Budget 2025: फ्रीबीज पॉलिटिक्स के ग़ुबार में अक्सर मेहनतकश लोगों का पुरुषार्थ धूमिल हो जाता है. तमाम अड़चनों के बावजूद राष्ट्र किस हुनर से आर्थिक पायदान की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है, यह खबर शायद अधिकांश जनता के लिए ढेला बराबर मतलब रखती हो. लेकिन, यदि आप इस ख़बर में रुचि रखते हैं और हेडलाइन देखकर इस ख़बर को पढ़ने का मन बना चुके हैं तो आप भी उन गिने-चुने लोगों में से एक हैं जिन्हें देश के वास्तविक हेल्थ और पुरुषार्थ की समझ है. चलिए फिर बिना और अधिक तानेबाने के मूल ख़बर पर आते हैं.
दरअसल, देश के सबसे बड़े बैंक ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ (SBI) की एक रिपोर्ट काफ़ी चर्चा में है और भारतीय अर्थव्यवस्था को और ज़्यादा बूस्टर डोज़ देने वाली है. वर्तमान फाइनेंशियल ईयर के पहले 9 महीने में हमारे देश की अर्थव्यवस्था ने तगड़ा ग्रोथ हासिल किया है. SBI की रिपोर्ट के मुताबिक़ चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीने में भारतीय कंपनियों ने 32 लाख करोड़ रुपये के इन्वेस्टमेंट की घोषणा की हैं. पिछले वित्त वर्ष के पहले 9 महीने के मुक़ाबले निवेश की यह रक़म 39% ज़्यादा है. क्योंकि, पिछले साल 23 लाख करोड़ रुपये के निवेश का ऐलान हुआ था.SBI की रिपोर्ट में बताया गया है कि निवेश (Investment) में प्राइवेट सेक्टर का योगदान 70 फीसदी से ज्यादा का हो चुका है.
आगामी सालों में और तेज़ी से विकास
मार्च 2024 तक चल रही परियोजनाओं की पूंजी की कुल राशि 13.63 लाख करोड़ रुपये है, जो आने वाले सालों में आर्थिक बढ़ोतरी के मजबूत संकेत देती है. चूँकि, देश की अर्थव्यवस्था में विकास के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र का निवेश दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण हैं. SBI की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 के वित्तीय वर्ष (FY23) में दोनों ने अपने-अपने तरीके से योगदान दिया. मसलन, सरकार ने देश के विकास और बुनियादी ढाँचे (Infrastructure) को मज़बूत करने के लिए अपने बजट का 4.1% हिस्सा GDP में निवेश किया. यह आँकड़ा वित्त वर्ष 2012 के बाद सबसे ज़्यादा है. अब इसका मतलब आसान भाषा में समझाया जाए तो यह है कि सरकार ने पिछले दो सालों के दौरान सड़कों, पुलों, बिजली संयंत्रों, और दूसरी विकास परियोजनाओं पर बड़ी राशि खर्च की है ताकि देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके.
सरकारी निवेश क्यों बढ़ा?
अब सवाल यह भी उठेगा कि विकास के लिए एक आर्थिक इकोसिस्टम की ज़रूर होती है. ऐसे में भारत ने किन सूरतेहाल में अपनी स्थिति को इस कदर मज़बूत करने की ठानी. सरकारी निवेश का अहम दृष्टिकोण देश में लोगों के लिए रोज़गार और व्यापार को बढ़ावा देना है. हालाँकि, यह दिगर बात है कि अक्सर विपक्षी दल सरकार पर व्यापार को नष्ट करने और रोज़गार ख़त्म करने के आरोप लगाते रहे हैं. लेकिन, आँकड़े यहाँ कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं. कोरोना महामारी के बाद सरकार ने सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई लेवल पर निवेश को हरी झंडी दी. इसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देकर रोजगार सृजन और व्यापार को बढ़ावा देना अहम है.
निजी क्षेत्र का निवेश और इज़ाफ़े की वजह
बीते एक साल के भीतर निवेश के मामले में निजी क्षेत्र की भारतीय कंपनियों ने कमाल की परफ़ॉर्मेंस दी हैं. वित्त वर्ष 2023 की बात करें तो प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों ने देश की GDP का 11.9% हिस्सा निवेश किया. ग़ौरतलब है कि यह आँकड़ा वित्त वर्ष 2016 के बाद सबसे ज्यादा है. आर्थिक जानकारों का मानना है कि वित्त वर्ष 24(Financial Year 2024) में निवेश का यह आंकड़ा 12.5% तक पहुंच सकता है.
अब आपको बताते हैं कि निजी कंपनियों के बढ़ते निवेश के क्या ज़रूरी वजहें रहीं. दरअसल, हाल के वर्षों में स्थिर सरकार और आर्थिक नीतियों में क्रमिक सुधार का असर है कि निवेशकों का भरोसा भारतीय बाज़ार में बढ़ा है. ख़ासकर देश का यंग फ़ोर्स बाज़ार के साथ ख़ुद को एसोसिएट करता जा रहा है.
ज़ाहिर है संख्या बढ़ने से बाज़ार को एक नया बूस्ट मिलता नज़र आ रहा है. वहीं, कंपनियाँ भी नई तकनीक और स्कील को अपने भीतर इंट्रोड्यूस कर रही हैं. वहीं, स्टार्टअप के निवेश से भी बाज़ार में कॉम्पटिशन बढ़ा है. इसके अलावा सरकार की आर्थिक नीतियों; जिनमें स्टार्टअप इंडिया, मेक-इन-इंडिया और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन ने भी इस क्षेत्र का हुलिया काफ़ी हद तक बदल दिया है.
विदेश से लोन (ECBs) का फ्लो क़ायम
भारतीय कंपनियों की बढ़ती साख का नतीजा है कि विदेशी लोन का सोर्स लगातार बढ़ता जा रहा है. इकोनॉमिक्स की भाषा में इस व्यवस्था को ECB यानी External Commercial Borrowing कहा जाता है. अक्सर कंपनियां विदेशों से डॉलर या यूरो में ऋण उठाती हैं. हाल के सालों में भारतीय कंपनियों की रुतबा ऐसा बना है कि उन्हें आसानी से निवेश के लिए लोन मिल जाता है. ऐसे में ECBs भारतीय कंपनियों के लिए निवेश के क्रम में एक बढ़िया स्रोत बना हुआ है. सितंबर 2024 तक ECBs का कुल आंकड़ा 19.4 अरब डॉलर पहुंच गया. यह आंकड़ा पिछली तिमाही के मुकाबले कुछ ज्यादा है.
चूँकि विदेशी लोन अधिकतर डॉलर या यूरो में होते हैं. लिहाज़ा, अगर विदेशी मुद्राओं की क़ीमत भारतीय रुपये के मुक़ाबले बढ़ती या घटती हैं तो सीधा असर लोन पर पड़ता है. ऐसे में इस सिचुएशन को भी भारतीय कंपनियों ने बड़े ही माहिर अंदाज में सँभालकर रखा है. इसमें ‘हेजिंग’ के ज़रिए लोन में ब्याज दर् को काफ़ी स्थिर रखा गया.
दरअसल, आर्थिक भाषा में ‘हेजिंग’ के ज़रिए भारतीय कंपनियाँ विदेशी लोन देने वाले से पहले ही एक कॉन्ट्रैक्ट कर लेती हैं. जिसके मुताबिक़ अगर उनकी करेंसी में कोई उतार या चढ़ाव आए तो पहले से निर्धारित शर्त पर कोई असर न पड़े. ऐसे में भारतीय कंपनियों ने 2024 में ECBs का तक़रीबन दो तिहाई हिस्सा ‘हेज’ किया. इसके पहले हेजिंग का आँकड़ा कुल ECBs का आधा था.
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बजट से पहले इस रिपोर्ट का महत्व और फायदे
भारत में आगामी 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2025-26 का केंद्रीय बजट पेश करने वाली हैं. बजट से ठीक पहले SBI की यह रिपोर्ट देश की अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति और निवेश के रुझानों को समझने के लिए बेहद अहम है. 32 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा यह दर्शाती है कि निजी और सरकारी क्षेत्र, दोनों में निवेश के प्रति विश्वास बढ़ा है. निवेश में 70% योगदान निजी क्षेत्र का है, जो निजी क्षेत्र की स्ट्रेंथ और कैपिटल फ्लो की में स्थिरता को दर्शाता है.
इस रिपोर्ट के बाद माना जा सकता है कि आगामी बजट में सरकार ख़ासतौर पर स्टार्टअप्स और MSMEs के लिए और अधिक प्रोत्साहन दे सकती है. वहीं, सरकार की तरफ़ से 4.1 फ़ीसदी का निवेश दिखाता है कि सरकार इस फ़ॉर्मूले को और ज़्यादा ताकतवर बनाएगी और पहले की तरह रोड, रेल, ब्रिज आदि के निर्माण पर तेज़ी से खर्च करेगी.
जिस तरह से भारतीय कंपनियों ने विदेशी लोन (ECBs) को बुद्धिमानी के साथ हेज़ किया है. उसके चलते विदेशी निवेश के लिए भी एक विश्वास बहाली का माहौल बनता दिखाई दे रहा है. संभवत: सरकार इस तरफ़ और ज़्यादा ध्यान दे और विदेशी निवेश के लिए कुछ और लुक्रेटिव ऑफ़र बजट में रख दे. कुल मिलाकर यह रिपोर्ट सरकार को आर्थिक सुधारों और निवेश योजनाओं को मजबूती देने के लिए क्लियर लेंस मुहैया कराता है. आगामी बजट में निजी और सरकारी निवेश को संतुलित करके रोजगार सृजन, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास, और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के उपाय निकाले जा सकते हैं.
