Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ मूल रूप से आदिवासियों की पृष्ठभूमि मानी जाती है. यहां 40 से ज्यादा जनजातियां पाई जाती है. सभी आदिवासियों के रहन-सहन, वेशभूषा, खान-पान में विभिन्नता देखी जा सकती है. छत्तीसगढ़ के दक्षिण भाग में जैसे अंबुझमाडिया, हलबा, भतरा ,मारिया और मुरिया जैसे आदिवासी रहते हैं. वहीं उत्तर में कंवर, मुंडा, नागेसिया और उरांव आदिवासियों का बसेरा है. सभी आदिवासियों की विभिन्न विशेषताएं हैं. मगर इन सभी आदिवासियों में से एक ऐसा आदिवासी समाज है, जो अपने पुराने रीति-रिवाजों से बाहर आकर समाज और देश के लिए कुछ नया करने की इच्छा रखकर आगे बढ़ते जा रहा है. उस आदिवासी समाज को छत्तीसगढ़ में उरांव और कुरुख नाम से जाना जाता है.
उरांव आदिवासियों की क्या है हिस्ट्री?
ये लोग मूल रूप से दक्षिण से आए लोग हैं जो पहले कोंकण में निवास करते थे. मगर समय के साथ ये लोग अपना स्थान बदलते चले आए और दो भाग में बंट गए. कुछ उरांव झारखंड और छत्तीसगढ़ में रुक गए, जबकि कुछ मणिपुर ओडिसा और बंगाल में बस गए. मगर मुख्य रूप से उरांव भारत की एक जनजाति समुदाय है जिसका मुख्य निवास स्थान झारखण्ड का छोटा नागपुर है. ऐसा माना जाता है कि सालों पहले ये दक्षिण भारत में निवास किया करते थे. लेकिन सामाजिक और राजनैतिक उथल-पुथल के दौर में ये दक्षिण भारत को छोड़कर सिंधु घाटी की ओर चले आए, यहां भी इन्हें स्थिरता नहीं मिली. यहां से ये सोने तराई फिर रोहतासगढ़ होते हुए अंत में छोटा नागपुर आ बसे. यहीं से ये छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा की ओर फैलने लगे. छत्तीसगढ में उरांव मुख्य रूप से जशपुर, रायगढ, लैलूंगा में निवास करते हैं. उरांव लोगों को ‘धांगर’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ विशेष शर्त पर रखे गए कृषि श्रमिक होता है. कृषि ही उरांव आदिवासियों की आजीविका का प्रमुख स्रोत है.
छत्तीसगढ़ में इनकी जनसंख्या कितनी है?
2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में उरांव आदिवासियों की जनसंख्या 7 लाख 48 हजार 739 है. उरांव जनजाति झारखंड की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है. छत्तीसगढ़ के जशपुर और रायगढ़ में इनका निवास है. ये लोग Dravidian Rthnolinguistic Group (द्रविड़ मूल) के सदस्य हैं, जो कुरुख/कुडूक बोली बोलते हैं.
उरांव आदिवासियों का रहन-सहन कैसा है?
उरांव लोग छोटे गांव में रहना पसंद करते हैं. उनके घर का आंगन खुला हुआ होता है, जहां से हवा आती है और ये सिर्फ जरूरत भर के सामान को रखते हैं. आदिम तरीके से जीवन-यापन करने वाले उरांव लोग अपना मकान स्वयं निर्मित करते हैं. इनके घर मिट्टी, बांस एवं खपरैल की बने होते हैं. महिलाएं आंगन की गोबर से लिपाई करती है. स्वास्थ्य खराब होने की स्थिति में प्राथमिक उपचार के लिए ये लोग वनौषधियों और जड़ी–बूटियों का इस्तेमाल करते हैं.
वर्तमान स्थिति
ये लोग प्राचीन समय से कृषि एवं पशुपालन करते आ रहे हैं. उरांव जनजाति सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से समृद्ध जनजाति है. यह लोग बाहरी दुनिया से मेल-जोल का महत्व समझते थे, जिस कारण यह विकसित हो रहे हैं. इनका मुख्य पेशा कृषि है और कृषि कार्यों के क्षेत्र में ये अपने समकक्ष जनजातियों से श्रेष्ठ है. अभी की वर्तमान स्थिति में उरांव जनजाति छत्तीसगढ़ की सबसे साक्षर जनजाति है. छत्तीसगढ़ राज्य में शिक्षक,अधिकारी या अन्य विभाग में उरांव जनजाति में से कोई एक व्यक्ति जरूर मिलेगा.
सामाजिक व्यवस्था
इनमें संपत्ति पर केवल पुरुषों का अधिकार (पितृसत्तात्मक व्यवस्था) होता है. इनके सबसे बड़े सामाजिक न्याय संगठन को पड़हा कहते हैं. पड़हा गांवों का एक संगठन है, जो कि 11 गांवों का संगठन या फिर 20 गांवों का संगठन हो सकता है. पड़हा पंचायत व्यवस्था में पड़हा का कोई भी पद स्थाई नहीं होता है. ये लोग गोत्र को किली कहते हैं, इनके प्रमुख के गोत्र मिंज, खलको,केरकेट्टा, लकड़ा, टोप्पो और कूजूर है. अधिकांश गोत्र, गोत्र चिन्ह प्रकृति के नाम से है. विकसित हैं फिर भी जंगलों पर काफी हद तक निर्भर है.
उरांव जनजाति क्यों है सबसे शिक्षित आदिवासी?
उरांव प्राकृतिक पूजक होते हैं. इनके प्रमुख देव सूर्य देव होते हैं और प्रमुख देवी ‘शरना’ देवी होती हैं. इनकी वेशभूषा की बात करें तो ये लोग सूती के वस्त्र पहनते हैं, जिसे कुरुख भाषा में ‘करैया’ कहते हैं. जानकार आनंद खुजूर बताते हैं कि उरांव जाति में लोग लड़का और लड़की को एक प्रकार की शिक्षा देते हैं. उनमें कोई भेदभाव नहीं होता, जिसके चलते पुरुष और महिलाएं दोनों की साक्षरता में ज्यादा अंतर नहीं है. यही कारण है कि उरांव जाति छत्तीसगढ़ की सबसे साक्षर जनजाति मानी जाती है.