Raigarh Loksabha profile: छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों में सबसे ज्यादा चर्चित है रायगढ़ लोकसभा. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश के मुखिया विष्णुदेव साय और प्रदेश के वित्त मंत्री ओपी चौधरी रायगढ़ लोकसभा से आते है. अनुसूचित जनजाति(ST) के लिए आरक्षित रायगढ़ लोकसभा में 3 जिले और 8 विधानसभा सीट मिलाकर बनाया गया है .इस बार रायगढ़ लोकसभा सीट का क्या समीकरण है. चलिए इसे आपको आज विस्तार से समझाते है.
छत्तीसगढ़ बनाने के बाद से नहीं हारी भाजपा
दरअसल रायगढ़ सीट का इतिहास बहुत पुराना है. सबसे पहला चुनाव साल 1962 में हुआ. चुनाव में कांग्रेस के चंद्रचूड़ सिंह देव का मुकाबला आरआरपी के राजा विजय भूषण सिंह से था, जिसमें कांग्रेस को हार मिली. 5 साल बाद 1967 में कांग्रेस ने चेहरा बदला और रजनीगंधा देवी सिंह पर दांव लगाया गया. उन्होंने जनसंघ के नरहरि प्रसाद को हराया. बावजूद उन्हें दोबारा मौका नहीं मिला. कांग्रेस ने 1971 के चुनाव में नए प्रत्याशी उम्मेद सिंह को भी पहली ही बार में जीत मिली. फिर सारंगढ़ राजघराने की पुष्पा देवी सिंह को मौका मिला. उन्होंने कांग्रेस की झोली में रायगढ़ लोकसभा सीट डाल दी. लगातार दो बार भाजपा को परास्त किया. तीसरी बार भी कांग्रेस ने पुष्पा देवी सिंह पर ही विश्वास कायम रखा. भाजपा के नंदकुमार साय को मिली करारी शिकस्त के बाद भी 1996 में टिकट दिया. इस बार वे जीतने में कामयाब हो गए.
जाने रायगढ़ लोकसभा सीट का इतिहास
कांग्रेस ने यहां अजीत जोगी चुनाव लड़कर जीत हासिल की. केंद्र में अटल बिहारी की सरकार गिरी तो एक साल बाद ही दोबारा चुनाव हुए.इस बार भाजपा व कांग्रेस दोनों ने चेहरा बदल दिया. भाजपा ने विष्णुदेव साय व कांग्रेस ने दोबारा पुष्पा देवी सिंह को मौका दिया, पर वे विष्णुदेव साय को हराने में कामयाब नहीं हो पाई. 2004 में पत्थलगांव के तत्कालीन विधायक रामपुकार सिंह, 2009 में लैलूंगा तत्कालीन विधायक हृदय राम राठिया, 2014 में आरती सिंह को हार मिली और इस तरह चार बार विष्णुदेव साय लोकसभा के सांसद रहे. 2019 में कांग्रेस ने धरमजयगढ़ विधायक लालजीत सिंह राठिया को मौका दिया और भाजपा ने गोमती साय पर भरोसा जताया. जनता ने फिर एक बार भाजपा को जिताकर गोमती साय को रायगढ़ लोकसभा से सांसद बना दिया.इस तरह छत्तीसगढ़ बनने के बाद अब तक रायगढ़ लोकसभा में भाजपा काबिज है.
रायगढ़ लोकसभा से क्या है प्रत्याशियों को लेकर समीकरण?
राजनीतिक जानकार और भाजपा के करीबी इस बार लोकसभा चुनाव को लेकर अंदाजा लगा रहे है कि रायगढ़ लोकसभा के लिए भाजपा प्रत्याशी कोई रायगढ़ का जमीनी कार्यकर्ता हो सकता है. ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि रायगढ़ लोकसभा के तीन विधानसभा जशपुर जिले में आते हैं जहां से इस बार प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय है. जो पिछले 20 सालों से रायगढ़ लोकसभा के सांसद रहे हैं.उनके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में जशपुर जिले की ही गोमती साय को भाजपा ने मौका दिया था और गोमती सांसद बनी थी. इस बार पार्टी रायगढ़ से किसी को मौका दे सकती हैं. हालांकि सारंगढ़ जिला अलग हो गया है लेकिन सारंगढ़ जिले के एक विधानसभा सारंगढ़ रायगढ़ लोकसभा का हिस्सा है और यहां कांग्रेस मजबूत है ऐसे में लोकसभा के प्रत्याशी देकर भाजपा यहां भी पार्टी को मजबूत बना सकती है.
जिला बदलने से क्या भाजपा को मिलेगी मजबूती?
वर्तमान परिदृश्य में रायगढ़ लोकसभा के 08 विधानसभा में से 04 भाजपा के खाते में है तो वहीं 04 पर कांग्रेस काबीज है. अगर पार्टी रायगढ़ लोकसभा के लिए जशपुर जिले से प्रत्याशी न देकर रायगढ़ जिले से देते हैं तो इससे ज्यादा संभावना है कि रायगढ़ और सारंगढ़ में कमजोर भाजपा को एक बड़ी ताकत मिल सकती है. जशपुर जिले के कुनकुरी से विधायक विष्णुदेव साय मुख्यमंत्री हैं तो वहीं रायगढ़ विधायक ओपी चौधरी मंत्री हैं ऐसे में रायगढ़ लोकसभा जितना बीजेपी के लिए कोई मुश्किल नहीं होगी.