Chhattisgarh: सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले में स्वयंभू एक ऐसा शिवलिंग है, जिसका एक पहाड़ ही जलाभिषेक कर रहा है. पहाड़ से पूरे 12 महीने पानी निकलता है और पानी शिवलिंग के चारो तरफ़ से होकर गुजरता है. यहां महाशिवरात्रि के अलावा पूरे साल महादेव के भक्तो का तांता लगा रहता है. वहीं जलाभिषेक के बाद निकलने वाले पानी से आसपास के खेतों की सिंचाई की जाती है.
स्वप्न आने के बाद राजा ने पहाड़ को खुदवाया
दरअसल, अंबिकापुर से 45 किलोमीटर दूर प्रतापपुर के शिवपुर में भगवान शिव का मंदिर है, जहां महाशिवरात्रि में भक्तों की भीड़ लगी रहती है. इस मंदिर में विराजे शिवलिंग की कई मान्यताएं हैं. मंदिर के पुजारी कहते हैं कि यहां के राजा को स्वप्न आने के बाद राजा ने पहाड़ को खुदवाया था, जिसके बाद यह शिवलिंग मिला और खुदाई के समय से ही पहाड़ से जलधारा बहना शुरू हुई, जो अब तक बह रही है.
मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा रहता था
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा रहा करता था, लेकिन जंगल की आग में एक दिन नाग-नागिन के जोड़े में से एक की मृत्यु हो गई, जिसके बाद भगवान शिव के अभिषेक के लिए पहाड़ से निकलने वाली जलधारा बंद हो गई थी, लेकिन राजा ने फिर भगवान का दुग्धाभिषेक किया, जिसके बाद पहाड़ से जलधारा दोबारा प्रवाहित हुई, जो 12 महीने बराबर रफ्तार में बहती है न ही बरसात में इसमें सैलाब आता है और न ही गर्मी में यह धारा सूखती है. यहां पहाड़ से जो जलधारा निकल रही है, वो शिवलिंग का अभिषेक करने के बाद एक मानव निर्मित कुंड में एकत्र होती है, जिसे लोग शिव चरणामृत रूपी पानी से नहाकर खुद को धन्य मानते हैं.
इतिहासकार अजय चतुर्वेदी ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम ने इस शिवलिंग की स्थापना वनवास काल के दौरान किया था. ऐसा भी कहा जाता है कि यहां के एक राजा ने स्वप्न आने के बाद इस स्थल की खुदाई कराई तो यह शिवलिंग निकला. यहां पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है.