Raj Kapoor 100th Birth Anniversary: हिंदी सिनेमा के इतिहास में कुछ गाने ऐसे हैं जो न केवल एक पीढ़ी की आवाज हैं, बल्कि उनकी धुनें, बोल और संगीत दशकों तक लोगों के दिलों में गूंजते रहते हैं. ऐसा ही एक गाना था “आवारा हूं…”, जो फिल्म आवारा से जुड़ा हुआ है. यह गाना राज कपूर की फिल्म का हिस्सा था, जिसने न केवल भारतीय सिनेमा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी धूम मचाई. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह गाना राज कपूर ने पहले अपनी फिल्म में शामिल करने से इनकार कर दिया था? दरअसल, यह गाना एक समय में राज कपूर के लिए जोखिम जैसा लग रहा था, लेकिन बाद में वही गाना भारतीय सिनेमा के इतिहास का हिस्सा बन गया.
आवारा फिल्म का यह गाना “आवारा हूं… गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं…” आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है. इसका संगीत, बोल और खासकर मुकेश की आवाज ने इस गाने को अमर बना दिया. इस गाने का आज भी उतना ही प्रभाव है, जितना उस समय था, जब यह फिल्म और गाना रिलीज हुआ था. लेकिन फिल्म आवारा और इस गाने के सफर में एक दिलचस्प मोड़ आया, जब राज कपूर ने पहले इसे अपनी फिल्म का हिस्सा बनाने से मना कर दिया था. फिर क्या हुआ कि इस गाने को फिल्म में शामिल किया गया और यह गाना एक आइकॉनिक ट्रैक बन गया? चलिए, इस पूरी कहानी को विस्तार से समझते हैं…
फिल्म “आवारा” और राज कपूर
1951 में रिलीज हुई फिल्म आवारा को हिंदी सिनेमा का एक मील का पत्थर माना जाता है. इस फिल्म को राज कपूर ने निर्देशन किया था और फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई थी. फिल्म की कहानी स्वतंत्रता के बाद की युवा पीढ़ी की महत्वाकांक्षाओं और भटकाव को दर्शाती है. फिल्म में राज कपूर का किरदार “राजू” एक ऐसा युवक था, जो अपनी परिस्थितियों के कारण अपराध की दुनिया में घिर जाता है. यह फिल्म उस समय के समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है, और इसके माध्यम से राज कपूर ने अपनी फिल्मों में एक सामाजिक संदेश देने की कोशिश की थी.
लेकिन आवारा फिल्म की कहानी सिर्फ इसके पात्रों और उनके संघर्षों की नहीं थी, बल्कि इसके गाने भी फिल्म के असरदार हिस्से थे. इन गानों में एक गाना, “आवारा हूं…” खास था, जिसे शैलेन्द्र ने लिखा और शंकर जयकिशन ने संगीतबद्ध किया था. यह गाना राज कपूर के लिए एक बड़ा सवाल बन गया था, और उन्होंने इसे फिल्म में शामिल करने से इनकार कर दिया था. लेकिन यह गाना बाद में कैसे फिल्म का हिस्सा बना और एक आइकॉनिक हिट गाना बन गया, यह जानना दिलचस्प है.
राज कपूर का पहला रिजेक्शन
राज कपूर की फिल्में हमेशा से ही सामाजिक संदेश और संवेदनशीलता को दर्शाती हैं, और उनकी फिल्मों का संगीत भी उसी दिशा में होता था. जब शैलेन्द्र ने गाना “आवारा हूं…” लिखा और संगीतबद्ध किया, तो राज कपूर ने इसे अपनी फिल्म में शामिल करने के लिए पहले असहमति जताई. उनका मानना था कि यह गाना फिल्म के मुख्य थीम से मेल नहीं खाता. वे यह नहीं चाहते थे कि इस गाने से फिल्म की संदेश और कहानी पर कोई नकारात्मक असर पड़े. राज कपूर ने गाने को रिजेक्ट कर दिया.
शैलेन्द्र इस रिजेक्शन से निराश हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने गाने को फिर से तैयार किया और राज कपूर को सुनाने का प्रयास किया, लेकिन राज कपूर के मन में संशय और आशंका बनी रही. फिल्म में शैलेन्द्र और राज कपूर की जोड़ी पहले ही बरसात जैसी हिट फिल्म दे चुकी थी, और दोनों के बीच दोस्ती और आपसी सम्मान था. लेकिन गाने को लेकर उनका नजरिया अलग था.
ख्वाजा अहमद अब्बास का अहम सुझाव
यहां पर कहानी का एक अहम मोड़ आता है. जब राज कपूर और शैलेन्द्र गाने को लेकर असमंजस में थे, तब उन्होंने अपने दूसरे मित्र और लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास से राय लेने का निर्णय लिया. ख्वाजा अहमद अब्बास, जो फिल्म के पटकथा लेखक थे, राज कपूर के बहुत करीबी दोस्त थे. वे दोनों सिनेमा के प्रति अपने दृष्टिकोण में समान विचार रखते थे. जब राज कपूर और शैलेन्द्र ने अब्बास साहब से गाने के बारे में बात की, तो ख्वाजा अहमद अब्बास ने इस गाने को सुनते ही कहा, “यह गाना तो बेहतरीन है. अगर इसे फिल्म में शामिल किया जाए तो यह फिल्म के थीम सांग का हिस्सा बन सकता है.”
अब्बास साहब के इस सुझाव से राज कपूर का नजरिया बदल गया. उन्होंने अपने मन के संशय को हटाया और गाने को फिल्म में शामिल करने का फैसला किया. इसके बाद गाने की शूटिंग की गई और फिल्म आवारा के इस गाने को अंतिम रूप दिया गया.
गाने का असर और अंतरराष्ट्रीय सफलता
फिल्म आवारा और उसके गाने का असर केवल भारत तक सीमित नहीं रहा. यह गाना पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया. खासकर सोवियत संघ और चीन जैसे देशों में इस गाने ने धूम मचाई. रूस में तो यह गाना बच्चों की जुबान पर चढ़ गया, और रेडियो मॉस्को पर यह गाना अक्सर बजता था. गाने का असर इतना गहरा था कि इसके विभिन्न संस्करण रूस और अन्य देशों की भाषाओं में भी बनाए गए.
यह गाना भारत-रूस के रिश्तों के एक प्रतीक के रूप में भी देखा गया. इस गाने और फिल्म ने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सेतु का काम किया. यही नहीं, चीन में भी इस गाने की सफलता ने भारतीय सिनेमा को एक नई पहचान दिलाई. फिल्म और गाने का असर पूरी दुनिया पर पड़ा, और भारतीय सिनेमा की एक नई दिशा को जन्म दिया.
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आवारा की गहरी छाप
गाने का संदेश “आवारा हूं…” बहुत गहरा था. इस गाने में राज कपूर के किरदार की स्थिति को दर्शाया गया था, जो अपने संघर्षों और परिस्थितियों के बावजूद अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता है. यह गाना उस समय के युवाओं के बीच एक हिट हो गया, क्योंकि यह उनकी खुद की भटकाव और संघर्षों को व्यक्त करता था. गाने में न केवल एक व्यक्तित्व की यात्रा थी, बल्कि यह समाज की स्थिति और युवा पीढ़ी के मानसिक संघर्षों का प्रतीक बन गया था.
आवारा फिल्म का संदेश भी यही था कि इंसान जन्म से बुरा नहीं होता, बल्कि उसकी परिस्थितियां और सामाजिक परिवेश उसे उसकी दिशा तय करते हैं. यह गाना उस विचारधारा को और भी मजबूती से प्रस्तुत करता है. फिल्म का यह संदेश पूरे भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में फैल गया और लोगों ने इसे अपनी ज़िंदगी से जोड़ा.
राज कपूर का योगदान
राज कपूर न केवल एक महान अभिनेता थे, बल्कि एक निर्देशक, निर्माता और विचारक भी थे. उनकी फिल्में हमेशा से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने वाली होती थीं. राज कपूर की फिल्मों के गाने आज भी याद किए जाते हैं. “आवारा हूं…”, “मेरा जूता है जापानी”, “जिस देश में गंगा बहती है”, और “जीना यहां मरना यहां” जैसे गाने उनकी कालजयी पहचान बन गए हैं. इन गानों ने राज कपूर को न केवल भारतीय सिनेमा में, बल्कि दुनिया भर में एक सशक्त पहचान दिलाई.
राज कपूर का यह योगदान न केवल फिल्म इंडस्ट्री के लिए था, बल्कि उनके विचार और उनके गाने आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं. फिल्म आवारा और इसके गाने ने भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक नई दिशा दी.