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सिलाई मशीन का पुर्जा बेचने से ‘भारत कुमार’ तक… पढ़ें मनोज कुमार के जीवन की रोचक कहानी

Manoj Kumar

मनोज कुमार

प्रभात उपाध्याय

Manoj Kumar: बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता मनोज कुमार का 4 अप्रैल को 87 साल की उम्र में निधन हो गया. ‘भारत कुमार’ के नाम से मशहूर मनोज की जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. लाहौर में पैदा हुए मनोज का परिवार बंटवारे के बाद दिल्ली आ गया. इस मुश्किल वक्त ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया. आकाशवाणी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने अपनी जिंदगी की कई बातें बताईं. बंटवारे के दुख से लेकर चांदनी चौक में सिलाई मशीन के पुर्जे बेचने और फिर फिल्मों में नाम कमाने तक. यह इंटरव्यू प्रसार भारती के ओटीटी प्लेटफॉर्म WAVES पर सुना जा सकता है.

बंटवारे का दुख

मनोज की जिंदगी की शुरुआत बंटवारे के बुरे दिनों में हुई. उन्होंने बताया कि 13 अगस्त, 1947 को पता चला कि उनके चाचा की हत्या हो गई. उस वक्त उनकी उम्र 25 साल थी. मनोज कुमार कहते हैं कि घर में सब रो रहे थे, पिताजी दीवार पर सिर मार रहे थे. लेकिन दो दिन बाद, 15 अगस्त को, जब भारत आजाद हुआ, पिताजी उन्हें लाल किला ले गए. वहां आजादी का जश्न देखकर मनोज को लगा कि जो इंसान कल अपने भाई की मौत से टूटा था, उसके लिए आजादी कितनी बड़ी चीज है. इस बात ने उनकी सोच बदल दी.

प्यार की छोटी-सी कहानी

मनोज की शादीशुदा जिंदगी भी मजेदार थी. उनकी पत्नी शशि से मुलाकात एक दोस्त रवि के घर हुई, जहां वह ट्यूशन पढ़ने जाते थे. “मैं 15-16 साल का था,” उन्होंने कहा. “हमें बात करने में एक साल लग गया.” धीरे-धीरे प्यार हुआ. जब उन्होंने पिताजी से शशि की बात की, तो वे उनके घर गए और शादी पक्की कर दी. शादी के बाद शशि 22 साल तक सास-ससुर के सामने घूंघट रखती रहीं. “मम्मी-पापा ने कभी नहीं कहा,” मनोज ने बताया, “लेकिन वह परंपरा का पालन करती थीं.” जब पिताजी बीमार हुए, तो उन्होंने खुद शशि से कहा कि घूंघट की जरूरत नहीं.

चांदनी चौक से फिल्मों तक

मुंबई की शान से पहले मनोज की जिंदगी बहुत सादी थी. घर की हालत ठीक नहीं थी. पिताजी की फैक्ट्री किराए पर थी, पर पैसे नहीं आते थे. तब मनोज ने चांदनी चौक में सिलाई मशीन के पुर्जे बेचे. एक दोस्त की सलाह पर वे साइकिल से 8 मील दूर चांदनी चौक गए. वहां एक दुकानदार ने उन्हें देखा और काम करने का मौका दिया. दो महीने में मनोज ने 29,000 रुपये कमाए.

1956 में जब वे मुंबई जाने लगे, पिताजी ने एक चिट्ठी दी और कहा, “ट्रेन चलने के बाद पढ़ना.” उसमें लिखा था, “मुझे अपने खून पर भरोसा है।” ये बात मनोज को हमेशा याद रही और उनके सपनों-हीरो बनने और 3 लाख कमाने-का हौसला बनी.

3 लाख का सपना

मनोज कहते हैं कि बॉलीवुड में आने के बाद मैं 3 लाख रुपये कमाना चाहता था. मेरी तमन्ना थी कि एक लाख मम्मी-पापा को दूं, एक लाख भाई-बहनों को, और एक लाख अपने लिए रखूं.” उनका सपना छोटा था, पर भगवान ने उन्हें उससे ज्यादा दिया. बॉलीवुड में शुरुआत मुश्किल थी. पहली फिल्में नहीं चलीं, लोग कहते थे कि निर्देशन मत करो. लेकिन मनोज नहीं रुके. शादी के बाद उनकी फिल्म ‘हरियाली’ और ‘रास्ता’ हिट हुई और करियर बन गया.

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जिंदगी की सीख

मनोज ने अपनी मां से सिखा कि मेहनत कैसे करते हैं. वह अक्सर बीमार रहती थीं, इसलिए उनका बचपन ननिहाल में बीता. “मुझे जिंदगी की बातें उनसे मिलीं,” उन्होंने कहा. यही बातें उन्हें बॉलीवुड में आगे ले गईं. उनकी देशभक्ति फिल्में सबको पसंद आईं. मनोज कुमार का जाना बड़ा नुकसान है, लेकिन उनकी कहानियां WAVES OTT पर जिंदा हैं. चांदनी चौक से बॉलीवुड तक का उनका सफर मेहनत और परिवार के भरोसे की कहानी है.

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