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IPL छोड़िए, Netflix पर “TEST” की इस इमोशनल इनिंग्स को मिस मत कीजिए!

'TEST' Review

'टेस्ट' रिव्यु

TEST Review: हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म “टेस्ट” एक ऐसी फिल्म है जो टेस्ट क्रिकेट की तरह धीमी जरूर है, लेकिन इसकी गहराई और इमोशन्स आखिरी ओवर तक बांधे रखते हैं. ये सिर्फ क्रिकेट की कहानी नहीं है, ये रिश्तों, महत्वाकांक्षाओं और जिंदगी की उलझनों की कहानी है, जो तीन किरदारों की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है. दरअसल फिल्म “टेस्ट” रिश्तों की बाउंड्री पर खड़ा एक इमोशनल रन चेज की कहानी है, लेकिन इमोशंस की पिच पर खेला गया मैच, जिसमें कहीं न कहीं स्क्रिप्ट ने नो बॉल कर दी.

कहानी का फॉर्मेशन

फिल्म की कहानी अर्जुन वेंकटरामन (सिद्धार्थ) के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जो भारत का एक स्टार टेस्ट बल्लेबाज है, लेकिन अब करियर के आखिरी दौर में है. उसका जीवन मैदान से बाहर भी संघर्षों से भरा है, वहीं सरवनन (माधवन) अपने प्रोजेक्ट/ स्टार्टअप के लिए पैसों की जद्दोजहद में है. जबकि पत्नी कुमुधा (नयनतारा) IVF के जरिए बच्चा चाहती है. अचानक एक मैच फिक्सिंग स्कैंडल की परछाई अर्जुन की जिंदगी पर गिरती है, जिससे उसकी निजी और प्रोफेशनल जिंदगी में भूचाल आ जाता है, फिर कहानी इन तीनो के इर्द-गिर्द घुमती है.

तीन किरदार, तीन जज़्बात, तीन लक्ष्य –

अर्जुन वेंकटरामन (सिद्धार्थ)– भारत का बेस्ट टेस्ट बल्लेबाज़, करियर के आखिरी मोड़ पर खड़ा.
सरवनन (आर. माधवन)– एक जुझारू बिज़नेस/ स्टार्टअप आइडिया के पीछे भागता.
कुमुधा (नयनतारा)– मां बनने की चाह लिए संघर्षरत पत्नी.

तीनों की जिंदगीयां एक टेस्ट मैच के इर्द-गिर्द घूमती हैं जो सिर्फ क्रिकेट नहीं, बल्कि एक बड़े फैसले की पिच बन जाती है. मैच फिक्सिंग, पितृत्व, बेटे की किडनैपिंग और करियर की दूसरी पारी जैसे एंगल्स कहानी में झलकते हैं– लेकिन सही ग्रिप नहीं बना पाते.

एक्टिंग का स्कोरकार्ड

माधवन अपने किरदार में पूरी जान डालते हैं– सीमित स्क्रीनटाइम में भी वो स्क्रीन पर अडिग रहते हैं.
सिद्धार्थ ने बेहतरीन कंट्रोल के साथ अर्जुन का गुस्सा, थकान और जुनून दिखाया है– यह शायद उनका सबसे मैच्योर परफॉर्मेंस है.
नयनतारा का किरदार इंटेंस है, लेकिन स्क्रिप्ट ने उन्हें पूरा उभरने नहीं दिया– कहीं-कहीं उनका ट्रांसफॉर्मेशन अचानक और असंतुलित लगता है.
मीरा जैस्मिन, नासर, विनय वर्मा जैसे कलाकारों ने अच्छा बैलेंस रखा, लेकिन सीमित स्पेस के कारण चमक नहीं पाए.

फिल्ममेकिंग की पिच रिपोर्ट
स्क्रीनप्ले-

स्टार्ट स्लो है, लगभग 40 मिनट तक कहानी खुद को सेट करती रहती है. ट्विस्ट्स हैं, लेकिन वो ज़्यादा ड्रामेटिक नहीं बल्कि थोड़े फोर्स्ड लगते हैं. कुछ सीन तो ऐसे हैं जो जुड़ते नहीं– जैसे मैच खत्म हो चुका है, लेकिन सरवनन और कुमुदा के बहस की बीच TV पर अभी भी मैच चल रही है. यह स्क्रिप्ट की निरंतरता का बड़ा लोचा है. ऐसा कई बार देखने को मिलता है.

डायरेक्शन-

एस. शशिकांत की सोच इमोशनल है, लेकिन execution में टाइटनेस की कमी है. कुछ सीन बेहतरीन हैं-जैसे अर्जुन का आखिरी मैच खेलना, या बेटे की किडनैपिंग वाला मोमेंट– लेकिन बीच में फिल्म ट्रैक से भटक जाती है.

मैच फिक्सिंग एंगल-

यह इंटरेस्टिंग हो सकता था, लेकिन लॉजिक की धज्जियां उड़ती हैं. सिर्फ एक खिलाड़ी को फिक्स कर के पूरी टीम का मैच कौन हारता है? सिनेमैटिक फ्रीडम ठीक है, लेकिन क्रेडिबिलिटी भी जरूरी है. स्क्रीनप्ले थोड़ा और टाइट हो सकता था. शुरुआती 30-40 मिनट कुछ ज़्यादा ही धीमे लगते हैं और कुछ सीन्स में तालमेल की कमी दिखती है.

हालांकि फिल्म का कैमरा वर्क और प्रोडक्शन डिज़ाइन संतुलित है लेकिन क्रिकेट मैच के सीन्स में सच्चाई और थ्रिल की कमी खलती है. मैच फिक्सिंग एंगल दिलचस्प तो है, लेकिन तार्किकता के स्तर पर थोड़ा और काम किया जा सकता था.

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इमोशनल कोर – यही फिल्म की जीत है:

-अधूरे सपने और अधूरी पारियां

-जिंदगी में “रिटायरमेंट” लेने का दर्द

-यहां फिल्म दिल से खेलती है, और यही वो पहलू है जो दर्शकों को जोड़कर रखता है

कुल मिलाकर “टेस्ट” एक इमोशनल ड्रामा है जो ठीक-ठाक शुरुआत करता है, बीच में लड़खड़ाता है, लेकिन एंड तक आते-आते आपको सोचने पर मजबूर करता है. अगर आप सिर्फ एक तेज रफ्तार थ्रिलर या IPL जैसा मसाला ढूंढ रहे हैं– ये आपकी फिल्म नहीं है. ये फिल्म T20 की तरह तेज नहीं, लेकिन जो बाउंड्री मारती है, वो सीधा दिल में लगती है. हां, लेकिन आप सिनेमा में इमोशंस, शानदार किरदार के साथ अभिनय और संघर्ष के असली देखना चाहते हैं, तो “टेस्ट” आपको निराश नहीं करेगी. आप भावनाओं, क्रिकेट और रिश्तों की परतों में डूबकर सिनेमा का अनुभव लेना चाहते हैं, तो “टेस्ट” आपके लिए एक धीमा लेकिन दिल से खेला गया शतक हो सकता है.

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