Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ का शिमला यानी मैनपाट, लोग यहां इस जगह की खूबसूरती देखने आते हैं लेकिन यहां की एक बेहद कड़वी सच्चाई है और वह है की यहां आदिवासी नाबालिग लड़कियों की तस्करी हो रही है. यहां की कई लड़कियों को अच्छी नौकरी और पढ़ाने लिखाने के नाम पर बाहरी लोग अपने साथ ले गए. लेकिन इसके बाद कुछ लड़कियां अपने घरों तक वापस नहीं लौटी तो कई लड़कियां स्कूल जाने की उम्र में दूसरों के घरों का चूल्हा चौका संभाल रही हैं, क्योंकि वे गरीबी और अशिक्षा से जूझ रहे परिवारों से हैं जो उनके लिए एक अभिशाप बन गया है. एक एनजीओ ने दिल्ली और हरियाणा में बेची गई 32 लड़कियों को तीन सालों में तस्करों के कब्जे से मुक्त कराया है. वहीं सरगुजा के सीतापुर इलाके की 11 लड़कियां अब भी गायब हैं जिन्हे तस्कर अपने साथ ले गए हैं लेकिन उनका कोई पता नहीं है.
सरगुजा में ‘मानव तस्करी’ का गंदा खेल
दरअसल मैनपाट में मानव तस्करी करने में शामिल एजेंट यहां के आदिवासी और अशिक्षित लोगों को झांसा देते हैं कि उनकी बेटी को वे अपने घर में अच्छे तरीके से रखेंगे और अच्छा पैसा भी देंगे. इसकी वजह से वे इसके झांसे में आ जा रहे हैं. कुछ ऐसा ही हुआ मैनपाट के नर्मदा पुर निवासी नारद यादव के साथ. नारद यादव बताते हैं कि महिला बाल विकास विभाग की एक महिला सुपरवाइजर उनके पास आई और उसे झांसा दी कि वह उनकी बेटी को अपने घर में रखेगी और अपने साथ ले गई, इसके बाद दो तीन माह तक वे अपनी बेटी से मोबाइल पर सम्पर्क में रहे और बेटी उन्हें प्रताड़ना की बात बताने लगी. लेकिन कुछ दिन बाद उससे उनका बात होना बंद हो गया. इसके बाद महिला बाल विकास विभाग की सुपरवाइजर भी बेटी के बारे में पूछने पर डांट फटकार लगाने लगी तो पुलिस के अफसर भी उसकी बात नहीं सुनते और अब तक उसकी बेटी लापता है. नारद ने गंभीर आरोप लगाया और कहा कि उसकी बेटी के साथ और भी कई लड़कियों को महिला बाल विकास विभाग की सुपर वाइजर अपने साथ ले गई थी. जिसमें कई वापस आई लेकिन अब उसका कोई नहीं सुन रहा, वह कह रहा मेरी को कोई खोज कर ला दे. बेटी के बारे में बताते हुए उसके आंखों से आंसू छलक जाते हैं.
नाबालिग लड़कियों से 150 रुपए में कराया जा रहा है काम
मैनपाट में विस्तार न्यूज़ की टीम ने यहां तिब्बती समुदाय के लोगों के रहने के लिए बने कैम्प पहुंची तो वहां भी कई नाबालिग लड़कियां काम करती दिखी और ज़ब हमने 14 साल की एक नाबालिग से पूछा तो उसने बताया कि 150 रुपये की रोजी में दोनों बहन काम कर रही हैं, सिर्फ दिखावे के लिए कुनिया गांव के स्कूल में क्लास 9 में पढ़ रही हैं. वही उनकी मां ने भी कहा कि मजबूरी है इसलिए बेटियों को काम करने भेज रहे हैं. इसी तरह यहां के दूसरे कैम्प में भी आदिवासी बेटियां बच्चों की केयर टेकर के रूप में काम करती दिखी.
बड़े शहरों में हैं माझी जनजाति की 8-10 बेटियां
मैनपाट की नाबालिग लड़कियां मैनपाट के अलावा कई बड़े शहरों में हैं, माझी जनजाति के अध्यक्ष भीनसरिहा कहते हैं कि माझी जनजाति की बेटियां हर गांव से 8-10 की संख्या में बड़े शहरों में हैं, इसमें से कई वापस लौट कर आती हैं और कइयों का साल- दो साल बीतने के बाद पता नहीं चला.
लड़कियों को एक लाख रुपये तक में बेचते हैं दलाल
मानव तस्करी के खिलाफ सरगुजा इलाके में काम कर रही पथ प्रदर्शक नामक एनजीओ के सचिव सुशील सिंह ने बताया कि सीतापुर व मैनपाट इलाके में नाबालिग लड़कियों की तस्करी के खिलाफ वे काम कर रहे हैं और उन्होंने बेची जा चुकी 32 लड़कियों को आजाद कराया है. वही तस्करी करने वाले 87 मानव तस्करी के दलालों की सूची तैयार कर पुलिस को सौंपा है. उनकी संस्था इलाके में कहीं भी मानव तस्करी की जानकारी आती है उस पर वे दिल्ली की संस्था क्राई के माध्यम से इस पर काम करते हैं. वही इलाके में जागरूकता के अभाव में लोग बेटियों को दलालों के साथ भेज देते हैं. दलाल यहां से लड़कियों को ले जाकर महानगरों में बेच देते हैं और इसके एवज में उन्हें 10-12 हजार एक लड़की पर मिलता है, इसके बाद हार्ड कोर दलाल इनसे लड़कियों को लेकर एक लाख रुपये तक में बेचते हैं और उन्हें कम उम्र की लड़कियों पर अधिक पैसे मिलते हैं.
पुलिस ने कहा- झांसे में आकर नाबालिग लड़कियों को किसी के साथ न भेजें
सरगुजा जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पुपलेश कुमार ने बताया कि लड़कियों की तस्करी को रोकने के लिए पुलिस और एनजीओ साथ मिलकर काम कर रहे हैं. लोगों को जागरुक किया जा रहा है कि झांसे में आकर नाबालिग लड़कियों को किसी के साथ न भेजें. एक साल में हमने लड़कियों की तस्करी के दो मामलो में सफलता पाई है.