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Phule Movie Review: समाज की बराबरी को दिखती एक खूबसूरत फिल्म, प्रतीक और पत्रलेखा की अवार्ड विनिंग परफॉरमेंस

phule movie review (photo - google)

फुले मूवी रिव्यू (क्रेडिट- गूगल)

Phule Movie Review: आपकी बेटी, आपकी मां या आपकी बहन कहां तक पढ़ी हैं ? अगर आपकी कोई बेटी होगी तो आप उसे कहां तक पढ़ाएंगे. आप में से 90 परसेंट लोग यही कहेंगे की जितनी अच्छी से अच्छी पढाई हो सके हम करवाएंगे, हायर स्टडीज भी करवाएंगे. लेकिन क्या आपको पता है कि आप ऐसा बोल पा रहे हैं और आपकी बेटी अगर इतना पढ़ पाती है उसके पीछे कौन जिम्मेदार है ? आपकी मम्मी, आपकी भाभी आपके घर की जितनी भी महिलाएं हैं, लड़कियां हैं अगर वो आज पढ़ रही हैं उसके पीछे कौन जिम्मेदार है ?

जो लोग इसके पीछे जिम्मेदार हैं उन पर एक फिल्म बनी है जिसका नाम है फुले, तो आप एक काम कीजिये उस फिल्म पर और खुद पर भी एक एहसान कीजिए, इस फिल्म को देख डालिए. अब ऐसा मैं क्यों कह रहा हूं पूरा रिव्यू पढ़िए समझ जायेंगे.

कुछ इस तरह फिल्म की कहानी

हमारे देश के हीरो महात्मा ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले की कहानी पर ये फिल्म बनी है. ज्योतिबा फुले ने पहले अपनी पत्नी सावित्रीबाई को घर पर ही पढ़ाया. उस दौर में जब लड़कियों को पढ़ाना पाप माना जाता था, फिर उन्होंने अपनी पत्नी को टीचर बनने की ट्रेनिंग दी और फिर स्कूल खुलवाए. लड़कियों को पढ़ाया, लोग उनका विरोध करते थे, ऊंची जाति के लोग विरोध किया करते थे. उस वक्त समाज में और भी बीमारियां थी. छुआछूत, विधवाओं का मुंडन करवाना जैसी, ज्योतिबा फुले ने इन सबके खिलाफ आवाज उठाई. उनकी आवाज दूर तक पहुंची, ऐसे हीरोज की कहानियां जब बनती हैं ना तो देख के भी गर्व होता है.

ऐसी फिल्में बनना जरूरी है ये फिल्में सिनेमा के लिए और समाज के लिए जरूरी हैं. ये फिल्में सिनेमा की आत्मा होती हैं और यह फिल्में बताती हैं कि अच्छा सिनेमा बनता है. इस कहानी को देखिएगा कि कितनी दिक्कतें उनके सामने आई एक सीन आता है, जब ज्योतिबा फुले खड़े होते हैं और कुछ ऊंची जाति के लोग उनकी परछाई से भी दूर भाग जाते हैं क्योंकि उस वक्त कहा जाता था कि नीची जाति के लोगों की परछाई भी हम पर नहीं पड़नी चाहिए. ज्योतिबा फुले ने ही सबसे पहले दलित शब्द का इस्तेमाल किया था.

प्रतीक और पत्रलेखा की शानदार एक्टिंग

इस फिल्म के एक्टर्स की बात करूं तो दोनों एक्टर्स प्रतीक गांधी और पत्रलेखा नेशनल अवॉर्ड के हकदार हैं. क्या कमाल का काम किया है, प्रतीक गांधी हर एक फ्रेम में लाजवाब हैं. चाहे ज्योतिबा फुले का बचपन हो, जवानी हो या फिर बुढ़ापा हो. वैसे बचपन का किरदार तो एक और एक्टर ने निभाया है लेकिन जवानी से लेकर बुढ़ापे तक का जो किरदार है प्रतीक शिद्दत से निभाते हैं बॉडी लैंग्वेज से लेकर डायलॉग डिलीवरी तक.

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आप फोटो देखेंगे ज्योतिबा फुले की और प्रतीक गांधी को देखेंगे लगेगा दोनों सेम टू सेम जिया है. प्रतीक ने इस किरदार को और प्रतीक वर्सटाइल एक्टर हैं. यह बात वो बार-बार साबित करते हैं पत्रलेखा ने मुझे सबसे ज्यादा चौंकाया मेरा मानना है कि पत्रलेखा में बहुत टैलेंट है और बॉलीवुड उसे यूज नहीं करता. पत्रलेखा आपको सावित्रीबाई ही लगती हैं. बुढ़ापे का जो शेड है वह तो पत्रलेखा ने इस कमाल तरीके से निभाया है कि आप बस देखते रह जाते हो फिल्म की शुरुआत ही उनके बुढ़ापे के सीन से होती है. बॉडी लैंग्वेज से लेके मैनरिज्म हर चीज में पत्रलेखा शानदार हैं. ये किरदार जिसने सोचा था कि पत्रलेखा निभा सकती हैं वाकई वो आदमी जोहरी है क्योंकि यह सोचना कि पत्रलेखा इस तरह का किरदार निभा सकती हैं. इसके लिए भी एक विजन चाहिए और पत्रलेखा ने उस विजन को साकार किया है. हां, ऐसी काल विशेष की कहानियों में किरदारों में कलाकारों का खो जाना बहुत जरूरी है. फिल्म के सहायक कलाकारों में विनय पाठक और एलेक्स ओ नील का काम अत्यंत प्रभावी है.

म्यूजिक और एडिटिंग और कैमरा वर्क

रोहन प्रधान और रोहन गोखले का म्यूजिक काफी अच्छा है. स्पेशली इमोशनल सीन्स के मामले में तो और ज्यादा बेहतर है. मोनाली ठाकुर का गाया और कौसर मुनीर का लिखा गाना ‘साथी’ फिल्म को भावुक बनाने में बहुत मदद करता है. ओपनिंग क्रेडिट्स में फिल्म की सिनेमैटोग्राफर सुनीता राडिया का नाम शायद नहीं दिखा. लेकिन काम उनका भी बोलता है. रौनक फडनिस ने एडिटिंग में फिल्म को क्रिस्प रखा है.

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बेमिसाल का डायरेक्शन

अनंत महादेवन का डायरेक्शन बहुत बढ़िया है. अनंत जितने कमाल के एक्टर हैं, उससे ज्यादा कमाल के डायरेक्टर साबित हो रहे हैं. अनंत ने इस फिल्म को पूरी शिद्दत के साथ बनाया है. इसमें बेकार के मसाले नहीं डाले, ना बेकार का वायलेंस. वह सब नहीं डाला गया है यह फिल्म आपको भले ही एक मसाला एंटरटेनर ना लगे लेकिन यह एक जरूरी फिल्म है.

फिल्म देगी नई सोच

इस तरह की फिल्में चलना जरूरी है. ये फिल्म पूरे देश के स्कूलों में मुफ्त दिखाई जानी चाहिए और अगर ऐसा न हो तो कम से कम इसे जीएसटी से तो आजाद कर ही देना चाहिए. मेरी तरफ से फिल्म को पांच में से चार स्टार्स. ये फिल्म देखने वाले को नई सोच देगी.

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