Bihar Politics: बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Election) की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं और सियासी गलियारों में एक बार फिर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के जादुई ‘MY’ फॉर्मूले की चर्चा जोरों पर है. जी हां, वही ‘मुस्लिम-यादव’ का गणित, जिसने लालू और उनके परिवार को तीन दशकों तक बिहार की राजनीति का ‘बादशाह’ बनाए रखा. भले ही 77 साल के लालू अब रैलियों में कम दिखें, उनकी बनाई रणनीति आज भी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की रीढ़ है. हालांकि, अब पार्टी की कमान उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव के हाथों में है. लेकिन क्या है लालू का वो ‘MM’ राज, जो उनकी सियासी गाड़ी को रफ्तार देता है? चलिए, सबकुछ आसान भाषा में विस्तार से जानते हैं.
लालू का ब्रह्मास्त्र ‘MY’ समीकरण
लालू का ‘MY’ फॉर्मूला यानी मुस्लिम और यादव वोटों का ऐसा मिश्रण, जिसे तोड़ना किसी भी पार्टी के लिए टेढ़ी खीर रहा है. बिहार की 52% पिछड़ी और 12% मुस्लिम आबादी को एकजुट कर लालू ने सियासत का गणित हमेशा अपने पक्ष में रखा. लेकिन ये फॉर्मूला रातोंरात नहीं बना. इसके पीछे है लालू की चतुराई और दो बड़े सियासी मुद्दे- ‘मंडल’ और ‘मंदिर’. यही वो ‘MM’ हैं, जिन्होंने लालू को बिहार का सियासी सुपरस्टार बनाया.
मंडल: जब लालू ने खेला ‘जाति’ का दांव
बात 1990 की है, जब वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कीं. सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण का ऐलान हुआ और बिहार की सियासत में तूफान आ गया. उच्च जातियों ने इसका जमकर विरोध किया, लेकिन लालू ने इसे मौके में बदल दिया. उस वक्त बिहार में 52% वोटर पिछड़े समुदायों से थे. लालू ने खुद को ‘पिछड़ों का मसीहा’ बनाकर इस वोट बैंक को अपने पाले में कर लिया. नतीजा? बिहार में जाति की सियासत ने विकास और शासन जैसे मुद्दों को पीछे छोड़ दिया. लालू का सितारा चमक उठा.
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मंदिर: जब लालू बने ‘सेक्युलर सुपरहीरो’
उसी साल एक और बड़ा सियासी ड्रामा हुआ. बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर के लिए रथ यात्रा शुरू की. ये यात्रा वीपी सिंह की सरकार के लिए चुनौती थी. लालू उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने मौका देखकर मास्टरस्ट्रोक खेला. 23 अक्टूबर 1990 को उन्होंने समस्तीपुर में आडवाणी को गिरफ्तार करवाया और उन्हें बिहार-बंगाल सीमा पर एक गेस्टहाउस में भेज दिया. उसी दिन पटना के गांधी मैदान में लालू ने गरजते हुए कहा, “अगर इंसान मर जाएंगे, तो मंदिर की घंटी कौन बजाएगा? मस्जिद में नमाज कौन पढ़ेगा? मैं बिहार में सांप्रदायिकता नहीं फैलने दूंगा.”
बस, यहीं से लालू रातोंरात देशभर में छा गए. मुस्लिम वोटरों ने उन्हें ‘सेक्युलर सुपरहीरो’ मान लिया और RJD का वोट बैंक और मजबूत हो गया. 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता दल ने बिहार की 40 में से 32 सीटें जीतीं, और 1995 के विधानसभा चुनाव में जनता दल ने 167 सीटों पर कब्जा जमाया. ये था लालू के ‘2M’ का कमाल. बाद में 1997 में लालू यादव ने खुद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाया.
क्या अब भी चलेगा लालू का जादू?
हालांकि, वक्त बदल रहा है. 2020 के चुनाव में RJD सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन गठबंधन की कमजोरी ने उसे सत्ता से दूर रखा. सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने पांच सीटें जीतकर लालू के वोट बैंक में सेंध लगाई. भले ही बाद में चार विधायक RJD में शामिल हो गए, लेकिन ये एक चेतावनी थी. NDA ने भी EBC (अति पिछड़ा वर्ग) वोटों का बड़ा हिस्सा अपनी तरफ खींच लिया है. फिर भी, लालू का ‘MY’ फॉर्मूला आज भी RJD की ताकत है.
लालू की विरासत, तेजस्वी की पारी
अब तेजस्वी यादव इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. लालू भले ही बीमारियों के कारण कम सक्रिय हों, लेकिन उनकी रणनीति और ‘2M’ का जादू RJD को अब भी बिहार की सियासत में मजबूत बनाए हुए है. क्या इस बार भी लालू का फॉर्मूला काम करेगा? इसका जवाब 14 नवंबर 2025 को मिलेगा, जब बिहार के चुनावी नतीजे सामने आएंगे. तब तक, सियासी पंडितों की नजरें लालू के इस ‘मास्टरप्लान’ पर टिकी रहेंगी.
