Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है, लेकिन कांग्रेस के खेमे में जीत की रणनीति से ज्यादा चर्चा गुटबाजी की है. पार्टी के अंदर चार धड़े आपस में इस कदर भिड़े हुए हैं कि लगता है, कोई किसी की सुनने को तैयार ही नहीं. हालात इतने पेचीदा हो गए हैं कि अब दिल्ली के बड़े नेताओं को मैदान में उतरना पड़ रहा है. आइए, इस राजनीतिक ड्रामे को थोड़ा करीब से जानते हैं.
चार धड़े, एक मकसद, लेकिन तालमेल गायब
बिहार कांग्रेस में इस वक्त चार गुट अपनी-अपनी डफली बजा रहे हैं. इनका मकसद तो एक है, पार्टी को जीत दिलाना, लेकिन रास्ते जुदा-जुदा. राहुल गांधी ने हाल ही में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान साफ-साफ कहा था, “सब मिलकर काम करो, जीत ही हमारा लक्ष्य है.” लेकिन लगता है, उनकी बात हवा में उड़ गई.
राजेश राम का नया जोश
बिहार कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष राजेश राम का गुट सबसे ताकतवर माना जा रहा है. पहले कुटुंबा के एक आम विधायक रहे राजेश राम अचानक सुर्खियों में आए, जब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी मिली. नए और युवा नेताओं का जमावड़ा उनके इर्द-गिर्द है, लेकिन पुराने कांग्रेसी दिग्गज उनकी बात को तवज्जो नहीं दे रहे. राजेश राम इन नए चेहरों के सहारे अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं.
अखिलेश प्रसाद सिंह की अपनी दुनिया
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह भले ही कुर्सी से हटाए गए हों, लेकिन उनकी सियासी चमक फीकी नहीं पड़ी. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के समर्थन से उन्होंने फिर से कमर कसी और पुराने कांग्रेसी नेताओं को अपने साथ जोड़ा. अब वे पार्टी के अंदरूनी खेल में पूरी ताकत से डटे हैं.
मदन मोहन झा का मिथिलांचल मंत्र
एक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा का दबदबा मिथिलांचल में है. लालू यादव के सहारे वे भी अपनी सियासी जमीन बचाए हुए हैं. मौजूदा अध्यक्ष राजेश राम से उनकी बनती नहीं, और वे अप्रत्यक्ष रूप से उन पर दबाव बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते.
नाराज नेताओं का चौथा धड़ा
ये वो गुट है, जो हर फैसले में मीन-मेख निकालता है. चाहे कोई भी अध्यक्ष हो, ये लोग आलोचना के तीर चलाने में माहिर हैं. ये सीधे दिल्ली के आलाकमान से जुड़े हैं और हर छोटी-बड़ी खबर तुरंत वहां पहुंचा देते हैं. इनका काम है बस पार्टी को ‘सुझाव’ देना और कमियां गिनाना.
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दिल्ली की दखल!
गुटबाजी से तंग आ चुके कांग्रेस आलाकमान ने अब कमर कस ली है. 24 सितंबर को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की विस्तारित बैठक होने वाली है, जिसमें इस सियासी नौटंकी का पर्दाफाश होगा. सूत्रों की मानें तो इस बैठक में न सिर्फ गुटबाजी पर लगाम लगाने की रणनीति बनेगी, बल्कि महागठबंधन में सीट बंटवारे पर भी चर्चा होगी. कौन सी सीट जीतने की कितनी संभावना रखती है, कौन सी सीटें अदल-बदल करनी हैं और हिस्सेदारी के हिसाब से कौन सी सीटें मिलेंगी. इन सारे सवालों के जवाब तलाशे जाएंगे.
क्या है बिहार कांग्रेस की चुनौती?
बिहार में कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा है, जिसमें राजद और वाम दल जैसे सहयोगी हैं. लेकिन अगर पार्टी के अंदर ही एकजुटता नहीं होगी, तो गठबंधन की ताकत भी कमजोर पड़ सकती है. 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 19 सीटें जीत पाई. इस बार अगर गुटबाजी पर काबू नहीं पाया गया, तो 2025 में नुकसान और बड़ा हो सकता है. राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने बिहार में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश तो भरा, लेकिन अब असली चुनौती है उस जोश को वोटों में बदलना. दिल्ली आलाकमान की नजर अब हर गुट पर है. सवाल ये है कि क्या कांग्रेस इस गुटबाजी के तूफान से पार पा सकेगी, या फिर 2025 में भी पुरानी कहानी दोहराएगी?
