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Tanvi The Great Movie Review: दमदार एक्टिंग, अच्छी कहानी और इमोशन से भरपूर है ‘तन्वी द ग्रेट’

Tanvi: The Great

'तन्वी द ग्रेट' की कहानी

Tanvi The Great Movie Review: साल 2002 में अनुपम खेर ने बतौर डायरेक्टर फिल्म ‘ओम जय जगदीश’ से डेब्यू किया था. वहीदा रहमान, अनिल कपूर, अभिषेक बच्चन, फरदीन खान, महिमा चौधरी और उर्मिला मातोंडकर जैसे बड़े कलाकारों से सजी यह फिल्म इतनी बुरी तरह फ्लॉप हुई कि अनुपम ने दोबारा कभी डायरेक्शन नहीं किया. अब 23 साल बाद वो दर्शकों के लिए ‘तन्वी: द ग्रेट’ लेकर आए हैं. फिल्म की कहानी अनुपम की भांजी तन्वी की रियल लाइफ से इंस्पायर्ड है जो ऑटिस्टिक हैं. पढ़िए इस फिल्म का रिव्यू बिना किसी स्पॉयलर के…

फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी तन्वी (शुभांगी दत्त) के ही इर्द-गिर्द बुनी गई है जो स्पेशल हैं. ऑटिज्म की शिकार 21 साल की तन्वी अपनी मां विद्या (पल्लवी जोशी) के साथ रहती हैं. विद्या खुद ऑटिज्म एक्सपर्ट हैं। कुछ काम से उन्हें अमेरिका जाना होता है ऐसे में वो तन्वी को उसके नाना कर्नल प्रताप रैना (अनुपम खेर) के साथ छोड़ जाती है. यहां तन्वी को पता चलता है कि उनके पिता शहीद कैप्टन समर रैना (करण टैकर) का सपना था कि वो सियाचिन पर देश का तिरंगा लहराएं. अब इस सपने को तन्वी कैसे पूरा करती है? नाना के साथ उसकी कैसे बॉन्डिंग बनती है? यही फिल्म की कहानी है.

फिल्म में एक्टिंग का दबदबा

एक्टिंग ही इस फिल्म की असली ताकत है. शुभांगी का काम वाकई काबिले तारीफ है. किसी भी फ्रेम में उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगता कि ये उनका डेब्यू है. इमोशनल सीन हो या गुस्सा दिखाने वाला उन्होंने हर सीन बखूबी निभाया है. अनुपम खेर फिल्म की ताकत हैं. उन्हें स्क्रीन पर देखने में मजा आता है. करण टैकर ने भी बढ़िया अभिनय किया है. बाकी फिर पल्लवी जोशी, जैकी श्राॅफ, अरविंद स्वामी और बोमन ईरानी जैसे मंझे हुए कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया. स्कॉटिश एक्टर इयान ग्लेन और नास्सर के पास कैमियो में कुछ खास करने को नहीं था.

निर्देशन

इस फिल्म के पीछे अनुपम की जो सोच है वो बहुत खास है. यूं ही वो 23 साल बाद निर्देशक की कुर्सी पर बैठने के लिए तैयार नहीं हुए. वो जानते थे कि इस मुद्दे को वो सही ढंग से पेश कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने इसे महसूस किया है. फिल्म आपको इंस्पायर करती है कि सपने देखें और उनको सच करें. इसमें कोई शक नहीं कि वो उम्मदा कलाकार है लेकिन डायरेक्टर के तौर पर अनुपम को अभी भी कई चीजों पर काम करने की जरूरत है. फिल्म की जितनी भी कमजोरियां हैं वो अनुपम के ही देन हैं.

अच्छी कहानी और दमदार कलाकार होने के बावजूद भी फिल्म कहीं-कहीं जरूरत से ज्यादा धीमी हो जाती है. जहां कुछ इमोशनल सीन इतने अच्छे हैं कि आपकी आंखों में आंसू आ जाते हैं तो वहीं कुछ सीन ऐसे भी हैं जिनपर यकीन नहीं होता कि अरे ऐसा कैसे हो सकता है? कुछ सीन स्लो और खींचे हुए भी लगते हैं. वीएफएक्स पूरी फिल्म में बेहद कमजोर हैं. माना कि यह एक साइंस फिक्शन नहीं, इमोशल फिल्म है. पर अगर इस तरह के सीन आपकी फिल्म का हिस्सा हैं तो उन्हें बेहतर होना चाहिए था. सोचिए एक ट्रक खाई में गिर रहा है, उसमें आग लग रही है और उस सीन पर पब्लिक हंस रही है. कुछ ऐसे फनी वीएफएक्स हैं.

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संगीत

फिल्म के गाने इसे लंबा और स्लो बनाते हैं. लिरिक्स रॉ हैं पर अटपटे हैं. गानों का मतलब अच्छा है पर तुकबंदी थोड़ी अलग है. गाने सुनकर कहीं कहीं महसूस होता है फिल्म बच्चों के लिए है. ‘सेना की जय..’ गाना ही थोड़ा बेहतर लगा है. फिल्म के क्लाइमैक्स में इसी गाने का दूसरा वर्जन है जिसके बोल हैं, ‘अपनी तन्वी की जय जय हो जाए…’ इस पर कुछ नहीं बोलूंगा.

देखें या न देखें

बच्चों को एक बार जरूर दिखानी चाहिए. आप भी हल्की फुल्की कॉमेडी, इमोशनल और फैमिली फिल्म देखना चाहते हैं तो देख सकते हैं. कुछ सीन असलियत से दूर हैं उनके लिए तैयार रहिएगा.

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