Bihar Assembly Elections: बिहार की सियासत इन दिनों किसी धमाकेदार मसाला फिल्म से कम नहीं! एक तरफ NDA की नीतीश-मोदी जोड़ी अपनी पुरानी चालबाज़ी दिखा रही है, तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव का महागठबंधन एक नया ‘सियासी स्क्रिप्ट’ लिख रहा है. 6 और 11 नवंबर को वोटिंग और 14 नवंबर को रिजल्ट से पहले, RJD ने फेंका है अपना ‘तीन तिगाड़ा’ वाला दांव – तीन उपमुख्यमंत्री! जी हां, एक दलित, एक मुस्लिम और एक अतिपिछड़ा (EBC). ये फॉर्मूला सिर्फ सीटों का हिसाब-किताब नहीं, बल्कि गठबंधन की दोस्ती को ‘सुपरग्लू’ की तरह चिपकाने की कोशिश है. तो चलिए, इस सियासी कहानी को विस्तार से समझते हैं.
RJD की ‘बड़ी बहन’ वाली भूमिका
बिहार की 243 सीटों पर सबकी नजरें टिकी हैं. पिछली बार 2020 में RJD ने 144 सीटों पर तीर चलाए थे, लेकिन इस बार वे थोड़ा ‘समझदार भाई’ बनकर 125-130 सीटों पर संतुष्ट हैं. क्यों? क्योंकि गठबंधन के छोटे भाई-बहनों को भी तो जगह देनी है. कांग्रेस को 50-55 सीटें मिलने की बात चल रही है, वो भी राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के जोश के बाद. फिर VIP के मुकेश साहनी, जो ‘नींबू पानी’ वाले विवाद से सुर्खियां बटोर चुके हैं, उन्हें 12-18 सीटें. लेफ्ट पार्टियां मिलाकर 30-35, और बाकी छोटे साथी.
अगर बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जीत हुई तो उपमुख्यमंत्री की कुर्सियां तीनों को दी जाएगी. दरअसल, मुकेश साहनी तो पहले ही कह चुके हैं, “मैं डिप्टी सीएम बनूंगा.” तेजस्वी ने कहा, “ये सिर्फ पद नहीं, सामाजिक न्याय का वादा है.” सोचिए, बिहार का सीएम तेजस्वी बनेंगे, और ये तीन ‘सहायक सिपाही’ हर वर्ग को खुश रखेंगे. कांग्रेस के प्रवीण कुशवाहा ने कहा, “राहुल जी चाहते हैं कि सत्ता सबकी हो.” VIP के देव ज्योति ने इसे ‘तेजस्वी की दूरदृष्टि’ बताया.
बिहार का पुराना ‘डिप्टी’ वाला इतिहास
बिहार में उपमुख्यमंत्री कोई नई बात नहीं. 1950 से अब तक 10 से ज्यादा ‘डिप्टी’ आ चुके हैं. अनुग्रह नारायण सिंह ने 11 साल तक श्रीकृष्ण सिंह को ‘जुड़वा भाई’ की तरह साथ दिया. कर्पूरी ठाकुर ने डिप्टी से सीएम बनकर ‘अंडरडॉग’ की कहानी लिखी. बीजेपी के सुशील मोदी ने 10 साल से ज्यादा स्थिरता दी. तेजस्वी खुद दो बार डिप्टी रह चुके हैं. लेकिन तीन एक साथ?
RJD का मकसद साफ
आरजेडी का मकसद है यादव-केंद्रित इमेज से निकलकर दलित, मुस्लिम और EBC (अतिपिछड़ा) को सीधे जोड़ना. चुनावी सर्वे कहते हैं, ये वोट बैंक 60% से ज्यादा है. NDA की ‘फूट डालो’ वाली चाल और प्राशांत किशोर का ‘तीसरा रास्ता’ फिलहाल सब मिठास भरा लग रहा है, लेकिन मुकेश साहनी की 60 सीटों वाली मांग ने तो हंगामा मचा दिया.
नीतीश कुमार की JDU और BJP मिलकर 131 सीटें पकड़ चुके हैं, और वे ‘विकास’ का ढोल पीट रहे. प्राशांत किशोर की जन सुराज तो 243 सीटों पर उतरने को बेताब हैं. वो कहते हैं, “नीतीश-तेजस्वी दोनों पुराने हैं.” वोटर लिस्ट में ‘वोट चोरी’ का आरोप भी गर्म है. फिर भी, तेजस्वी का ये फॉर्मूला गठबंधन को एकजुट रख सकता है. अगर जीते, तो बिहार में ‘सबका साथ’ वाली सरकार बनेगी. नहीं तो? अगला ट्विस्ट इंतजार कर रहा है.
