Mata Sita: छत्तीसगढ़ का भगवान राम और माता सीता से खास कनेक्शन रहा है. माना जाता है कि भगवान राम की माता कौशल्या का जन्म छत्तीसगढ़ में ही हुआ था. इसकी वजह से छत्तीसगढ़ के लोग राम भगवान को भाचा राम कह कर भी संबोधित करते हैं. छत्तीसगढ़ के लोग बहन के बच्चों को भाचा और भाची कहते हैं. रामायण काल से ही रामजी की कहानियां छत्तीसगढ़ के बिना अधूरी सी रही हैं. भगवान राम ने अपने वनवास का काफी समय छत्तीसगढ़ में बिताया है, जिसके चलते राज्य के बहुत से स्थलों पर भगवान राम के अंशों का उल्लेख है. उनमें से एक तुरतुरिया धाम है. माना जाता है की इस स्थल में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था.
क्या है तुरतुरिया धाम
तुरतुरिया एक नहीं बल्कि कई धार्मिक और पौराणिक कारणों से प्रसिद्ध है. यह प्राचीन स्थल बलौदा बाजार और महासमुंद जिले के सरहद पर स्थित है, जो राजधानी रायपुर से करीब 84 किमी दूर बलौदा बाजार के बहरिया नामक गांव में स्थित है. तुरतुरिया को महर्षि वाल्मीकि की तपस्थली के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि यहां पर एक आश्रम बनाकर साधना करते थे. महर्षि वाल्मीकि को पूरे विश्व में संस्कृत रामायण के रचनाकार के रूप में जाना जाता है.
महर्षि ने ही रामायण की रचना करके प्रभु श्रीराम को दुनिया के सामने रखा था. वाल्मीकि ने 24000 शलोकों में भगवान श्रीराम के जीवन के उप्पर रामायण लिखी थी. महर्षि वाल्मीकि के आश्रम का अंश आज भी देखा जा सकता है.
लव-कुश और माता सीता के नाम बदलने की कहनी
तुरतुरिया का यह क्षेत्र कई मायनों में विशेष महत्व रखता है. तुरतुरिया में ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था. पर आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि तुरतुरिया धाम में ही माता सीता ने अपने बेटे लव और कुश को जन्म दिया था. इसका संदर्भ कई ग्रंथो और पुराणों में मिलता है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब सीता माता गर्भ से थीं. तब श्री राम के भाई लक्ष्मण ने उन्हें वाल्मीकि जी के आश्रम तुरतुरिया में छोड़ दिया था.
जिसके पश्चात माना जाता है कि माता सीता ने लव और कुश नाम के दो बालकों को जन्म दिया. जन्म के बाद दोनों का लालन पालन, शिक्षा और दीक्षा वहीं तुरतुरिया धाम में हुई. माना जाता है कि जितने वर्ष भी माता सीता तुरतुरिया के आश्रम में रही थीं, तब तक अपना नाम बदलकर रहती थीं ताकि किसी को भी उनके होने का पता न चले.