Electoral Donation: देश में राजनीतिक चंदे की नई तस्वीर सामने आई है. चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 में भाजपा को इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए कुल 959 करोड़ रुपये मिले हैं, जो कांग्रेस को मिले चंदे से लगभग तीन गुना अधिक है. कांग्रेस को वर्ष 2023-24 में कुल 517 करोड़ का चंदा मिला था, जिसमें से 313 करोड़ रुपये इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए आए. वहीं तृणमूल कांग्रेस को कुल 184.5 करोड़ का दान मिला, जिसमें 153 करोड़ रुपये इसी माध्यम से प्राप्त हुए थे. कांग्रेस की वार्षिक डोनेशन रिपोर्ट उपलब्ध है, हालांकि भाजपा की रिपोर्ट अभी अपलोड नहीं है.
इलेक्टोरल बॉन्ड बंद होने के बाद भी भाजपा की फंडिंग पर नहीं पड़ा असर
रिपोर्ट बताती है कि इलेक्टोरल बॉन्ड बंद होने के बाद भी भाजपा की फंडिंग पर असर नहीं पड़ा है. भाजपा को अकेले प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट से 757.6 करोड़ रुपये मिले, जो टाटा समूह से जुड़े ट्रस्ट का हिस्सा है. इसके अलावा न्यू डेमोक्रेटिक ट्रस्ट ने 150 करोड़, हार्मनी ट्रस्ट ने 30.1 करोड़, ट्रॉयम्फ ट्रस्ट ने 21 करोड़ और दो अन्य ट्रस्टों ने मिलकर करीब 17 लाख रुपये का योगदान दिया. कांग्रेस को प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से 216.33 करोड़, एबी जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट से 15 करोड़, न्यू डेमोक्रेटिक ट्रस्ट से 5 करोड़ और जन कल्याण ट्रस्ट से 9.5 लाख रुपये प्राप्त हुए. हालांकि यह राशि कांग्रेस को पिछले वित्त वर्ष बॉन्ड्स से मिले 828 करोड़ रुपये की तुलना में कम है. कुछ बड़ी कंपनियों और पी. चिदंबरम द्वारा दिए गए योगदान का जिक्र भी रिपोर्ट में है.
टाटा समूह बना दान करने वाला सबसे बड़ा ट्रस्ट
टाटा समूह का प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट बीते वर्ष 10 पार्टियों को कुल 914 करोड़ रुपये दान कर सबसे बड़ा दाता बना. इस राशि का 83% यानी 757 करोड़ रुपये भाजपा को मिला. कांग्रेस सहित वाईएसआर कांग्रेस, शिवसेना, बीआरएस, बीजद, जदयू, डीएमके, तृणमूल और लोजपा (रावि) को 10-10 करोड़ रुपये दिए गए. इस ट्रस्ट को मिली रकम टाटा समूह की 15 कंपनियों से आई, जिनमें टाटा संस, टीसीएस और टाटा स्टील का बड़ा हिस्सा शामिल रहा.
इलेक्टोरल ट्रस्ट को माना जाता है राजनीतिक चंदे का पारदर्शी
इलेक्टोरल ट्रस्ट को राजनीतिक चंदे का पारदर्शी माध्यम माना जाता है, क्योंकि इसमें दान देने वाली कंपनियों और चंदा पाने वाली पार्टियों दोनों की जानकारी सार्वजनिक होती है. यह व्यवस्था 2013 में लागू हुई थी और कंपनी एक्ट, आयकर कानून व चुनाव आयोग की गाइडलाइनों के तहत संचालित होती है. नियम है कि ट्रस्ट को प्राप्त धन का कम से कम 95% एक वर्ष के भीतर पार्टियों तक पहुंचाना होता है. जबकि इलेक्टोरल बॉन्ड्स की पहचान गोपनीयता के कारण विवादों में रही और सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2024 में इसे रद्द कर दिया. इसके बाद इलेक्टोरल ट्रस्ट राजनीतिक फंडिंग का प्रमुख जरिया बनकर उभरे हैं.
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