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बिहार के बाद अब पूरे देश में SIR, चुनाव आयोग ने मेगा प्लानिंग को लेकर आज बुलाई अहम बैठक

Election Commission of India

देश भर में SIR लागू करने को लेकर बड़ी BAITHK

Election Commission: चुनाव आयोग ने देशभर में विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) लागू करने की तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए आज, 10 सितंबर को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है. यह बैठक मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आयोजित की जा रही है, जिसमें SIR के राष्ट्रीय रोलआउट की समयसीमा और प्रक्रिया पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा. बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया के अनुभवों और वहां सामने आई चुनौतियों को भी इस बैठक में समीक्षा किया जाएगा.

SIR का उद्देश्य और महत्व

चुनाव आयोग का SIR मतदाता सूची में शुद्धता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए शुरू किया गया है. इसका मुख्य उद्देश्य डुप्लिकेट, मृत या स्थानांतरित मतदाताओं को हटाकर और नए पात्र मतदाताओं को शामिल करके मतदाता सूची को अद्यतन करना है. आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए आवश्यक है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 324 और प्रतिनिधित्व जनता अधिनियम, 1950 के तहत निर्धारित है. बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया में 18 लाख मृत मतदाताओं, 26 लाख स्थानांतरित मतदाताओं और 7 लाख डुप्लिकेट प्रविष्टियों का पता चला है, जो इस प्रक्रिया की जरूरत को दर्शाता है.

आज की बैठक का एजेंडा

आज की बैठक में निम्नलिखित बिंदुओं पर चर्चा होगी:

बिहार में SIR का अनुभव

बिहार में SIR प्रक्रिया 30 सितंबर तक पूरी होने वाली है. इस दौरान घर-घर सत्यापन, फॉर्म जमा करना, और नए या स्थानांतरित मतदाताओं के लिए जन्म स्थान और तारीख की घोषणा की आवश्यकता शामिल है. बिहार में सामने आई समस्याओं में दस्तावेजों की कमी और सॉफ्टवेयर से संबंधित मुद्दे शामिल हैं. इन अनुभवों को राष्ट्रीय स्तर पर SIR लागू करने की रणनीति तैयार करने में उपयोग किया जाएगा.

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विवाद और आलोचनाएं

SIR प्रक्रिया, विशेष रूप से बिहार में, विपक्षी दलों और नागरिक समाज समूहों द्वारा विवादास्पद रही है. कई लोगों ने इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के एक छिपे रूप के रूप में देखा है, जिसके परिणामस्वरूप हाशिए पर रहने वाले समुदायों, जैसे दलित, आदिवासी, और मुस्लिम मतदाताओं को बाहर करने का जोखिम है. आलोचकों ने दस्तावेजीकरण की सख्त आवश्यकताओं को सार्वभौमिक मताधिकार के लिए खतरा बताया है. इसके जवाब में, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि आधार, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड का उपयोग पहचान सत्यापन के लिए किया जा रहा है, न कि नागरिकता सत्यापन के लिए.

हाल के आरटीआई जवाबों में चुनाव आयोग ने SIR के निर्णय लेने की प्रक्रिया से संबंधित फाइलों या स्वतंत्र मूल्यांकन के रिकॉर्ड की अनुपस्थिति की बात कही है, जिसे आलोचकों ने पारदर्शिता की कमी के रूप में देखा ह. यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया गया है, जहां आयोग ने दावा किया था कि SIR एक स्वतंत्र मूल्यांकन के आधार पर शुरू किया गया.

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