Chhattisgarh News: कहते हैं कला किसी कि मोहताज नहीं होती. मन में लगन हो तो किसी भी क्षेत्र में महारत हासिल किया जा सकता है और इसे साबित कर रही है. कोंडागांव जिले की एक महिला शिल्पी, जिसने कभी जिंदगी में स्कुल में कदम नहीं रखा पर आज उसकी बनाई कलाकृति की मांग देश के महानगरो में है.
महानगरों में है शिल्प की चर्चा
महिला शिल्पी शांति बाई जिनके हुनर के चर्चे आज बड़े-बड़े महानगरों में है. एक ऐसी महिला शिल्पी है जिसने ना किसी शिल्प कला की ट्रेनिंग ली और ना कभी स्कूल गयी. वैसे तो लकड़ी की मूर्ति हर कोई बनाता है, पर शांति बाई इन बेजान लकड़ियों में अपनी कला के माध्यम से जान डालती है. शांति बाई 30 साल से लकड़ी में आकृति बनाने का काम करती आ रही है. शांतिबाई अब तक 30 से ज्यादा खंभों में जिंदगी उकेर चुकी है.
अशिक्षित होकर भी दे रही शिक्षा
शांतिबाई ने आज तक स्कुल में कदम नहीं रखा है. पर उसकी शिल्प कला पढ़े-लिखे लोगों को शिक्षा देती है. बचपन में पत्थर के शिल्पियों के साथ हेल्पर के रूप में काम किया. आज उसकी दक्ष हाथ काष्ठकला में जिन्दगी के उतार चढ़ाव को उकेरते हैं. शांति बाई के कलाकारी में ना कोई मार्डन आर्ट है और ना ही कोई कालपनिक कला, जो उसने भूत, भविष्य और वर्तमान में देखा है और जो देख रही है और जो देख चुकी है. उसे अपने कला में उकेर रही है और लोगों को एक संदेश दे रही है कि जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते है. पर इंसान से लेकर हर प्राणी के लिए पर्यावरण कितना जरूरी है.
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पर्यावरण बचाने पर है ध्यान
आज पर्यावरण बचाने के लिए जोर दिया जाता है. पर हम पढ़े-लिखे लोग पर्यावरण का ध्यान नहीं देते. वहीं शान्ति बाई पर्यावरण का पूरा ध्यान रखती हैं. शान्ति बाई जंगल में पेड़ से टूटकर गिरी लकड़ियों का उपयोग करती है या मिल से खरीद कर लाती है, पर पेड़ नहीं काटती. उसके बनाये खम्भे की प्रदर्शनी मुम्बई में होती है. हम शिक्षित लोग पर्यावरण संरक्षण को लेकर ज्यादा नहीं सोचते हैं. वहीं शान्ति बाई जिसने कभी स्कुल का मुंह नहीं देखा, वह पर्यावरण को बचने की सोच रखती है. वह और उनकी कला काबिले-तारीफ है.
कठिन होता है खंभा आर्ट
काष्ठ कला तो कोई भी कर लेता है. छोटी-छोटी लकड़ियों से मूर्तियां बनाना आसान है. पर लकड़ी के खंभे पर कलाकारी करना काफी कठिन है. खम्भे की कलाकारी काफी मेहनत भरी होती है. एक खम्भे को तैयार करने में पांच महीने लगते हैं. दिन-रात पेड़ के मोटे-मोटे तने पर पेन्सिल से डिजाइन बनाना, फिर उसके बाद उसे छिनी हथौड़ी से आकार देना और आखिरी में इसे फिनिशिंग टच के बाद मांग के अनुसार महानगरो में भेजना. जब जिस कीमत पर उसकी बिक्री होती है. उसके हिसाब से शांति बाई को मेहनताना मिलता है. जो भी मिलता है, शान्ति बाई उसमे ही संतोष कर नए काम की शुरुवात करती है.
शान्ति बाई की कला को देखते हुए शहरवासी भी तारीफ करते हैं. शान्ति बाई को जानने वालों ने कहा कि शान्ति बाई की पूरी जिंदगी संघर्ष भरी है. ये ऐसी कलाकार हैं जिनकी कला बड़े-बड़े महानगरों में दिखती है. ये उनके लिए शिक्षाप्रद है, जो काम को छोटा-बड़ा कहते हैं.