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नीतीश का ‘लेडी लव’ बनाम तेजस्वी का ‘युवा जोश’…बिहार चुनाव से पहले चट्टी-चौराहों पर क्या चर्चा?

Bihar Election 2025

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव

Bihar Election 2025: बिहार की सियासी चाय की दुकानों पर इन दिनों हलचल मची हुई है. एक तरफ चाय की चुस्की के साथ लोग कहते हैं, “नीतीश बाबू फिर लौटेंगे, क्योंकि औरतों का दिल जीत लिया है.” दूसरी तरफ युवा मोबाइल स्क्रॉल करते हुए चिल्लाते हैं, “अब काफी हो गया, तेजस्वी लाओ, नौकरी और न्याय की बात हो.” अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों का रंग यही है, एनडीए का ‘नीतीश मॉडल’ बनाम महागठबंधन का ‘तेजस्वी ट्विस्ट’. लेकिन सवाल वही पुराना कि एनडीए नीतीश कुमार को ही चेहरा क्यों बना रहा, जबकि महागठबंधन में कांग्रेस तेजस्वी यादव को खुला समर्थन क्यों नहीं दे रही?

एनडीए का ‘चाणक्य’ नीतीश कुमार

कल्पना कीजिए, बिहार की राजनीति एक बड़ा चौराहा है, जहां हर गली से अलग-अलग जातियां आती हैं. यहां बीजेपी जैसी ‘राष्ट्रीय दिग्गज’ अकेले उतर पड़े तो ट्रैफिक जाम ही लग जाएगा. 2020 के चुनावों में बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं, लेकिन 40% विधायक ऊपरी जातियों (ब्राह्मण-भूमिहार-राजपूत) के थे. बिहार में फॉरवर्ड वोटर 9-10% हैं, जो बीजेपी का कोर बेस हैं, लेकिन बाकी 90%? यादव, कुर्मी, कोइरी, मुस्लिम, दलित, ये सब बिना ब्रिज के पार नहीं उतरेंगे. यहीं चमकता है नीतीश का ‘सोशल इंजीनियरिंग’. 20 सालों में उन्होंने जाति से ऊपर उठकर एक ‘महिला-केंद्रित’ वोट बैंक गढ़ा. हालिया ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ में 75 लाख महिलाओं को 10-10 हजार रुपये दिए, कुल 7,500 करोड़ का पैकेज.

बिहार की आधी आबादी नीतीश को अपना ‘रक्षक’ मानती हैं. प्राशांत किशोर की जन सुराज जैसी नई पार्टियां चुनौती दे रही हैं, लेकिन ओपिनियन पोल्स कहते हैं कि एनडीए 131-150 सीटें ले सकता है, जिसमें जेडीयू की 52-58 सीटें शामिल हैं. यादव वोट तो लालू परिवार के पास चिपके हैं, लेकिन गैर-यादव ओबीसी नीतीश के बिना एनडीए को ‘बिना इंजन’ की कार बना देंगे. बीजेपी जानती है कि नया चेहरा लाओगे तो ऊपरी जाति का ठप्पा लगेगा, पुराना रखो तो ‘ट्रायड एंड टेस्टेड’ फॉर्मूला चलेगा. पीएम मोदी की रैलियां नीतीश को ‘डबल इंजन’ की चाबी दे रही हैं.

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महागठबंधन का ‘सस्पेंस हीरो’ तेजस्वी यादव

अब मुड़िए महागठबंधन की गली में. आरजेडी का कोर यादव (14%) और मुस्लिम (17%) यानी 20 साल से ‘MY फैक्टर’ पर टिका है, जो 2020 में 75 सीटें दिला गया. तेजस्वी, लालू के लाल, अब ‘युवा आइकन’ हैं. 2019-2024 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने ‘BAAP’ फॉर्मूला (बहुजन-अगड़ा-आधी आबादी-गरीब) आजमाया, AI वीडियो और मीम्स से डिजिटल कैंपेन चलाया. ‘मां योजना’ और ‘बेटी योजना’ जैसे वादों से महिलाओं को ललचाने की कोशिश, प्लस ‘बिहार अधिकार यात्रा’ से वोटर लिस्ट पर सवाल उठाकर युवाओं का गुस्सा भड़काया. तेजस्वी कहते हैं, “20 साल नीतीश काफी, नौजवान क्रांति लाएंगे.” लेकिन सवाल ये है कि तेजस्वी के नाम पर कांग्रेस क्यों चुप है? राहुल गांधी तेजस्वी के साथ रैलियों में होते हैं, लेकिन ‘सीएम फेस’ पर सवाल आते ही मुस्कुरा देते हैं.

कांग्रेस को डर है कि अगर तेजस्वी के नाम का ऐलान होगा तो ऊपरी जाति (20%) वाले वोटर डरकर एनडीए की ओर भागेंगे. ‘लालू राज’ का भ्रष्टाचार का साया अभी भी लटका है. बीजेपी आसानी से हमला बोलेगी. RJD लीडर मानते हैं, “सीट शेयरिंग फाइनल होने पर नाम आएगा.” ओपिनियन पोल्स में तेजस्वी पॉपुलर हैं. 38% लोग उन्हें सीएम पसंद करते हैं, नीतीश से थोड़ा आगे.

कांग्रेस सोच रही है कि थोड़ा कन्फ्यूजन रखो, तो फॉरवर्ड वोटर का ‘छोटा-मोटा’ हिस्सा झोली में गिर सकता है. वरना, सिर्फ MY पर निर्भर रहने से ‘विपक्ष की कुर्सी’ ही मिलेगी.

महिला vs युवा, जाति vs विकास

एनडीए महिलाओं (वोटर टर्नआउट में 57%) पर दांव लगा रहा, महागठबंधन युवाओं (बेरोजगारी 15%) पर. प्राशांत किशोर की जन सुराज ‘सरप्राइज पैकेज’ बन सकती है, लेकिन अभी पोल्स NDA को एज दे रहे. अंत में, चट्टी-चौराहे पर बहस यही रहेगी कि नीतीश की स्थिरता या तेजस्वी का जोश? बिहार की जनता फैसला लेगी.

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