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बिहार चुनाव का ‘साइलेंट किलर’ NOTA! रिकॉर्ड वोटिंग के बीच कहीं पलट न जाए बाजी?

Bihar Election NOTA Impact

प्रतीकात्मक तस्वीर

Bihar Election NOTA Impact: बिहार विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग के बाद अब सबकी निगाहें 14 नवंबर को आने वाले नतीजों पर टिकी हैं. एग्जिट पोल भले ही NDA की वापसी के संकेत दे रहे हों, लेकिन इस बार सियासी गलियारों में एक ‘साइलेंट किलर’ की चर्चा है और वो है NOTA (None of the above) यानी ‘इनमें से कोई नहीं’ का बटन.

दरअसल, 40 साल में पहली बार बिहार में वोटिंग का आंकड़ा 65% के पार, लगभग 66.90% तक जा पहुंचा है. इतनी भारी वोटिंग ने राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ा दी है. उन्हें डर है कि कहीं वोटरों की नाराज़गी का यह अंबार NOTA के रूप में सामने आकर उनका बना-बनाया खेल न बिगाड़ दे.

क्यों इतना ताकतवर है NOTA?

NOTA की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट के 2013 के एक आदेश के बाद हुई थी. यह बटन सीधे तौर पर चुनाव नहीं जिताता, लेकिन चुपचाप किसी भी सीट के नतीजे पर गहरा असर डाल सकता है, खासकर तब जब मुकाबला बेहद कड़ा हो.

2020 में जब NOTA ने दिखाया अपना ‘दम’

पिछले विधानसभा चुनाव में NOTA ने अपना असर खुलकर दिखाया था. 243 सीटों वाली विधानसभा में कम से कम 30 सीटें ऐसी थीं, जहां जीत-हार का अंतर NOTA को मिले वोटों से भी कम था. उदाहरण के लिए,

भोरे सीट (गोपालगंज): यहां JDU ने CPI(ML) को सिर्फ 462 वोटों से हराया था, जबकि NOTA को 8,010 वोट मिले थे. यानी हार-जीत के अंतर से करीब 17 गुना ज़्यादा वोट NOTA को पड़े.

मटिहानी सीट (बेगूसराय): LJP ने JDU को सिर्फ 333 वोटों से मात दी, जबकि NOTA के खाते में 6,733 वोट गए थे—यह अंतर से 20 गुना ज़्यादा है.

हिल्सा सीट (नालंदा): बिहार चुनाव का सबसे करीबी मुकाबला. यहां जीत-हार का अंतर सिर्फ 12 वोटों का था, जबकि NOTA को 1,022 वोट मिले. अगर ये वोट किसी एक प्रत्याशी को मिल जाते, तो परिणाम कुछ और होता.

पिछले चुनाव में 23 सीटें ऐसी थीं जहां हार-जीत का अंतर 2,000 वोटों से कम था, जिनमें से 11 सीटों पर यह अंतर 1,000 वोटों से भी कम था. इन आंकड़ों से साफ है कि ‘इनमें से कोई नहीं’ का बटन उम्मीदवारों की तकदीर बदलने की क्षमता रखता है.

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बिहार का वोटर NOTA का ‘फैन’!

बिहार के वोटर राष्ट्रीय औसत से भी ज़्यादा NOTA को पसंद करते रहे हैं, जो एक बड़ी बात है. 2015 विधानसभा चुनाव में NOTA को 2.5% वोट मिले थे, जो अब तक का रिकॉर्ड है. हालांकि, 2020 विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा 1.7% रहा. 2024 लोकसभा चुनाव में NOTA का वोट प्रतिशत एक बार फिर बढ़कर 2.1% तक पहुंच गया है.

अगर यह ट्रेंड इस विधानसभा चुनाव में भी जारी रहा, तो कई सीटों पर करीबी मुकाबले में राजनीतिक गठबंधनों का गणित पूरी तरह बिगड़ सकता है. अब देखना यह है कि रिकॉर्ड वोटिंग के साथ सामने आई वोटरों की यह ‘नाराज़गी’ 14 नवंबर को किसे झटका देती है और किसकी नींद उड़ाती है.

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