VP Election 2025: राजनीति में एक कहावत बड़ी मशहूर है. यहां न कोई स्थायी दोस्त होता है, न कोई स्थायी दुश्मन, बस हितों का खेल चलता है. और इस बार के उपराष्ट्रपति चुनाव में यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है. दरअसल, जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (TDP) एक ही मंच पर खड़ी नजर आ रही हैं, और इसका पूरा श्रेय जाता है बीजेपी को. अब आप सोच रहे होंगे ये कैसे हुआ? तो आइए सबकुछ विस्तार से जानते हैं.
दुश्मनी की पुरानी दास्तान
जगनमोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू का रिश्ता किसी बॉलीवुड मसाला फिल्म से कम नहीं. दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते. आंध्र प्रदेश की सियासत में इन दोनों नेताओं की दुश्मनी दशकों पुरानी है. 2019 में YSRCP ने TDP को सत्ता से बेदखल किया था, और 2024 के विधानसभा चुनाव में TDP ने YSRCP को करारी शिकस्त दी. फिर भी, बीजेपी ने इन दोनों को एक साथ लाकर सबको हैरान कर दिया.
बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक
18 अगस्त 2025 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जगनमोहन रेड्डी को एक फोन कॉल किया. इस कॉल ने सियासी हलकों में तहलका मचा दिया. राजनाथ ने YSRCP से उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन के लिए समर्थन मांगा. जगन ने अपने सांसदों से चर्चा की और फिर YSRCP के संसदीय दल के नेता वाईवी सुब्बा रेड्डी ने ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी NDA के साथ है. YSRCP के पास लोकसभा में 4 और राज्यसभा में 7 सांसद हैं. हालांकि, एक सांसद 3,200 करोड़ रुपये के आंध्र प्रदेश शराब घोटाले के मामले में जेल में है. फिर भी, YSRCP का समर्थन NDA के लिए एक बड़ा सियासी संदेश है. तिरुपति से सांसद मद्दिला गुरुमूर्ति ने कहा, “हमारी पार्टी ने कोई व्हिप जारी नहीं किया, लेकिन अगर मुकाबला हुआ तो हमारे सांसद राधाकृष्णन को ही वोट देंगे.”
गणित तो ठीक, लेकिन असली खेल क्या?
अब सवाल उठता है कि जब NDA के पास पहले से ही उपराष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त वोट हैं, तो YSRCP का समर्थन लेने की जरूरत क्यों पड़ी? जानकारों का कहना है कि यह बीजेपी का एक बड़ा दांव है. पहला, यह TDP को संदेश देता है कि बीजेपी के पास दूसरा विकल्प भी है, यानी TDP को बहुत घमंड करने की जरूरत नहीं. दूसरा, यह YSRCP और बीजेपी के बीच रिश्तों को मजबूत करता है, जो भविष्य में आंध्र प्रदेश की सियासत में बड़ा बदलाव ला सकता है. YSRCP के एक नेता ने तो यह भी कहा, “बीजेपी को हमारे वोट की जरूरत नहीं, फिर भी वो हमारे पास आए. इसका मतलब साफ है कि वो TDP को सबक सिखाना चाहते हैं कि वो अकेले अपराजेय नहीं हैं.”
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YSRCP की मजबूरी
जगनमोहन रेड्डी की अपनी मजबूरियां भी हैं. 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में YSRCP को करारी हार का सामना करना पड़ा. ऐसे में, उनके पास कांग्रेस या इंडिया अलायंस के साथ जाने का कोई रास्ता नहीं. आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के साथ उनकी पुरानी दुश्मनी है, जो उनके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी के समय से चली आ रही है. इसलिए, बीजेपी के साथ कदम मिलाना उनके लिए एक मजबूरी भी है और रणनीति भी. YSRCP ने पहले भी कई मौकों पर NDA को इश्यू-बेस्ड समर्थन दिया है. जैसे, लोकसभा स्पीकर के चुनाव में उन्होंने ओम बिरला को वोट दिया. हालांकि, वक्फ (संशोधन) बिल जैसे संवेदनशील मुद्दों पर YSRCP ने अलग रुख अपनाया, क्योंकि आंध्र प्रदेश में मुस्लिम आबादी का प्रभाव बड़ा है. हालांकि, बीजेपी के पास पहले से ही कई दलों का समर्थन है.
शिवसेना: दोनों गुटों का समर्थन संभव.
एनसीपी: शरद पवार और अजित पवार, दोनों खेमों का साथ मिल सकता है.
एलजेपी: बिहार में NDA का सहयोगी.
नेशनल पीपुल्स फ्रंट (NPF): NDA का हिस्सा.
बीजू जनता दल (BJD): बीजेपी के साथ आने की संभावना.
उपराष्ट्रपति चुनाव के बहाने बीजेपी ने न सिर्फ YSRCP को अपने साथ लाया, बल्कि TDP को भी यह एहसास करा दिया कि सियासत में कोई अकेला बादशाह नहीं. अब सवाल यह है कि क्या यह गठजोड़ आंध्र प्रदेश की सियासत में नए समीकरण बनाएगा? या यह सिर्फ एक चुनावी दांव है? जवाब तो वक्त ही देगा, लेकिन इतना तय है कि बीजेपी की यह चाल सियासी गलियारों में लंबे वक्त तक चर्चा का विषय बनी रहेगी.
