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Manmohan Singh की अंतिम विदाई से पहले भावुक हुए पूर्व CM भूपेश बघेल, बताया अपनी पहली मुलाकात और मजदूरों के साथ का यादगार किस्सा

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पूर्व PM मनमोहन सिंह और भूपेश बघेल

Manmohan Singh: ‘मनमोहन अमर रहे’ नारे के साथ देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को शनिवार को अंतिम विदाई दी गई. दिल्ली के निगम बोध घाट पर 21 तोपों की सलामी और राजकीय सम्मान के साथ के साथ वह पंचतत्व में विलीन हो गए. पूर्व PM की अंतिम विदाई से पहले छत्तीसगढ़ के पूर्व CM भूपेश बघेल भावुक हो गए.

भावुक हुए भूपेश बघेल

कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व CM भूपेश बघेल ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अंतिम विदाई से पहले सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की. इस पोस्ट में उन्होंने पूर्व PM से अपनी पहली मुलाकात के बारे में बताया. साथ ही उस किस्से का भी जिक्र किया, जब पूर्व वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने मजदूरों का साथ देते हुए उनके लिए खड़े हुए थे.

भूपेश बघेल ने बताया किस्सा

पूर्व CM भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘बात 1994-95 की है. मैं पहली बार विधायक बना था. मेरे विधानसभा क्षेत्र में एक स्टील फ़ाउंड्री का मामला मजदूरों के जरिए मेरे पास आया. वह अविभाजित मध्य प्रदेश की दूसरी बड़ी फाउंड्री थी और आर्थिक संकट में थी. मामला कुछ ऐसा था कि सिर्फ केंद्र सरकार ही कुछ कर सकती थी.’

उन्होंने आगे लिखा- ‘मैंने दुर्ग के सांसद और मेरे राजनीतिक गुरु चंदूलाल चंद्राकर जी के सामने बात रखी. उन्होने कहा कि मैं फाउंड्री के प्रबंधन के लोगों को लेकर दिल्ली पहुंच जाऊं. मैंने बात की तो मेरे साथ मजदूरों के अलावा मालिकान साथ चलने को तैयार हो गए. हम पहुंचे नॉर्थ ब्लॉक में वित्त मंत्रालय. उस समय वित्त मंत्री थे मनमोहन सिंह जी. वह मेरी मनमोहन सिंह जी से पहली मुलाकात थी. वे उस समय तक अर्थव्यवस्था को नई पटरी पर ला चुके थे. उसकी चर्चा बहुत थी पर असर अभी शुरू नहीं हुआ था.’

अपनी पोस्ट पर भूपेश बघेल ने आगे लिखा- ‘उन्होंने समस्या सुनी. पहले तो वे इस बात से खुश हुए कि समस्या सुलझाने फाउंड्री के मालिक और मजदूर दोनों साथ आए हैं. उन्होंने विनम्रता से कहा कि उन्हें नहीं लगता कि वे समस्या का कोई हल निकाल सकेंगे. फिर बोले, ‘आप लोग आए हैं तो मैं एक कोशिश ज़रूर करूंगा.’ उन्होंने संबंधित बैंक से लेकर रिजर्व बैंक तक कई जगह फोन लगाकर हमारे सामने ही बात की और सबको निर्देश दिए कि अगर नियम-कायदों में कोई गुंजाइश हो तो मदद जरूर की जाए.’

वित्त मंत्री ने की कोशिश

उन्होंने बताया- ‘समस्या का हल नहीं निकल सका. पर फ़ाउंड्री के मालिक और मजदूर खुश थे कि देश के वित्त मंत्री ने इतनी संजीदगी से कोशिश की. मेरे लिए तो वह राजनीतिक जीवन का एक सबक था. मनमोहन सिंह जी की सादगी, विनम्रता और काम के प्रति गंभीर समर्पण की झलक आधे घंटे में दिल में उतर गई. तब तक वे देश में आर्थिक क्रांति का सूत्रपात कर चुके थे. आने वाले वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था जिस तरह से बदली उसने एहसास कराया कि मनमोहन सिंह चुपचाप देश को बदल चुके हैं. भारतीयों के लिए अगले दो दशक किसी किसी स्वप्न के सच होने की तरह थे. उदारीकरण और बाजार खोलने के लिए उनकी भरपूर निंदा होती रही और वे विनम्रता से जवाब देते रहे.’

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अपनी पोस्ट पर भूपेश बघेल ने आगे लिखा- ‘प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का संरक्षण उन्हें मिला हुआ था और वे आश्वस्त थे कि भविष्य का रास्ता यही है. भारत से लाइसेंस राज ख़त्म करना उनका पुराना ध्येय था. और वे ऐसा कर चुके थे. इसके दस बरस बाद जब हमारी नेता सोनिया गांधी ने स्वयं प्रधानमंत्री न बनकर मनमोहन सिंह जी को चुना तो देश चकित था. अटल बिहारी वाजपेयी जैसे वाकचतुर और वाकपटु व्यक्ति के बाद मनमोहन सिंह जैसा अल्पभाषी? बहुत से लोगों को मन में शंकाएं उभरीं, बहुत से लोगों ने बहुत कुछ कहा. पर मनमोहन सिंह जी इस देश को ठीक तरह से समझते थे.’

MSP में बढ़ोतरी कल्पनातीत थी

‘2004 से 2014 तक उन्होंने प्रधानमंत्री के दो कार्यकाल पूरे किए. इस बार वे देश के आम लोगों को सुरक्षा और अधिकार देने के रास्ते पर थे. शुरूआत हुई किसानों को फसल की सही कीमत देने से. उनके कार्यकाल में MSP में जैसी बढ़ोतरी हुई वह कल्पनातीत थी. UPA के दस वर्षों में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सात ऐसे कानून बने जिसने इतिहास रच दिया. रोजगार का अधिकार देने वाला कानून ‘मनरेगा’ बना, तो भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार भी मिला. भूमि अधिग्रहण कानून आया. और देश में पारदर्शी लाने वाला सूचना का अधिकार कानून आया.

भूपेश बघेल ने आगे लिखा- ‘मनरेगा और इन कानूनों का साझा असर था कि देश में गरीबी रेखा से 14 करोड़ लोग बाहर आए. किसानों और मज़दूरों का आत्मविश्वास बढ़ा. और लोगों ने जाना कि विकास किसे कहते हैं. बिना आंकड़ों में हेराफेरी किए सकल घरेलू उत्पाद को दहाई के अंक तक ले जाना भी उन्हीं के बूते का था. तभी भारत एक मज़बूत अर्थव्यवस्था की तरह दुनिया में पहचाना गया.’

अल्पभाषी और विनम्र थे मनमोहन सिंह

भूपेश बघेल ने अपनी पोस्ट में लिखा- ‘मनमोहन सिंह जी अल्पभाषी थे, विनम्र थे पर वे जानते थे कि कब, कहां और कितना बोलना है. न उन्होंने कभी मीडिया से मुंह छिपाया और न बेवजह के नारे उछाले. जब मौक़ा हुआ और जब जरूरत हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस की और हर सवाल का जवाब दिया. ऐसे दौर में जब मीडिया एकतरफा फैसले सुना रहा था तब भी विनम्रता से उन्होंने इतना ही कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इतिहास उनका आकलन करने में मीडिया की तुलना में उदारता बरतेगा.’

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पूर्व CM भूपेश बघेल ने कहा- ‘मनमोहन सिंह जी आज नहीं रहे पर उनका आकलन उनके जीते जी ही होने लगा था. और हर समझदार देशवासी के मन में एक पश्चाताप का भाव था कि उन्होंने राजनीतिक षड्यंत्रकारियों के बहकावे में उनके साथ अन्याय किया. यह देश और उसकी पीढ़ियां मनमोहन सिंह जी को कृतज्ञता के साथ याद करेंगी. उन्हें शत् शत् नमन.’

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