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Chhattisgarh Rajim Kumbh: प्रयागराज की तरह छत्तीसगढ़ का राजिम कुंभ मेला है अनोखा, बेहद दिलचस्प है इस मेले का इतिहास

rajim kumbh

राजिम कुंभ में साधु-संत (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Rajim Kumbh: देश में सबसे बड़ा धार्मिक मेला कुंभ को माना जाता है. खासकर प्रयागराज के कुंभ मेले में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है. कुंभ में साधु-संतों का जमावड़ा देखते ही बनता है. इस तरह के मेले देश में कुछ ही जगहों में होते हैं. लेकिन अगर आप छत्तीसगढ़ के रहने वाले है और कुंभ का मेला देखना है तो आपको प्रयागराज जाना नहीं पड़ेगा क्योंकि छत्तीसगढ़ की धार्मिक नगरी राजिम में भी कुंभ मेला होने जा रहा है. 5 साल बाद छत्तीसगढ़ में होने वाले इस मेले को लेकर अभी से प्रदेश में गजब का उत्साह है. आइए जानते हैं कि राजिम कुंभ का मेला कैसे होता है और इसका इतिहास क्या है ?

प्रयागराज जैसे कुंभ मेला छत्तीसगढ़ में भी लगता है

दरअसल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की तरह ही गरियाबंद जिले के राजिम में कुंभ का मेला लगता है. छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नदी महानदी में तीन नदियों का पहला त्रिवेणी संगम है राजिम में है. यहां पैरी ,सोंधूर और महानदी राजिम में मिलती है. इसलिए इस जगह पर हर साल जनवरी महीने में यानी नए साल के स्वागत के साथ कुंभ का मेला लगता है. वैसे भी छत्तीसगढ़ अपने खास तरह के मेलाओं के जाना जाता है और राजिम का मेला भी प्रसिद्ध है. प्रदेशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यह मेला देखने आते हैं. लेकिन यहां खास आकर्षण का केंद्र देशभर से आने वाले अजब-गजब साधु-संत होते हैं जो सुबह-सुबह कड़ाके की ठंड में डुबकी लगाते हैं.

राजिम त्रिवेणी संगम का क्या है पौराणिक इतिहास

15 दिनों तक राजिम में हर साल माघी पुन्नी मेला होता है. श्रद्धालु बड़ी संख्या दूर-दूर से नदी में पवित्र डुबकी लगाने आते हैं. पंडितों के अनुसार जनवरी के महीने में सभी नदियों का जल गंगा जल के समान हो जाता है. वहीं इसका इतिहास त्रेतायुग से जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि जब भगवान राम अपने वनवास काल में छत्तीसगढ़ आए तो माता जानकी ने संगम के बीचों-बीच बालू की रेत से शिवलिंग बनाया था, जिसे चित्रोत्पलेश्चर कहकर पूजा किया जा रहा था. समय के साथ नाम बदलते गया और अब इसे कुलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. इसलिए इस जगह मेला प्राचीन समय से लगते आ रहा है.

इस साल 24 जनवरी से शुरू होगा राजिम कुंभ

आपको बता दें कि श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए राज्य शासन द्वारा 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाता था, लेकिन 2005 से इसे कुम्भ के रूप में मनाया जाता रहा था. फिर 2019 से 2023 तक राजिम माघी पुन्नी मेला के रूप में मनाया गया. इसके बाद अब फिर से राजिम में कुंभ मेले का आयोजन किया जा रहा है. इस साल कुंभ 24 फरवरी से शुरू होने वाला है.

बेहद खास है छत्तीसगढ़ का ये संगम

त्रिवेणी संगम के एक तट पर भगवान विष्णु के अवतार भगवान राजीवलोचन विराजमान हैं और दूसरे तट पर सप्तऋषियों में से एक लोमश ऋषि का आश्रम विद्यमान हैं. त्रिवेणी संगम के बींचो-बीच खुद महादेव कुलेश्वरनाथ के रुप में स्थापित हैं. वैसे तो श्रद्धालूओं के यहां पहुंचने का सिलसिला सालभर लगा रहता है. मगर राजिम मेले के समय श्रद्धालूओं के पहुंचने की संख्या कई गुना बढ़ जाती है. वहीं मेले के पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते हैं. पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पटेश्वर, फिंगेश्वर, ब्रम्हनेश्वर, कोपेश्वर और चम्पेश्वरनाथ के पैदल भ्रमण कर दर्शन करते हैं. इसके लिए श्रद्धालुओं को 101 किलोमीटर की यात्रा करनी होती है.

इसके बिना पूरी नहीं मानी जाती है जगन्नाथ पुरी की यात्रा

राजिम माघी पुन्नी मेला में हर साल हजारों की संख्या में नागा साधु-संत आदि आते हैं. इसके अलावा संगम स्नान होता है. लोगों की मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती, जब तक भगवान राजीव लोचन और कुलेश्वर नाथ के दर्शन नहीं कर लिए जाते हैं. राजिम में भगवान राजीवलोचन का प्राचीन मंदिर भी है, जिनका जन्मोत्सव जनवरी के पूर्णिमा को ही मनाया जाता है. जानकारों का कहना है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ ओडिशा से राजीवलोचन जन्मोत्सव मनाने के लिए राजिम आते हैं. इस वजह से राजीव लोचन जन्मउत्सव पर ओडिशा स्थित जगन्नाथ मंदिर के पट बंद रहते हैं.

राजिम माता से राजिम का क्या है कनेक्शन?

तीनों नदियों के इस संगम वाली जगह को राजिम कहे जाने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. इसका भी पौराणिक इतिहास है. इसके अनुसार तैलिय वंश लोग तिलहन की खेती करते थे. इन्हीं तैलिन लोगों में एक धर्मदास भी था, जिसकी पत्नी का नाम शांतिदेवी था और वे दोनों भगवान विष्णु के भक्त थे. उनकी बेटी का नाम राजिम था. राजिम का विवाह अमरदास नामक व्यक्ति से हुआ. राजिम भी विष्णु की भक्त थीं, जो मूर्ति विहीन राजीवलोचन मंदिर में जाकर पूजा करती थीं. राजिम की भक्ति, त्याग और तपस्या के चलते ही वे पूरे क्षेत्र में माता की तरह प्रसिद्ध हो गईं. भगवान के प्रति अपार सेवाभाव रखने और पुण्य-प्रताप के कारण ही आज पूरे देश में राजिम भक्तिन माता की अलग पहचान है.

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