Bihar Crime: बिहार की राजधानी पटना में हाल ही में हुए दो बड़े हत्याकांडों ने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया है. पहले गोपाल खेमका और फिर चंदन मिश्रा की दिनदहाड़े हत्या ने एक बार फिर ‘जंगलराज’ के पुराने दिनों की याद दिला दी है. विपक्षी दल, खासकर तेजस्वी यादव, नीतीश सरकार के सुशासन के दावों पर सवाल उठा रहे हैं. यहां तक कि एनडीए के भीतर से भी पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर उंगलियां उठ रही हैं.
पटना में गोलियों की तड़तड़ाहट!
पटना के पॉश इलाके में स्थित पारस अस्पताल में बदमाशों ने बेखौफ होकर 28 राउंड फायरिंग की. इस गोलीबारी में चंदन मिश्रा नाम के एक शख्स की जान चली गई, जबकि एक अन्य घायल हो गया. यह घटना इतनी चौंकाने वाली थी कि पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए अस्पताल के 10 गार्ड से पूछताछ की और पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित भी कर दिया, जिनमें एक दरोगा भी शामिल है. वारदात के सीसीटीवी फुटेज भी सामने आए हैं, जिनमें अपराधी अस्पताल के बाहर खड़े होकर अपनी साजिश रचते दिख रहे हैं. ये सब कुछ उस राजधानी में हो रहा है, जहां मुख्यमंत्री से लेकर सभी बड़े राजनेता रहते हैं.
किसके राज में कैसा रहा ‘जंगलराज’?
बिहार में ‘जंगलराज’ शब्द कोई नया नहीं है. नब्बे के दशक से लेकर अब तक, बिहार की सत्ता की धुरी इसी शब्द के इर्द-गिर्द घूमती रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज भी लालू यादव के शासन को ‘जंगलराज’ कहकर कोसते हैं, लेकिन अब विपक्षी दल यही तमगा उनके माथे पर जड़ने को तैयार बैठे हैं. तो आखिर सवाल यह है कि बिहार में लालू यादव के शासन को ‘जंगलराज’ कहा जाए या नीतीश कुमार के? आइए, आंकड़ों पर एक नज़र डालते हैं.
लालू का दौर
पहला कार्यकाल: 10 मार्च 1990 से 28 मार्च 1995 तक
दूसरा कार्यकाल: 4 अप्रैल 1995 से 25 जुलाई 1997 तक (बीच में कुछ दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन भी लगा था)
जब राबड़ी देवी ने तीन बार संभाली बिहार की कमान
पहला कार्यकाल: 25 जुलाई 1997 – 11 फरवरी 1999
दूसरा कार्यकाल: 9 मार्च 1999 – 2 मार्च 2000
तीसरा कार्यकाल: 11 मार्च 2000 – 6 मार्च 2005
भले ही मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं, लेकिन ज्यादातर फैसले लालू यादव के इशारे पर ही लिए जाते थे. NCRB के अनुसार, लालू यादव के समय 1992 में कुल अपराध 1 लाख 31 हजार, जिनमें 5,743 हत्याएं और 1,120 बलात्कार के मामले थे. वहीं, राबड़ी देवी के समय 2004 में कुल अपराध 1 लाख 15 हजार से ज्यादा, जिनमें 3,800 हत्याएं, 1 हजार से ज्यादा बलात्कार और 2,500 से ज्यादा अपहरण के मामले थे.
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नीतीश कुमार का लंबा कार्यकाल
लालू और राबड़ी के बाद बिहार की बागडोर नीतीश कुमार के हाथ आई. मौजूदा कार्यकाल को मिलाकर, नीतीश कुमार अब तक 9 बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं. उन्होंने एनडीए और महागठबंधन दोनों के साथ सरकारें चलाई हैं.
पहला कार्यकाल: 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 (सिर्फ 7 दिन, बहुमत साबित नहीं कर पाए थे)
दूसरा कार्यकाल: 24 नवंबर 2005 से 25 नवंबर 2010
तीसरा कार्यकाल: 26 नवंबर 2010 से 20 मई 2014 (इस्तीफा दे दिया था)
चौथा कार्यकाल: 22 फरवरी 2015 से 19 नवंबर 2015 (जीतन राम मांझी के बाद फिर बने CM)
पांचवां कार्यकाल: 20 नवंबर 2015 से 26 जुलाई 2017 (महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस के साथ)
छठा कार्यकाल: 27 जुलाई 2017 से 15 नवंबर 2020 (एनडीए के साथ वापसी)
सातवां कार्यकाल: 16 नवंबर 2020 से 9 अगस्त 2022 (जेडीयू-बीजेपी)
आठवां कार्यकाल: 10 अगस्त 2022 से 28 जनवरी 2024 (महागठबंधन में लौटे)
नौवा कार्यकाल: 28 जनवरी 2024 से वर्तमान (एनडीए के साथ फिर से मुख्यमंत्री बने)
NCRB के अनुसार, 2022 तक लगभग 3 लाख 50 हजार अपराध, जिनमें लगभग 12 हजार अपहरण, करीब 3 हजार हत्याएं और लगभग 900 बलात्कार के मामले शामिल हैं.
कौन कितना पानी में?
एनसीआरबी के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि बिहार में कुल अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. हालांकि, हत्या जैसे जघन्य अपराधों में लालू-राबड़ी के दौर के मुकाबले करीब 40% की कमी आई है. लेकिन, हाल के कुछ सालों में चोरी, डकैती और हत्या जैसी घटनाओं में इजाफा जरूर देखा गया है.
अब देखना यह होगा कि नीतीश सरकार इन बढ़ती आपराधिक घटनाओं पर कैसे लगाम लगाती है और अपराधियों के हौसले पस्त करने के लिए क्या कदम उठाती है. क्या बिहार एक बार फिर ‘जंगलराज’ की ओर बढ़ रहा है या सरकार इस चुनौती से निपटने में कामयाब होगी?
