर, इंजरम, मंगलगुड़ा लिफ्ट एरीगेशन की कई परियोजनाएं हैं और अन्य कई परियोजनाएं हैं जो सुकमा जिले में सिंचाई विभाग द्वारा 1975 से पूर्व में किया था. परंतु आज मेंटेनेंस के कारण अस्त-व्यस्त पड़े हैं. जिससे यहां के आदिवासी कृषक उसका समुचित लाभ नहीं ले पा रहे हैं. सुकमा जिले में 2004-5 में सर्वे किया गया. भीमसेन घाट डायवर्सन परियोजना छिंदगढ़ जो की सिंचाई विभाग द्वारा सर्वे कर छत्तीसगढ़ शासन को अपना रिपोर्ट 2005 में दिया. जिससे सबरी नदी में डायवर्सन करना था यह योजना पूरे सुकमा जिले का कायाकल्प बदल सकता था. और एक तरह से जिले में सिंचाई क्रांति आ जाती. परंतु शासन करना चाहें तब?

वैसे देखा जाएं तो सुकमा जिले में आम की खेती सबसे सफल हो सकता है. क्योंकि यहां की मिट्टी एवं जलवायु आम की खेती के लिए अनुकूल है. पूरे छत्तीसगढ़ में आम सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश से आता है. जबकि हमारे सुकमा जिले में इतनी संभावनाएं हैं कि आंध्र प्रदेश से कई गुणा आम उपजाकर अन्य राज्यों की मांग की पूर्ति कर सकते हैं, बस जरूरत है तो उद्यान विभाग एवं जिला प्रशासन के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षित करने और आम के खेती से लाभ को समझाने का साथ ही साथ जिले के सफल आम के किसानों के साथ कार्यशाला का आयोजन करने का. इन तमाम योजनाओं एवं कार्यों से निश्चित ही सुकमा जिले में विकास एवं यहां के कृषकों के जीवन स्तर में सुधार का मार्ग प्रशस्त होगा.

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