Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के तीन लोगों को इस बार पद्मश्री सम्मान देने का एलान किया गया है. इसमें जशपुर जिले के जागेश्वर यादव की कहानी सबसे खास है. क्योंकि जागेश्वर ने छत्तीसगढ़ की सबसे पिछड़ी जनजाति बिरहोर को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए के अपना घर छोड़ दिया. इसके साथ उन्होंने आदिवासियों के साथ घुलने मिलने के लिए चप्पल का त्याग कर दिया. जागेश्वर यादव जशपुर के भीतघरा गांव रहने वाले है , उनकी अनोखी कहानी को उन्होंने विस्तार न्यूज़ विस्तार से समझाया है.
पद्मश्री जागेश्वर यादव की अनोखी कहानी
दरअसल जागेश्वर यादव बचपन से बिरहोर जनजाति की बदहाली देख रहे थे, वे कक्षा दसवीं तक पढ़े. इसके बाद उन्होंने वन विभाग में नौकरी के लिए आवेदन किया तो वे नौकरी में सलेक्ट हो गए लेकिन बिरहोर जनजाति के लिए कुछ अच्छा करने का जूनून था इसलिए उन्होंने नौकरी ज्वाइन नहीं किया तो घर में पिता की डांट भी सुननी पड़ी. इसके बाद वे घर से 10-15 दिन के लिए निकल जाते थे और बिरहोर जनजाति की बस्तियों में रहकर उन्हें शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए जागरूक करने का प्रयास शुरू किए, शुरू में तो बिरहोर जनजाति के लोग उनके पास भी आना नहीं चाहते थे. क्योंकि उन्हें वे बाहर के आदमी लगते थे इसके कारण उन्होंने उन्हीं की तरफ उनके साथ घुलना मिलना शुरू किया तब धीरे – धीरे वे उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का काम शुरू कर सके.
शादी के लिए भी कोई लड़की नहीं देना चाहते थे
पदम् श्री जागेश्वर यादव ने बताया कि उनका जन्म अक्टूबर 1955 में हुआ, और उनकी शादी 1983 में हुइ, क्योंकि तब उन्हें शादी के लिए भी कोई लड़की नहीं देना चाहते थे, जैसे मेरे में बारे में लड़की वाले जानते थे तो दुरी बना लेते थे, कहते थे बेटी तो दे देंगे लेकिन उसे खिलायेगा भी क्या ? हमेशा तो घूमता रहता है, क्योंकि तब जागरूकता के अपने मिशन के लिए मैं घर से महीने भर तक के लिए निकल जाता था. इसके कारण घर वाले काफी परेशान रहते थे, इस बीच सुशीला यादव से मेरी शादी हुई, वे कहते हैं कि शुरू में मेरी पत्नी को भी मेरा काम अटपटा लगता था. लेकिन मैंने अपना लक्ष्य जब उसे बताया तो वह समझी और फिर मेरे काम में सहयोग दी.
बिरहोर के लिए काम करते देख लोग मेरा मजाक़ उड़ाते थे
उन्होंने आगे बताया कि मेरी एक बहन और एक भाई है. जब मैं बिरहोर जनजाति के लोगों को जागरूक करने कई – कई दिन के लिए निकल जाता था तो वे ही मेरे पिता के काम में हाथ बटाते थे और तब मेरी बहन मुझे बहुत डांटती थी. लेकिन अब पद्मश्री का पुरस्कार मिला है तो वह बहुत खुश है और अब उन दिनों को याद कर आंखों में आंसू आ जाते हैं लेकिन शायद भगवान ने मुझे इसी काम के लिए बना रहा होगा.वे 1980 के दौर को बताते हुए कहते हैं कि बिरहोर के लिए काम करते देख लोग मेरा मजाक़ उड़ाते थे.. कहते थे कि भला बिरहोर लोगों को कोई जागरूक भी कर पाएगा, ये अपना जिंदगी बर्बाद कर रहा है लेकिन आज मुझे सुकून मिलता है कि बिरहोर जनजाति के लोग अस्पताल, स्कूल तक पहुंच रहे हैं और बाहरी दुनिया को समझ गए.
जागेश्वर ने कहा मुख्यमंत्री विष्णु देव साय बेहद प्रभावित रहे हैं
गौरतलब है कि जागेश्वर यादव का एक बेटा है, वह दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी है और परिवार खेती कर जीविकोपार्जन करता है. पद्म श्री जागेश्वर यादव कहते हैं कि उनके काम से मुख्यमंत्री विष्णु देव साय बेहद प्रभावित रहे हैं, उन्होंने बताया कि जब भी मैंने उनसे कुछ भी सहयोग मांगा उन्होंने मुझे दिया और अब तो मुख्यमंत्री हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष पिछड़ी जनजाति के लिए अब बेहतर काम कर रहे हैं और उम्मीद है कि इसका रिजल्ट बिरहोर जनजाति में भी देखने को मिलेगा.