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Ambikapur: छत्तीसगढ़ में तिब्बतियों की ये बस्ती है खास, अपनी जनसंख्या से आधे लोग फौजी बनकर करते हैं देश की सेवा

tibetan in ambikapur

अंबिकापुर में तिब्बती आबादी

Ambikapur News: छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में शरणार्थी तिब्बतियों का कैम्प फौजी प्रोडक्शन हब बन गया है. यहां सात कैम्प में कुल 350 तिब्बती परिवार हैं, लेकिन हर दूसरे और तीसरे परिवार से कोई न कोई फ़ौज में है. यहां के कुल 150 जवान देश की सुरक्षा में माइनस तापमान वाली देश की सीमाओं पर तैनात हैं. वहीं 500 जवान रिटायर्ड हो चुके हैं. तिब्बती जवान ठंड वाले इलाकों में ड्यूटी के लिए उपयुक्त माने जाते हैं.

मैनपाट के तिब्बती सबसे अधिक इंडो-तिब्बत बॉर्डर पर तैनात हैं

दरअसल, अंबिकापुर जिले का मैनपाठ इलाके पर्यटन के लिए फेमस है. यहां हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक घूमने के लिए जाते हैं. इस खूबसूरत जगह पर तिब्बती शरणार्थियों को बसाया गया है, जो अलग-अलग कैंप बनाकर रहते हैं. कैम्प नंबर दो के धुनडूप सिरिंग कहते हैं कि उनके परिवार से दो लोग स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स में तैनात हैं. जब चीन ने तिब्बत पर हमला किया तो हमें भारत ने पनाह दी. इसके बाद से अब हम तिब्बत के बाद अपना दूसरा मुल्क भारत को मानते हैं. एक परिवार से एक न एक को भारत की सुरक्षा के लिए चीन से लड़ने के लिए स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स में जाना है. सिरिंग कहते हैं कि मैनपाट के सभी कैम्प मिलाकर हर साल 8-10 जवान रिटायर्ड होते हैं और वे यहां के नए लड़कों को फ़ौज में जाने के लिए तैयार करने में सहयोग करते हैं.  हर साल यहां के 10-15 लड़के आर्मी में जा रहे हैं.

सात कैम्प से 500 जवान रिटायर्ड हो चुके हैं

स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स में पोस्टेड रह चुके सूबेदार लाखपा का कहना है कि फौज में मैनपाट के सात कैम्प से 500 जवान रिटायर्ड हो चुके हैं. यहां के दूसरे बच्चे भी फ़ौज में जाएं, इसके लिए हम उन्हें मोटिवेट करते रहते हैं और कहते हैं कि एक जवान रिटायर्ड होता है, तो उसके बदले जाने के लिए कोई न कोई तिब्बती कैम्प का युवा तैयार रहे. स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में मैनपाट की अभी तीन-चार तिब्बती लड़कियां भी हैं. वहीं 15 लड़कियां सेवा के बाद रिटायर्ड हो चुकी हैं.

रिटायर्ड होने के बाद मिले पैसे से लगाया 7 एकड़ जमीन में पेड़ 

एक्स आर्मी जवान लाखपा कहते हैं कि पूरी जवानी मैंने देश सेवा में बीता दी. अब रिटायर्ड होने के बाद करीब 50 लाख रुपये मिले, उससे मैंने कोई दूसरा काम नहीं किया, बल्कि मैनपाट में आकर साढ़े सात एकड़ जमीन में पौध रोपण किया है. इसमें सभी प्रकार के पेड़ और फल वाले भी पौधे हैं. ऐसा इसलिए ताकि देश का जवान होने के नाते प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई लड़ सकूं और बुढ़ापे में कुछ आय भी हो.

आपको बता दें कि मैनपाट के तिब्बती यहां बौद्ध मंदिर में हमेशा अपने जवानों की सुरक्षा और दुश्मनों से जीत के लिए दुआ करते हैं और शांति के देश की सीमाओं में शांति हो, इसके लिए मंत्र लिखे ध्वज अपने घरों के बाहर और कैम्प में लगाते हैं.

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