Dhadak 2 Review: आज जहां हम चांद और मंगल पर जाने का ख्वाब देख रहे हैं, वहीं हमारा समाज आज भी जाति उस ऊंची-नीची दीवार को लांघ नहीं पाया है. आज भले ही लोग आरक्षण पर सवाल उठाते हैं, मगर आज भी समाज के अंदर जातियों का भेद-भाव ऐसे भरा हुआ है कि इसे निकलने में शायद और 75 साल लग जाएं. और इसी जाति के भेद-भाव पर आधारित है फिल्म ‘धड़क 2.’ भोपाल में शूट हुई ये फिल्म समाज को आयना दिखाने के लिए बेहद जरूरी है. क्योंकि ये सिर्फ एक लव स्टोरी नहीं है, बल्कि यह समाज की उस बीमारी की बात करती है जो अभी तक नहीं निकली है. इस बीमारी का नाम है ‘जातिवाद.’
कहानी
फिल्म की कहानी में एक दलित लड़का और एक ब्राह्मण लड़की कॉलेज में मिलते हैं प्यार हो जाता है. इसके बाद जाहिर तौर पर लड़की के परिवार वाले लड़के की जिंदगी नर्क कर देते हैं. लेकिन होता क्या है? करण जौहर ने बहुत तरह की लव स्टोरीज बनाई है. लेकिन यह जरा अलग है. यह एक तमिल फिल्म का अडप्टेशन है. उस फिल्म का नाम है पेुमल पेरियरम’ है. यह फिल्म हिंदी डब में अवेलेबल नहीं है और यह भी एक वजह है कि आप धड़क 2 देख सकते हैं क्योंकि आजकल कई लोगों को इस बात से बड़ी प्रॉब्लम होती है कि रीमेक है. लेकिन अगर रीमेक असरदार है और अगर रीमेक एक ऐसी बात कह रहा है जो जरूरी है तो वो रीमेक देखा जाना चाहिए.
एक्टिंग
एक्टिंग की बात करें तो सिद्धांत चतुर्वेदी ने अपना बेस्ट परफॉर्मेंस दिया है. एक दलित लड़के के किरदार को उन्होंने जिस तरह से जिया है वो कमाल है. उन्होंने एक डरे-सहमे से दलित लड़के की भूमिका निभाई है. इस किरदार के साथ सिद्धांत पूरी तरह से जस्टिस करते हैं. जब गुस्सा दिखाते हैं तो भी पूरी शिद्दत से दिखाते हैं और जिन सीन्स में वो पिटते रहते हैं उन सीन्स में आपको उनपर तरस आ जाता है जो बताता है कि सिद्धांत की एक्टिंग में अब बहुत ज्यादा धार आ चुकी है.
तृप्ति डिमरी से बहुत लोगों को शिकायत थी कि वो कला जैसी फिल्में क्यों नहीं करती? वो एनिमल जैसी फिल्में ही क्यों करती हैं? भाई पॉपुलैरिटी भी तो आपने एनिमल से ही दी थी. इस फिल्म से तृप्ति ने सभी की शिकायतों को दूर कर दिया है. एकदम नॉन ग्लैमरस परफॉर्मेंस फोकस्ड रोल निभाया है. सौरभ सचदेवा एक किलर बने हैं लेकिन वो प्रोफेशनल किलर नहीं है. उनका कहना है कि वो समाज की गंदगी साफ कर रहे हैं. यहां सौरभ का काम जबरदस्त है. जाकिर हुसैन कॉलेज के डीन बने हैं और बढ़िया काम किया है. उन्होंने एक जगह जब वह कहते हैं कि मुझे भी दलित होने की वजह से पहले बहुत कुछ सहना पड़ा और अब लोग अपने बच्चों के एडमिशन के लिए मेरे आगे हाथ बांधे खड़े रहते हैं तो आप उनका दर्द महसूस कर सकते हैं.
मंजरी पुपाला का काम शानदार है.सात बिलग्रामी तृप्ति के भाई बने हैं और आपको उनसे नफरत हो सकती है. इस कदर खूंखार तरीके से उन्होंने नेगेटिव किरदार को निभाया है, मतलब आपको लगेगा कि यह लड़का सिद्धांत के पीछे क्यों पड़ा है?
राइटिंग और डायरेक्शन
इस फिल्म को लिखा है राहुल बाड़वेलकर और शाजिया इकबाल ने और शाजिया इकबाल ने ही फिल्म को डायरेक्ट किया है और इनकी राइटिंग और डायरेक्शन में दम है. फिल्म के कई सीन काफी इंपैक्टफुल हैं. सिर्फ लव स्टोरी पे फोकस नहीं किया गया है. फिल्म जो कहना चाहती है उस पर फिल्म की राइटिंग के दौरान वाकई में काम किया गया है. और यही इस फिल्म की ताकत है कि ये फिल्म महज एक लव स्टोरी नहीं है. ये उससे आगे जाती है.
म्यूजिक
फिल्म का म्यूजिक बढ़िया है. खासतौर पर जो टाइटल ट्रैक है बस एक धड़क जिसे मोसिन इकबाल ने कंपोज किया है. रश्मि विराग ने लिखा है. बीच-बीच में आता है. हालांकि पूरा नहीं दिखाया. जो थोड़ा डिसपॉइंटमेंट हुई लेकिन बीच-बीच में जब आता है तो फिल्म को एक दिशा देता है. इसके अलावा बाकी के जितने भी गाने हैं सोलफुल हैं. मजा आता है गाने सुनने में.
फिल्म देखें या नहीं
कुल मिला के ये फिल्म देखने लायक है और ऐसी फिल्में देखी जानी चाहिए. करण जौहर अपने पुराने स्टाइल से आगे बढ़ कर नई तरह की स्टोरी पर काम किया है. जो उनके लिए सबसे अलग और बढियां एक्सपीरियंस रहा होगा. फिल्म का कोई भी सीन आपको खींची हुई नहीं लगती, कुछ सीन बहुत असरदार लगते हैं. आपको ऐसा लगता है कि यह फिल्म आपको कुछ ऐसा समझा और सिखा रही है जो शायद आपके और समाज के लिए बहुत जरुरुी है. इस फिल्म को हम 5 में से 3.5 स्टार्स देते हैं.
