Bollywood Story: ‘कितने आदमी थे… ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर… इन डायलॉग्स को सुनते ही दिमाग में गब्बर सिंह की खौफनाक हंसी और उसका रौबदार अंदाज आ जाता है. रमेश सिप्पी की फिल्म शोले (1975) का गब्बर सिंह आज भी हर दिल में बस्ता है. लेकिन क्या आपको पता है कि ये लेजेंड्री विलेन कहां से जन्मा? जी हां, गब्बर सिंह का ‘बाप’ था जब्बर सिंह, जो चार साल पहले 1971 में आई फिल्म मेरा गांव मेरा देश में नजर आया था. आइए, इस दिलचस्प कहानी को विस्तार से जानते हैं, जिसमें डाकुओं का खौफ, गांव की जंग और सिनेमाई जादू का तड़का है.
गब्बर का ‘प्रेरणा पुरुष’ जब्बर सिंह
1971 में जब डायरेक्टर राज खोसला ने ‘मेरा गांव मेरा देश’ बनाई, तो उन्होंने राजस्थान के रेगिस्तानी गांवों की पृष्ठभूमि में एक खूंखार डाकू की कहानी बुनी. इस डाकू का नाम था जब्बर सिंह, जिसे विनोद खन्ना ने अपने शानदार अभिनय से जीवंत कर दिया. उस वक्त विनोद खन्ना इंडस्ट्री में नए-नए आए थे और विलेन के रोल्स से धमाल मचा रहे थे. उनकी दमदार आवाज और रौबदार पर्सनैलिटी ने जब्बर सिंह को ऐसा खलनायक बनाया, जो दर्शकों के दिलों में खौफ और स्क्रीन पर आग लगा देता था.
मेरा गांव मेरा देश की कहानी एक ऐसे गांव की है, जहां डाकुओं का राज चलता है. जब्बर सिंह का गिरोह गांव वालों को लूटता है, डराता है और खून की होली खेलता है. लेकिन गांव में एक नया मेहमान आता है, अजय (धर्मेंद्र), जो एक छोटा-मोटा अपराधी है पर दिल का साफ. उसे एक रिटायर्ड हवलदार (जयंत) शरण देता है, जो चाहता है कि अजय सुधर जाए. लेकिन जब जब्बर सिंह गांव पर कहर बरपाता है, तो अजय उसका मुकाबला करता है. कहानी में एक्शन, ड्रामा और इमोशन्स का जबरदस्त मिश्रण है.
एक जैसे नाम, एक जैसा खौफ
अब आते हैं शोले पर. 1975 में रिलीज हुई शोले को सलीम-जावेद की जोड़ी ने लिखा और रमेश सिप्पी ने डायरेक्ट किया. इस फिल्म का गब्बर सिंह (अमजद खान) आज भी बॉलीवुड के सबसे आइकॉनिक विलेन में शुमार हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गब्बर का किरदार जब्बर सिंह से प्रेरित था? सलीम-जावेद ने खुद कई इंटरव्यूज में माना कि मेरा गांव मेरा देश ने शोले की कहानी को शेप देने में बड़ा रोल निभाया.
गब्बर सिंह और जब्बर सिंह, दोनों नाम इतने करीब हैं कि सुनते ही खौफ पैदा होता है. दोनों ही डाकू हैं, जो गांव वालों की नींद उड़ा देते हैं. मेरा गांव मेरा देश में धर्मेंद्र एक चोर है, जो जेल से छूटकर गांव में सुधरने की कोशिश करता है. शोले में भी जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेंद्र) छोटे-मोटे अपराधी हैं, जिन्हें ठाकुर (संजीव कुमार) गांव की हिफाजत के लिए बुलाता है.
दोनों फिल्मों में डाकू का ठिकाना बीहड़ों और पहाड़ियों में है. जब्बर सिंह की तरह गब्बर भी अपने गिरोह के साथ लूटपाट और हिंसा का तांडव मचाता है. शोले में गब्बर वीरू को बांधकर बसंती (हेमा मालिनी) से नाच करवाता है. ठीक ऐसा ही सीन मेरा गांव मेरा देश में है, जहां जब्बर सिंह अजय और अंजलि (आशा पारेख) को बांधता है, और उनके सामने लक्ष्मी छाया गाना गाती है, “मार दिया जाए कि छोड़ दिया जाए…’
शोले में जय हर मुश्किल फैसले के लिए सिक्का उछालता है. यही आदत मेरा गांव मेरा देश में अजय की है, जो कई बार सिक्का उछालकर रास्ता चुनता है. शोले में वीरू बसंती को बंदूक चलाना सिखाता है, जिसमें वो एक आंख बंद करने को कहता है. हैरानी की बात है कि मेरा गांव मेरा देश में भी अजय, अंजलि को ठीक ऐसे ही निशाना लगाना सिखाता है. दोनों सीन लगभग हू-ब-हू हैं.
शोले का ठाकुर और मेरा गांव मेरा देश का रिटायर्ड हवलदार, दोनों की कहानी में भी गजब का कनेक्शन है. दोनों ही अपने गांव के रक्षक हैं, लेकिन दोनों की जिंदगी में त्रासदी है. ठाकुर के दोनों हाथ गब्बर ने काट दिए, तो हवलदार का एक हाथ पहले ही कटा हुआ है. दोनों अपनी-अपनी कहानी में डाकुओं से बदला लेने के लिए जय-वीरू और अजय जैसे किरदारों की मदद लेते हैं.
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अमजद खान और जयंत
मेरा गांव मेरा देश से शोले का रिश्ता और भी गहरा है. मेरा गांव मेरा देश में रिटायर्ड हवलदार का रोल निभाया था जयंत ने, जो अमजद खान के पिता थे. जयंत साठ के दशक में अपनी दमदार आवाज और शख्सियत के लिए मशहूर थे. लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था. 1975 में जब शोले रिलीज हुई, उससे सिर्फ दो महीने पहले जयंत का निधन हो गया. यानी वो अपने बेटे अमजद खान को गब्बर सिंह के रोल में नहीं देख सके.
क्यों भूल गए लोग मेरा गांव मेरा देश?
शोले ने बॉलीवुड में इतिहास रच दिया. इसके डायलॉग्स, गाने और किरदार आज भी जिंदा हैं. लेकिन मेरा गांव मेरा देश धीरे-धीरे लोगों की यादों से फीकी पड़ गई. फिर भी, इस फिल्म का जादू कम नहीं था. इसके गाने जैसे ‘आया आया अतरिया पे कोई चोर…’ और ‘सजन रे झूठ मत बोलो…’ आज भी गुनगुनाए जाते हैं. विनोद खन्ना का जब्बर सिंह उतना ही खतरनाक था, जितना अमजद खान का गब्बर. फिर भी, शोले की कामयाबी के सामने ये फिल्म कहीं पीछे रह गई.
