Dupahiya: ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने भारतीय सिनेमा की कहानी कहने की शैली को पूरी तरह बदल दिया है. अब सिर्फ बड़े बजट, चमक-दमक और महानगरों की कहानियाँ नहीं बल्कि छोटे शहरों और गाँवों की कहानियाँ भी मुख्यधारा में जगह बना रही हैं. “दुपहिया” भी ऐसी ही एक दिलचस्प कहानी है, जो बिहार के एक काल्पनिक गाँव धड़कपुर में घटित होती है. निर्देशक सोनम नायर के निर्देशन और चिराग गर्ग व अविनाश द्विवेदी की लेखनी ने इस कहानी को हास्य, रोमांस और सामाजिक संदेश के सुंदर मिश्रण में ढाल दिया है.
कहानी: एक मोटरसाइकिल की चोरी के साथ सामाजिक यथार्थ की झलक
“दुपहिया” की कहानी एक चोरी हुई मोटरसाइकिल के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन असल में यह सिर्फ एक बहाना है गाँव के सामाजिक ताने-बाने को उधेड़ने और फिर से जोड़ने का. यह कहानी हमें बनवारी झा (गजराज राव) के परिवार से जोड़ती है, जो एक स्कूल शिक्षक हैं और अपनी बेटी रोशनी (शिवानी रघुवंशी) की शादी के लिए एक अच्छा वर ढूंढ रहे हैं. लेकिन गाँव में शादी की बात होते ही दहेज की मांग खड़ी हो जाती है.
कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब रोशनी के होने वाले दूल्हे, मुंबई में बसे कुबेर (अविनाश द्विवेदी) की बाइक चोरी हो जाती है. यही चोरी एक के बाद एक घटनाओं की कड़ी बनती जाती है, जहाँ पुलिस, गाँव की राजनीति, शादी की तैयारी, और सामाजिक परंपराएँ – सब एक साथ उलझते नजर आते हैं.
इस पूरी कथा में हमें गाँव की गहराई से जुड़ी कई कहानियाँ भी देखने को मिलती हैं – एक माँ-बाप की बेटी की शादी को लेकर चिंता, एक युवा का सुपरस्टार बनने का सपना, एक लड़की की शहरी चकाचौंध में खो जाने की आकांक्षा, गाँव की मुखिया की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और एक सांवली लड़की की गोर होने की जद्दोजहद. ये सभी तत्व कहानी में एक अलग तरह की रोचकता जोड़ते हैं और इसे सिर्फ एक हल्की-फुल्की कॉमेडी से बढ़ाकर एक सामाजिक व्यंग्य में तब्दील कर देते हैं.
अभिनय: कलाकारों की सजीव प्रस्तुति
“दुपहिया” की सबसे बड़ी ताकत इसकी कास्टिंग है. हर किरदार न सिर्फ बारीकी से लिखा गया है, बल्कि उसे निभाने वाले कलाकार भी पूरी तरह उसमें ढल गए हैं.
गजराज राव (बनवारी झा) – एक स्कूल शिक्षक के रूप में उन्होंने शानदार अभिनय किया है. उनकी बारीक एक्सप्रेशन्स, संवाद अदायगी और पिता के रूप में उनकी चिंता दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ती है.
शिवानी रघुवंशी (रोशनी) – एक ऐसी लड़की के रूप में जिन्होंने खुद को एक चमकदार शहर की दुनिया में देखने का सपना देखा है, उनका अभिनय प्रभावी है.
अविनाश द्विवेदी (कुबेर) – मुंबई का लड़का, जो अपने खोए हुए दुपहिया को लेकर परेशान है, उनका किरदार हंसी और संवेदनशीलता का सही मिश्रण पेश करता है.
स्पर्श श्रीवास्तव (भुगोल) – उनकी भूमिका सबसे ज्यादा प्रभावशाली रही है. एक ऐसा लड़का जो खुद को अभिनेता के रूप में देखता है और बड़ा बनने का सपना रखता है. उनकी संवाद अदायगी और हाव-भाव देखकर आपको “लापता लेडीज” की याद आ सकती है.
रेणुका शहाणे (गाँव की सरपंच) – एक दमदार महिला नेता के रूप में उन्होंने अपने किरदार में गजब की ऊर्जा डाली है.
यशपाल शर्मा (पुलिस अधिकारी) – उन्होंने एक लापरवाह लेकिन मजेदार पुलिस अधिकारी का किरदार निभाया है, जो कहानी में हास्य का तड़का लगाता है.
भुवन अरोरा, कोमल कुशवाह और समर्थ मोहर – इन सभी ने भी अपने-अपने किरदारों को प्रभावी रूप से निभाया है.
इन सभी कलाकारों की बेहतरीन परफॉर्मेंस ने “दुपहिया” को सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक सजीव अनुभव बना दिया है.
सीरीज की खासियत: क्यों देखें “दुपहिया”?
बिहार के गाँव की सजीव झलक
वेब सीरीज में जिस तरह से गाँव के घर, गलियाँ, बोली-बानी और रीति-रिवाजों को दिखाया गया है, वह इसे वास्तविकता के बहुत करीब लाता है. संवादों में बिहारी लहजे का इस्तेमाल, सामाजिक ताने-बाने को उकेरने का तरीका और हल्की-फुल्की राजनीतिक घटनाएँ इसे और भी रोचक बनाती हैं.
हास्य और व्यंग्य का संतुलन
“दुपहिया” सिर्फ एक सीधी-सादी कॉमेडी नहीं, बल्कि सामाजिक विषयों पर कटाक्ष भी करती है. इसमें शादी में दहेज की मांग पर व्यंग्य है, राजनीति के खोखले वादों का मजाक उड़ाया गया है, और छोटे शहरों में युवाओं के बड़े सपनों को खूबसूरती से उकेरा गया है.
बिना गाली-गलौज और हिंसा के मनोरंजन
आजकल वेब सीरीज में गालियाँ, अश्लीलता और हिंसा एक आम ट्रेंड बन गया है. लेकिन “दुपहिया” बिना इन सबके भी दर्शकों को बाँधे रखने में सफल होती है. यह पूरी तरह पारिवारिक दर्शकों के लिए बनाई गई है, जिसे हर उम्र का इंसान देख सकता है.
“पंचायत” और “गुल्लक” की याद दिलाने वाली कहानी
अगर आपको “पंचायत”, “गुल्लक” जैसी हल्की-फुल्की और गाँव की ज़िन्दगी पर आधारित कहानियाँ पसंद हैं, तो “दुपहिया” भी आपको जरूर पसंद आएगी.
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कहाँ रह गई कसर?
हालांकि “दुपहिया” एक बेहतरीन सीरीज है, लेकिन इसमें कुछ कमियाँ भी हैं –
लंबाई – कुछ जगहों पर कहानी जबरदस्ती खींची हुई लगती है. कहानी को 9 एपिसोड में बाटने से इसकी गति थोड़ी धीमी हो जाती है.
अनावश्यक गाने और नाटकीयता – कुछ दृश्य ऐसे हैं, जहाँ कहानी को बढ़ाने के बजाय उसे अनावश्यक रूप से नाटकीय बना दिया गया है, जिससे इसकी सहजता कुछ जगहों पर बाधित होती है.
इस सीरीज में बेटी की शादी को लेकर एक पिता की चिंता, एक ग्रामीण युवा के सुपरस्टार बननेका सपना, एक लड़की के शहरी लड़के से शादी कर चकाचौंद की दुनिया में जीने की आकांक्षा, एक पंच की राजनितिक आकांक्षा, एक सांवली लड़की के गोर होने के लिए जद्दोजदाद, एक गाँव के सामाजिक जीवन और गुटर गु की कथा और शादी में दहेज़ और लालच की व्यथा, सब कुछ देखने को मिलता है. इन तमाम अलग अलग पहलुओं को जोड़ते हुए सीरीज दर्शकों को रोचक तरीके से जोड़े रखती है.
कुल मिलाकर देखें तो “दुपहिया” एक ऐसी सीरीज है जो न सिर्फ हंसाती है, बल्कि समाज की कई गहरी परतों को भी हल्के-फुल्के अंदाज में छूती है. यह बिना गाली-गलौज, हिंसा और अश्लीलता के भी दर्शकों को जोड़े रखने में सफल होती है.
अगर आपको ग्रामीण भारत की कहानियाँ पसंद हैं, या फिर आप एक हल्की-फुल्की, लेकिन संदेशप्रद सीरीज देखना चाहते हैं, तो “दुपहिया” जरूर देखनी चाहिए.
रेटिंग: (4/5) – मनोरंजक, रोचक और भावनाओं से भरपूर!