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बिहार चुनाव से पहले नीतीश सरकार का ‘गन-कंट्रोल’ वाला मास्टरस्ट्रोक, जानें क्यों छूट रहे बाहुबलियों के पसीने

Nitish Kumar

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

Bihar Election: बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक है और इस बार नीतीश सरकार ने बाहुबलियों के हौसले पस्त करने का पक्का इरादा कर लिया है. अवैध हथियारों और गोला-बारूद पर नकेल कसने के लिए सरकार ने एक धांसू प्लान तैयार किया है, जिससे दबंगों के पसीने छूट रहे हैं. आखिर क्या है ये खास रणनीति और कैसे बिहार की सियासत को ‘गन-फ्री’ बनाने की तैयारी हो रही है? चलिए, जानते हैं.

बाहुबल पर ब्रेक लगाने की कवायद

बिहार में चुनाव का मतलब सिर्फ वोट और रैलियां नहीं, बल्कि कई बार बाहुबल का खुला खेल भी होता है. लेकिन इस बार नीतीश सरकार ने ठान लिया है कि बंदूक की नोक पर सियासत नहीं चलेगी. बिहार के मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा ने हाल ही में ऐलान किया कि राज्य में अवैध हथियारों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जा रहा है. ये अभियान इतना सख्त है कि इसे ‘मिशन मोड’ में चलाने के आदेश दिए गए हैं. यानी, कोई ढील नहीं, कोई बहाना नहीं.

क्या है सरकार का मास्टरप्लान?

पुलिस और जिला प्रशासन को साफ निर्देश हैं कि हर गैरकानूनी हथियार को जब्त किया जाए. साथ ही, उन गुप्त फैक्ट्रियों का पता लगाया जाए, जहां चोरी-छिपे बंदूकें बन रही हैं. वहीं, जिनके पास वैध हथियार हैं, उनकी भी खबर ली जा रही है. लाइसेंस का सत्यापन हो रहा है और हर बंदूकधारी पर नजर रखी जा रही है. पहले लाइसेंसधारियों को सालाना 200 गोलियां मिलती थीं, लेकिन अब इसे घटाकर सिर्फ 25 गोलियां कर दिया जाएगा. इतना ही नहीं, गोलियों की कीमत भी बढ़ेगी, जो अभी 175-200 रुपये प्रति गोली है. और हां, अगली गोलियां लेने से पहले पुराने कारतूस के खोल जमा करने होंगे.

हर हथियार लाइसेंस का ब्योरा अब नेशनल डेटाबेस ऑफ आर्म्स लाइसेंस (NDAL-ALIS) पोर्टल पर तुरंत अपलोड होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो लाइसेंस गैरकानूनी माना जाएगा. कई दुकानें सिर्फ कागजों में चल रही हैं. ऐसी दुकानों के लाइसेंस रद्द किए जाएंगे.

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क्यों जरूरी है ये कदम?

पिछले कुछ समय से बिहार, खासकर पटना में गोलीबारी की घटनाएं बढ़ी हैं. अकेले पटना में एक हफ्ते में छह लोग मारे गए. ऐसे में सरकार का ये कदम न सिर्फ चुनाव को शांतिपूर्ण बनाने के लिए जरूरी है, बल्कि आम लोगों की सुरक्षा के लिए भी अहम है. मीणा ने कहा, “कानून को हाथ में लेने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा.” पुलिस मुख्यालय भी हर घटना पर नजर रखे हुए है.

इस अभियान की प्रगति पर नजर रखने के लिए छह हफ्ते बाद सभी संभागीय मुख्यालयों पर समीक्षा बैठकें होंगी. इनमें मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), और डीजीपी खुद मौजूद रहेंगे. यानी, इस मिशन को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, ये साफ जाहिर है.

दबंगों के पसीने क्यों छूट रहे हैं?

बिहार की सियासत में बाहुबल का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं. लेकिन इस बार नीतीश सरकार के इस सख्त नीति से उन लोगों की नींद उड़ गई है, जो बंदूक के दम पर अपनी धाक जमाते थे. गोला-बारूद की कमी, हथियारों की ट्रैकिंग और दुकानों पर सख्ती से अब उनका ‘खेल’ आसान नहीं रहा. हो सकता है कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान इसका खास असर भी देखने को मिले.

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