Lok Sabha Election 2024: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई. निर्वाचन आयोग ने अपना काम शुरू कर दिया है. राज्य में 11 लोकसभा सीट हैं. इसमें से ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जोर लगा रही हैं. राज्य में सामाजिक एकजुटता भी चुनाव में बेहद अहम माना जाता है. आदिवासी बहुल इस राज्य में ओबीसी वर्ग का राजनीति में बड़ा दबदबा है.
छत्तीसगढ़ में 12 प्रतिशत से अधिक हैं सतनामी समाज के लोग
दरअसल छत्तीसगढ़ में अलग-अलग जाति और समाज के लोग निवास करते हैं. इसी में से एक है सतनामी समाज है. प्रदेश में लगभग 12 से 13 प्रतिशत सतनामी समाज के लोग निवास करते हैं. इस समाज की आस्था राजनीतिक तौर पर कभी किसी एक पार्टी के लिए स्थायी नहीं रहती है. हर बार चुनाव में अनुसूचित जाति के लोग नेताओं को चौंकाते हैं. राज्य में 10 सीट एससी के लिए आरक्षित है.
पिछले 3 विधानसभा चुनाव पर एक नजर
अगर तीन विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो 2013 के चुनाव में भाजपा ने इसमें से 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि कांग्रेस को मात्र 1 सीट पर ही जीत मिली थी. 2018 में बीजेपी को समाज ने एकतरफा छोड़ दिया और 10 में से केवल 2 सीट ही बीजेपी जीत पाई. जबकि कांग्रेस 8 सीट जीतने में सफल रही. ऐसे में जब 2023 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो बीजेपी केवल 4 सीट ही जीत पाई. वहीं कांग्रेस 6 सीट जीतने में सफल रही है. यानी इससे अब साफ है कि ये समाज कभी किसी एक पार्टी के प्रति झुकाव नहीं रखता है. इस समाज को साधने के लिए दोनो पार्टियां पूरी ताकत लगाने से कभी पीछे नहीं हटती है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में भी इस समाज की भूमिका अहम हो सकती है.
सतनामी समाज के लिए आस्था प्रतीक हैं बाबा गुरू घासीदास
छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति के अधिकांस जनसंख्या बिलासपुर संभाग में निवास करती है. इसके अलावा दुर्ग और रायपुर संभाग के कई जिलों में भी अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं. कई विधानसभा में इनका बड़ा वोट बैंक भी है. ज्यादातर खेती किसान का काम करते हैं. लेकिन इनकी धार्मिक आस्था बाबा गुरु घासीदास से है. गुरु घासीदास के प्रति केवल सतनामी समाज ही नहीं, अलग-अलग समाज के लोग भी आस्था रखते हैं. इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियों का कनेक्शन सीधे गिरौधपुरी से जुड़ जाता है, जहां घासीदास का जन्म स्थान है.
गुरु घासीदास का क्या है इतिहास?
आपको बता दें कि ”मनखे- मनखे एक समान’ का संदेश देने वाले बाबा गुरु घासीदास का जन्म बलौदा बाजार के गिरौधपुरी इलाके के एक छोटे से गांव में 1756 में हुआ था. इनके पिता का नाम महंगुदास और माता का नाम अमरौतिन था. बाबा का जन्म उस समय हुआ जब पूरा देश छुआछूत और भेदभाव जैसी समस्याओं से घिरा हुआ था. ऐसे समय में बाबा गुरु घासीदास ने ”मनखे-मनखे एक समान” का संदेश दिया था. इसके बाद अनुसूचित जाति के अधिकांश लोग छुआछूत से परेशान थे, तो सभी घासीदास को मानने लगे. इसके साथ अनुसूचित जाति में आने वाले सतनामी समाज का घासीदास बाबा के प्रति गहरी आस्था है.
सरकार बनाने में रहती है बड़ी भूमिका
राज्य गठन के बाद राजनीतिक दलों ने सतनामी समाज को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों ने सरकार में सतनामी समाज को जगह दी. 2023 में बीजेपी सरकार ने भी एक अनुसूचित जाति के नेता दयालदास बघेल को मंत्री बनाया है. इससे पहले कांग्रेस सरकार में गुरु घासीदास के वंशज गुरु रूद्र कुमार को मंत्री बनाया गया था और शिवकुमार डहरिया को भी मंत्री बनाया गया था.
दिल्ली के कुतुब मीनार से भी ऊंचा है
सतनामी समाज के धार्मिक आस्था के प्रतीक की बात करें तो ये जैत खाम की पूजा करते हैं. जैत खाम की लोकप्रियता इतनी है यह एशिया के सबसे बड़े जैत खाम के रूप में ख्याति प्राप्त है और दिल्ली के कुतुब मीनार से 6 फीट ऊंचा है. दरअसल कुतुब मीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर है. वहीं जैत खाम की ऊंचाई 77 मीटर है.