Bangladesh Political Crisis: बांग्लादेश में सियासी ड्रामा अपने चरम पर है. अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की कुर्सी अब हिलने लगी है. पिछले साल अगस्त 2024 में शेख हसीना की सरकार को उखाड़ने में अहम भूमिका निभाने वाले यूनुस अब खुद मुश्किल में फंस गए हैं. हैरानी की बात ये है कि इस बार उनके खिलाफ साजिश में सबसे बड़ा हाथ उनके अपने भरोसेमंद लोगों का है. आइए, जानते हैं उन चार लोगों की कहानी, जिन्होंने यूनुस की सियासी नैया डुबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
‘खलनायक’ खलीलुर रहमान
पहला नाम है अंतरिम सरकार में आंतरिक मामलों के सलाहकार खलीलुर रहमान का. इनके पास राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की भी जिम्मेदारी है. खलीलुर ने कुछ ऐसे फैसले लिए, जिसने बांग्लादेश की जनता को नाराज कर दिया. मसलन, पाकिस्तान को बांग्लादेश में घुसने का रास्ता देना और रोहिंग्या मुद्दे पर रखाइन कॉरिडोर बनाने की बात. इन फैसलों से जनता में गुस्सा भड़का और जब विरोध बढ़ा तो अंतरिम सरकार बैकफुट पर आ गई. लेकिन खलीलुर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब तो बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टी बीएनपी ने खुलकर खलीलुर का इस्तीफा मांग लिया है. बीएनपी का साफ कहना है, “खलीलुर गए, तभी हम सरकार का साथ देंगे.”
आर्मी चीफ जमान
दूसरा किरदार है बांग्लादेश के आर्मी चीफ वकर-उज-जमान. कभी यूनुस के सबसे करीबी माने जाने वाले जमान ने 2024 में शेख हसीना को हटाने और यूनुस को सत्ता सौंपने में बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन 2025 आते-आते दोनों की दोस्ती में दरार पड़ गई. मई में यूनुस ने जमान को हटाने की कोशिश की. 11 मई को जमान को अमेरिका जाना था, लेकिन यूनुस की सरकार ने क्लियरेंस के बहाने उनकी यात्रा रोक दी. बस, फिर क्या. जमान ने खुलकर यूनुस के खिलाफ बगावत कर दी. उन्होंने ऐलान किया कि दिसंबर 2025 तक चुनाव होने चाहिए, क्योंकि सिर्फ चुनी हुई सरकार ही जनता के लिए सही नीतियां बना सकती है. जमान का ये बयान यूनुस के लिए बड़ा झटका साबित हुआ.
ढाका की सियासी शहजादी की वापसी
तीसरा नाम है बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया. मई 2025 में लंदन से ढाका लौटते ही खालिदा ने सियासी हलचल मचा दी. उनकी पार्टी बीएनपी ने यूनुस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. बीएनपी चाहती है कि दिसंबर तक चुनाव हों और यूनुस सरकार के तीन सलाहकारों को हटाया जाए. खालिदा का ये दबाव यूनुस के लिए भारी पड़ रहा है. सूत्रों की मानें तो यूनुस अब इस दबाव को झेल नहीं पा रहे और कुर्सी छोड़ने की सोच रहे हैं.
मेयर की बगावत ने बढ़ाई यूनुस की टेंशन
चौथा और आखिरी नाम है ढाका के मेयर इशराक का. कभी यूनुस के खासमखास रहे इशराक अब उनके सबसे बड़े विरोधी बन गए हैं. यूनुस की अंतरिम सरकार नहीं चाहती थी कि इशराक मेयर बने. लेकिन इशराक ने हार नहीं मानी और हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने यूनुस सरकार को करारा झटका देते हुए इशराक के हक में फैसला सुनाया. इतना ही नहीं, इशराक ने ढाका की सड़कों पर जनता को इकट्ठा कर यूनुस के खिलाफ माहौल बना दिया. अब यूनुस को लग रहा है कि उनके पास हार मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा.
इसलिए पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि उन्हें समर्थन नहीं मिल रहा. वह चाहते हैं कि सभी दल उन्हें अपना पूरा समर्थन दें नहीं तो वे इस्तीफा दे देंगे. ऐसे में जब देश में दोबारा माहौल खराब होता दिख रहा है तो वहां अल्पसंख्यों की भी चिंता बढ़ गई है, क्योंकि वहां इस्लामिक पार्टियों द्वारा पहले भी उन्हें निशाना बनाया जा चुका है. बांग्लादेश की पीएम रही शेख हसीना जब से भागकर भारत आई हैं, तब से वहां हिंदुओं के खिलाफ भी अपराध बढ़ा है.
चारों तरफ से घिरी हुई है यूनुस की कुर्सी
यूनुस की कुर्सी अब चारों तरफ से घिरी हुई है. उनके अपने ही उनके खिलाफ हो गए हैं. बीएनपी का दबाव, जमान की बगावत, खलीलुर की गलतियां और इशराक की सड़क पर ताकत, ये सब मिलकर यूनुस के लिए मुसीबत बन गए हैं. सवाल ये है कि क्या यूनुस इस सियासी तूफान से निकल पाएंगे, या बांग्लादेश में एक और तख्तापलट की कहानी लिखी जाएगी? फिलहाल, ढाका की सियासत में हलचल तेज है, और हर कोई इस ड्रामे के अगले मोड़ का इंतजार कर रहा है.
